राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में आयोजित आभासी संगोष्ठी विषय- "गोस्वामी तुलसीदास वैश्विक परिदृश्य में" में अपना मंतव्य देते हुए, मुख्य अतिथि, डॉ. हरिसिंह पाल , महामंत्री, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने कहा - भारत के साथ जायसपोरा, मारीशस, ग्याना, तवाको, फीजी आदि देशों में भारतवंशियों को रामचरितमानस ने विपरीत परिस्थितियों में स्वावलंबी बनाया ।आज वे उच्च पदों पर आसीन हैं। मुख्य वक्ता डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष उज्जैन, मध्य प्रदेश ने कहा- तुलसीदास का साहित्य समस्त सुमंगल देने वाला है । उनकी रचनाओं को आत्मसात करने से , रामराज्य, लोक राज्य, स्वराज्य स्थापित हो जाएगा । विशिष्टअतिथि डॉ.शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, मुख्य राष्ट्रीय संयोजक, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना , पुणे, महाराष्ट्र ने कहा- तुलसीदास भारतीय समाज के उन्नायक और सुधारक हैं । उन्होंने विश्व बंधुत्व की भावना को केंद्र में रखते हुए रचनाऐं की हैं। संगोष्ठीआयोजक ने प्रस्तावना मे डॉ. प्रभु चौधरी , महासचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा- संत तुलसीदास त्यागमयी मूर्ति थे। और क