नर्मदा जयंती - नर्मदा महोत्सव भोपाल : शुक्रवार, जनवरी 31, 2020, 20:47 IST यह निर्विवाद सत्य है कि विश्व के प्राचीनतम धर्मग्रंथ वेदों, पुराणों और उपनिषदों ने संपूर्ण मानव समाज के अर्थपूर्ण जीवन निर्वाह के लिये आदर्श आचार संहिता दी है। मनुष्य का जीवन शांत रहे, इसके लिये जरूरी है कि प्रकृति के सभी घटक संतुलित और शांत रहें। आज पूरा विश्व प्रकृति को सँवारने के लिये चिंतित है। प्रकृति संरक्षण के जितने भी कानून हैं, उन सभी का उद्गम वेदों में है। अथर्व-वेद तो प्रकृति आराधना की अमूल्य कृति है। इसमें स्पष्ट कहा गया है- 'यस्यामन्नं व्रीहियवौ यस्या इमाः पंच कृष्टयः/भूम्यै पर्जन्यपल्यै नोमोSत्तु वर्षमेदसे.' अर्थात भोजन और स्वास्थ्य देने वाली सभी वनस्पतियाँ इस भूमि पर उत्पन्न होती हैं। पृथ्वी सभी वनस्पतियों की माता और मेघ पिता हैं क्योंकि वर्षा के रूप में पानी बहाकर वे पृथ्वी में गर्भाधान करते हैं। 'पृथ्वी सूक्त' में कहा गया है 'माता भूमि: पुत्रोहम पृथ्वीव्या:' यानी पृथ्वी मेरी माता है और मै उनका पुत्र हूँ। वेदों के अध्ययन से यह भी सुस्पष्ट है कि जब पृथ्वी हमारी माँ है तो इ