Skip to main content

Posts

Showing posts with the label विशेष आलेख

आँवला नवमी का महत्त्व एवं उसका आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से संबंध

भूमिका भारतवर्ष की सांस्कृतिक परंपरा में प्रकृति और स्वास्थ्य का अत्यंत गहन और आत्मीय संबंध रहा है। यहाँ प्रत्येक पर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठान का प्रतीक है, बल्कि उसमें स्वास्थ्य, पर्यावरण, और अध्यात्म के गूढ़ संदेश छिपे हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण पर्व है “आँवला नवमी” — जिसे कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन आँवला वृक्ष (आमलकी / Emblica officinalis) की पूजा की जाती है, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र है, बल्कि औषधीय दृष्टि से भी अनुपम है। आँवला नवमी का पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, स्वास्थ्य के प्रति सजगता और आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुपालन का सुंदर उदाहरण है। धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व पुराणों में वर्णित है कि जब भगवान विष्णु ने अमृत का सृजन किया, उसी समय आँवला वृक्ष का उद्भव हुआ। इसीलिए इसे अमृतफल कहा गया है। स्कन्द पुराण और पद्म पुराण में आँवला वृक्ष को भगवान विष्णु का प्रिय वृक्ष बताया गया है। इस दिन भक्तजन आँवला वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना करते हैं, वृक्ष की परिक्रमा करते हैं, दीपक जलाते हैं और आँवले के फल का सेवन प्रसाद के रूप में करते हैं। लोक आस्था के अन...

भगवान धन्वंतरि जयंती: आयुर्वेद के जनक को समर्पित एक दिव्य उत्सव

भगवान धन्वंतरि जयंती: आयुर्वेद के जनक को समर्पित एक दिव्य उत्सव ✍️ डॉ. प्रकाश जोशी, व्याख्याता, रचना शारीर विभाग, शासकीय धन्वंतरी आयुर्वेदिक महाविद्यालय ✍️ डॉ. जितेंद्र जैन, पूर्व व्याख्याता, पदस्थ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी, शासकीय आयुर्वेद औषधालय, करोहन, जिला उज्जैन भगवान धन्वंतरि: अमृत कलश से आयुर्वेद के अवतरण तक आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्न मंथन का संदेश लेकर जिनका अवतार हुआ, वे सतत गतिशीलता और सुनियोजन से लक्ष्य प्राप्ति के देवता आदि धन्वंतरि हैं। उन्हें आयुर्वेद के जनक के रूप में मान्यता प्राप्त है और जनसाधारण में भी वैद्यक शास्त्र के जन्मदाता के रूप में उनका नाम अत्यंत श्रद्धा से स्मरण किया जाता है। इतिहास में ‘धन्वंतरि’ नाम के तीन प्रमुख आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है। सर्वप्रथम, धन्वंतरि प्रथम — जिनका अमृत कलश लिए हुए क्षीरसागर से अवतरण हुआ — देवताओं में अश्विनीकुमारों की तरह अमरत्व का प्रतीक माने जाते हैं। पुराणों के अनुसार, देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन के दौरान जो 14 रत्न प्राप्त हुए, उनमें से एक धन्वंतरि भी थे। समुद्र मंथन की प्रक्रिया में देवताओं और अ...

शरद पूर्णिमा: श्वास रोग (दमा) के लिए वरदान, आयुर्वेदिक चिकित्सा में विशेष महत्व

औषधियुक्त खीर व कर्णवेधन से मिलता है राहत का संजीवनी उपाय दमादम के साथ जाता है — यह एक प्रचलित लोकोक्ति है जो श्वास रोग (दमा) के लिए कही जाती है। काफी हद तक यह सही भी है, लेकिन उचित आहार-विहार एवं युक्तिपूर्वक की गई चिकित्सा से इसे ठीक भी किया जा सकता है। आयुर्वेद में उचित आहार-विहार के लिए ऋतुचर्या का विशेष विधान है। ऋषियों ने मानव जगत के हित में, वैज्ञानिक ढंग से स्वास्थ्य के नियमों को ध्यान में रखते हुए काल विभाजन किया है। ऋतु के अनुसार उचित आहार-विहार करने एवं अनुचित आहार-विहार से बचने का स्पष्ट निर्देश दिया गया है। अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कहावत है — "Prevention is better than cure", अर्थात बीमार होने के बाद इलाज कराने से अच्छा है कि पहले ही बचाव किया जाए। आयुर्वेद में बताए गए नियमों का पालन करके अनेक रोगों से बचा जा सकता है। इन्हीं ऋतुओं में शिशिर, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा एवं शरद ऋतु का वर्णन है। इनमें शरद ऋतु में आने वाली शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व माना गया है, खासकर श्वास रोग (दमा) के उपचार में। भारतीय कालगणना के अनुसार शरद ऋतु आश्विन व कार्तिक माह में आती है, जो ...

दसवां राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस : आयुर्वेद जन-जन के लिए, पृथ्वी के कल्याण के लिए

प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी दसवां राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस भव्यता के साथ मनाया जाएगा। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने घोषणा की है कि अब से प्रतिवर्ष राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 23 सितंबर को मनाया जाएगा। खगोलविदों के अनुसार, 23 सितंबर को दिन और रात बराबर होते हैं। यह तिथि शरद विषुवत (Autumnal Equinox) की होती है, जो प्रकृति में संतुलन का प्रतीक मानी जाती है। यह संतुलन आयुर्वेद के मूल सिद्धांत— शरीर, मन और आत्मा के बीच सामंजस्य—से गहराई से मेल खाता है। यही प्राकृतिक संतुलन एवं समरसता आयुर्वेद के दर्शन का आधार है। पूर्व में प्रतिवर्ष धनतेरस की तिथि को आयुर्वेद दिवस मनाने की परंपरा थी। किंतु, तिथि की अनिश्चितता के कारण राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर इस दिन आयोजन करना कठिन होता था। उदाहरण के तौर पर, आगामी दशक में धनतेरस की तिथि 15 अक्टूबर से 12 नवंबर के बीच परिवर्तित होती रहेगी। इस अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार ने 27 मार्च 2025 को जारी अधिसूचना के माध्यम से यह घोषणा की कि अब से प्रतिवर्ष 23 सितंबर को ही आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा। यह तिथि स्थिर है और अंतरराष्ट्रीय स्त...

शिक्षकों का सम्मान: ज्ञान का दीपक और समाज का आधार - डॉ चौधरी

  शिक्षक दिवस विशेष शिक्षक, केवल एक पेशा नहीं, बल्कि एक मिशन है जो समाज को सही दिशा दिखाता है। वे हमारे जीवन में ज्ञान का दीपक जलाते हैं और हमें सही-गलत का फर्क सिखाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में शिक्षकों के सम्मान के लिए एक दिन समर्पित है। भारत में, यह दिन 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जबकि विश्व स्तर पर यह 5 अक्टूबर को मनाया जाता है। भारत में शिक्षक दिवस की शुरुआत एक महान शिक्षाविद्, दार्शनिक और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के साथ हुई। जब उनके छात्रों ने उनका जन्मदिन भव्य रूप से मनाने की इच्छा व्यक्त की, तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा, "मेरे जन्मदिन को अलग से मनाने के बजाय, क्यों न इस दिन को भारत के सभी शिक्षकों के सम्मान में समर्पित किया जाए?" उनके इस विचार ने 5 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में पहचान दिलाई। यह दिन सिर्फ एक छुट्टी नहीं, बल्कि एक अवसर है जब हम अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में छात्र अपने शिक्षकों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाटक और सम्...

चरक जयंती विशेष लेख - चरक संहिता : आयुर्वेद की अमूल्य धरोहर

चरक जयंती विशेष लेख चरक संहिता: आयुर्वेद की अमूल्य धरोहर आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाने वाली चरक संहिता चिकित्सा शास्त्र का सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ है। इस ग्रंथ में चिकित्सा विज्ञान के मौलिक तत्वों का जितना उत्तम विवेचन किया गया है, उतना अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। प्राचीन विद्वानों ने कहा है – “चरकस्तु चिकित्सते” , अर्थात् चरक ही चिकित्सा करते हैं। महर्षि चरक का जन्म महर्षि चरक का जन्म किस काल में हुआ, इस संबंध में कोई पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। भाव प्रकाश ग्रंथ के अनुसार आचार्य चरक को शेषावतार माना गया है। अर्थात, श्रावण मास शुक्ल पक्ष पंचमी को नाग पंचमी के दिन महर्षि चरक का जन्म हुआ था। आचार्य कपिष्ठल चरक का जन्म पंचनद प्रांत में इरावती एवं चंद्रभागा नदियों के बीच हुआ था। त्रिपिटक ग्रंथ के चीनी अनुवाद में उन्हें कनिष्क का राजवैद्य बताया गया है। यजुर्वेद के 86 भेदों में "चरका" नाम द्वादश भेदा के आधार पर चरक शाखा में 12 भेद बताए गए हैं। अग्निवेश तंत्र के प्रतिसंस्कारकर्ता आचार्य चरक, विशुद्ध के पुत्र वैशंपायन के शिष्य थे। यह ईसा से लगभग 3000 वर्ष...

अंगों की बातचीत - हम अभी जिंदा है - आसन और योग शरीर के कण-कण को जिंदा रखते हैं

✍️  डॉ निरंजन सराफ  आज के इस आधुनिक युग में हमारा शरीर और हमारे शरीर के सभी अंग काफी पीड़ा झेल रहे हैं इसी संदर्भ में मानव शरीर के अंगों ने एक गोष्ठी रखी जिसमें विभिन्न अंग एक दूसरे से बात कर रहे हैं । वे एक दूसरे से कह रहे हैं हम अभी जिंदा है । आंतें कहती हैं मैं तो पता नहीं क्या-क्या झेल रही हूं  मनुष्य ने हमें वस्तु समझ रखा है इसीलिए मनुष्य बहुत सारे रसायनों का हम पर प्रयोग कर रहा है सामान्यतया हम रसायनों का प्रयोग निर्जीव वस्तुओं पर करते हैं परन्तु मनुष्य रसायनों का प्रयोग अब हम पर भी बहुत अधिक मात्रा में करने लगा है हमें भी निर्जीव समझने लगा है वह यह भी नहीं सोच पा रहा है कि हम अभी जिंदा हैं । दवाइयों में प्रिजर्वेटिव, टोमेटो सॉस में प्रिजर्वेटिव, बिस्किट में प्रिजर्वेटिव, ब्रेड में प्रिजर्वेटिव, जैम में प्रिजर्वेटिव, मैगी में प्रिजर्वेटिव, आटें में प्रिजर्वेटिव, सारे पिसे हुए मसालों में प्रिजर्वेटिव, कोल्ड ड्रिंक में प्रिजर्वेटिव आइस क्रीम में प्रिजर्वेटिव, फ्रेंच फ्राइज में प्रिजर्वेटिव, केमिकलों के द्वारा पके हुए आम, पपीता, केला, गाय भैंसों को रोज ऑक्सीटोसिन का इं...

ग्यारहवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस : एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य के लिए योग

योग स्वास्थ्य एवं कल्याण का पूर्णता वादी दृष्टिकोण है 21 जून 2025 को ग्यारहवां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य के  विषय पर संपूर्ण  विश्व में वसुधैव कुटुंबकम की भावना से एक साथ मुख्य समारोह में मनाया जाएगा। योग प्राचीन भारतीय परंपरा एवं संस्कृति की अमूल्य देन है। आचार्य पतंजलि के अनुसार योग चित्त वृत्ति निरोध: चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग कहलाता है। योग स्वस्थ जीवन की कला एवं विज्ञान है योग अभ्यास शरीर एवं मन ,विचार एवं कर्म ;आत्म संयम एवं पूर्णता की एकात्मकता तथा मानव एवं प्रकृति के बीच सामंजस्य प्रदान करता है। योग केवल व्यायाम नहीं है बल्कि स्वयं के साथ विश्व और प्रकृति के साथ एकत्व खोजने का भाव है। योग हमारी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर हमारे अंदर जागरूकता उत्पन्न करता है तथा प्राकृतिक परिवर्तनों से शरीर में होने वाले बदलावों को सहन करने में सहायक होता है। योग एक विज्ञान है जो शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहने का ज्ञान करता है यह किसी प्रजाति आयु लिंग धर्म जाति के प्रतिबंधन से मुक्त है। योग के अनुसार अधिकांश रोग मानसिक मनो शारीरिक एवं शारीरिक ...

राजा सिर्फ राज्य बनाते हैं, ऋषियों के सांस्कृतिक अवदान से बनता है राष्ट्र

भारतीय राष्ट्रवाद को नई आँखों से देखिए ! ✍️ प्रो. संजय द्विवेदी देश में इन दिनों राष्ट्रवाद चर्चा और बहस के केंद्र में है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम भारतीय राष्ट्रवाद पर एक नई दृष्टि से सोचें और जानें कि आखिर भारतीय भावबोध का राष्ट्रवाद क्या है? ‘राष्ट्र’ सामान्य तौर पर सिर्फ भौगोलिक नहीं बल्कि ‘भूगोल-संस्कृति-लोग’ के तीन तत्वों से बनने वाली इकाई है। इन तीन तत्वों से बने राष्ट्र में आखिर सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है? जाहिर तौर पर वह ‘लोग’ ही होगें। इसलिए लोगों की बेहतरी,भलाई, मानवता का स्पंदन ही किसी राष्ट्रवाद का सबसे प्रमुख तत्व होना चाहिए। जब हम लोगों की बात करते हैं तो भौगोलिक इकाईयां टूटती हैं। अध्यात्म के नजरिए से पूरी दुनिया के मनुष्य एक हैं। सभी संत, आध्यात्मिक नेता और मनोवैज्ञानिक भी यह मानने हैं कि पूरी दुनिया पर मनुष्यता एक खास भावबोध से बंधी हुयी है। यही वैश्विक अचेतन (कलेक्टिव अनकांशेसनेस) हम-सबके एक होने का कारण है। स्वामी विवेकानंद इसी बात को कहते थे कि इस अर्थ में भारत एक जड़ भौगोलिक इकाई नहीं है। बल्कि वह एक चेतन भौगोलिक इकाई है जो सीमाओं और सैन्य बलों पर ही कें...

विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025: "स्वस्थ शुरुआत, आशाजनक भविष्य"

प्रति वर्ष, दुनिया भर में 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन 7 अप्रैल 1948 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्थापना की याद में मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना के साथ ही विश्व स्वास्थ्य दिवस की नींव रखी गई थी, और तब से प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को इसे मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में सुधार करना और वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों पर ध्यान आकर्षित करना है। इसके लिए हर साल एक नई थीम निर्धारित की जाती है। विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025 की थीम है "स्वस्थ शुरुआत, आशाजनक भविष्य" (Healthy beginnings, Hopeful Futures)। यह थीम विशेष रूप से माता और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य गर्भावस्था, डिलीवरी, और पोस्टपार्टम (सूतिका) अवस्था के दौरान उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरतों पर जोर देना है, ताकि माता और नवजात मृत्यु दर (Maternal and Neonatal mortality) को कम किया जा सके। आयुर्वेद के अनुसार , गर्...

नीम का अद्भुत औषधि का प्रयोग: गुड़ीपड़वा पर्व से शुरुआत करके त्वचा रोगों को दूर करें - डॉ प्रकाश जोशी

गुड़ीपड़वा पर्व से नववर्ष की शुरुआत पर नीम के पत्तों का प्रयोग चर्म रोगों को दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। यह मान्यता चैत्र नवरात्रि के समय से प्रचलित है। आयुर्वेदाचार्यों ने अपनी संहिता ग्रंथों में यह उल्लेख किया है कि गुड़ीपड़वा पर्व पर 15 दिन तक नीम का प्रयोग काली मिर्च और मिश्री के साथ मिलाकर करने से वर्षभर त्वचा रोग उत्पन्न नहीं होते। नीम और पीपल: प्राकृतिक आक्सीजन के स्रोत नीम और पीपल ही ऐसे वृक्ष हैं जो 100% आक्सीजन इस संसार को प्रदान करते हैं। आयुर्वेद ग्रंथों में नीम को कई नामों से संबोधित किया गया है, जैसे अरिष्टक, पीचुमर्द, और हींगुनिर्यास। नीम के अद्भुत गुण: चर्म रोगों में लाभकारी नीम के अंदर जरा को रोकने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। इसमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो चर्म रोगों और त्वचागत विकारों में लाभकारी सिद्ध होते हैं। गुड़ीपड़वा पर्व पर नीम का सेवन: गुड़ीपड़वा पर्व से लगातार 15 दिन तक नीम का 10 ग्राम मात्रा में, काली मिर्च और मिश्री (5-5 नग) के साथ प्रयोग करने से त्वचागत विकारों में लाभ मिलता है और यह चीरयुवा बनाए रखने में मदद करता है। त्वचा के स...

ग्रीष्म ऋतु में आहार-विहार

‘ऋतु' शब्द काल विभाग की ओर संकेत करता है। इसी आधार पर आचार्यो ने पूरे वर्ष को छः ऋतुओं के अंतर्गत समाहित किया है। आयुर्वेदाचार्यो ने इन ऋतुओं को दो भागों  में बाँटा है।विसर्गकाल वह समय है जिसमें वर्षा (जिसमें लगभग 15जुलाई-15सितंबर तक समय ) शरद ( जिसमें लगभग 15सितंबर-15नवंबर तक समय  ) तथा हेमन्त ( जिसमें लगभग 15नवंबर-15जनवरी तक समय  ) ऋतुऐं आतीं हैं। इस समय सूर्य की किरणें कम तेजी से पृथ्वी पर पड़ती हैं और चंद्रमा का प्रकाश अधिक होने के कारण आहार पाचन की शक्ति अच्छी होती है, जिससे शरीर का बल वर्षा ऋतु से हेमन्त की तरफ दिनों दिन बढ़ता जाता है। और हम सभी के कार्य करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है तथा हमें जल्द ही थकान महसूस नहीं होती। इन ऋतुओं में होने वाले प्रभाव को हम इस सारणी के माध्यम से समझ सकते हैं - आदान काल में मुख्य रुप से जनवरी से जुलाई तक का समय होता है जिसमें शिशिर ( जिसमें लगभग 15जनवरी-15मार्च तक समय ) वसंत ( जिसमें लगभग 15मार्च-15मइ तक समय र्) तथा ग्रीष्म( जिसमें लगभग 15मई-15जुलाई तक समय ) ऋतुऐं आती हैं इस समय सूर्य का प्रकाश अधिक तेज होता है और सूर्य के प...

"स" शब्दों से सरोबार सप्तरंगीय मध्यप्रदेश बजट 2025 - प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता

प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता जी   समीक्षा : म.प्र. बजट 2025 माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी के नेतृत्व में सरकार के दूसरे बजट में म.प्र. के उपमुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने संस्कृत की सूक्तियों/सूत्रों से समारंभ करते हुए अपने सरल स्वभाव अनुरूप साहित्य के स शब्द का सर्वाधिक सदुपयोग करते हुए राज्य के बजट में सुगम परिवहन से सड़क, सिंचाई से स्वास्थ्य, सिंहस्थ से स्टेडियम, स्टार्टअप से सहकारी बैंकों तक, संग्रहालयों से स्मारकों तक, सोलर पार्क से स्वच्छ भारत मिशन, समृद्ध गांव से साहित्य विक्रय तक, और सफेद (श्वेत) क्रांति से संबल योजना तक के लिए 700 करोड़ रुपये तक की गहन संभावनाओं के संपोषणीय स्वरूप को बढ़ावा देने का सफल प्रयास किया है। बजट प्रस्तावों में बुनियादी ढांचे के लिए 70,515 करोड़ रुपये, स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास के लिए 50,333 करोड़ रुपये, शिक्षा के लिए 44,826 करोड़ रुपये और कृषि के लिए 58,257 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। बजट में सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए करीब 2 ट्रिलियन रुपये अलग रखे गए हैं। कोई नया टैक्स भार नहीं लगाए गए हैं, महिलाओं, किस...

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर फिल्म समीक्षा : "मिसेज" और "दो पत्ती" : महिलाओं के उत्पीड़न पर एक नई दृष्टि

हिंसा के भेद: 'मिसेज' और 'दो पत्ती' फिल्म के संदेश ✍️ बबली चतुर्वेदी        अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसा अवसर है, जब हम महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों पर विचार करते हैं। यह दिन न केवल महिला सशक्तिकरण की बात करता है, बल्कि उनके संघर्षों और योगदानों को भी पहचानता है। 2025 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विषय होगा “सभी महिलाओं और बालिकाओं के लिए : अधिकार, समानता, सशक्तिकरण।” पिछले कुछ वर्षों में, बॉलीवुड फिल्मों ने महिलाओं के मुद्दों पर खास ध्यान दिया है और उन पर आधारित कहानियां भी प्रस्तुत की हैं। ऐसी ही दो फिल्में हैं – "मिसेज" और "दो पत्ती", जो घरेलू हिंसा और महिला उत्पीड़न के मुद्दे को एक नए दृष्टिकोण से पेश करती हैं।  "मिसेज" – मानसिक उत्पीड़न भी हिंसा है "मिसेज" एक संवेदनशील और प्रभावी कहानी है, जो मानसिक उत्पीड़न के मुद्दे को बहुत प्रभावी ढंग से सामने लाती है। इस फिल्म की नायिका ऋचा (सान्या मल्होत्रा) एक ऐसे पारिवारिक माहौल में फंसी हुई हैं, जहां उसकी इच्छाओं और स्वतंत्रता को पूरी तरह से नकारा जाता है। उसकी सास, स...

लोक मान्य विक्रम संवत् ही राष्ट्रीय पंचांग हो - अजय बोकिल, वरिष्ठ लेखक

आजादी के बाद से ही यह बहस का विषय रहा है कि स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय पंचांग वो क्यों नहीं है, जो देश के अधिकांश हिस्से में लोकमान्य है। अर्थात् लोकमान्यता उस विक्रम संवत् की है, जिसे महाकाल की नगरी उज्जयिनी के प्रतापी हिंदू राजा विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों को हराने की स्मृति को शाश्वत करने के ई.पू. 57 में चलाया था। लेकिन भारत का आधिकारिक राष्ट्रीय पंचांग वो शक संवत् है, जो शक राजा रूद्रदमन ने 58 ईस्वी में भारतीयों पर विजय के उपलक्ष्य में चलाया जाता है। कहा जाता है कि शक संवत् के पक्ष में विद्वानों का पलडा सिर्फ इसलिए झुका, क्योंकि ऐतिहासिक प्रमाण शक संवत् के पक्ष में ज्यादा थे। संभव है कि संवतारंभ की तिथि के हिसाब से शक संवत् के पक्ष में ज्यादा प्रमाण हो, लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि प्रामाणिक होने के दावे के बाद भी शक संवत् जन पंचांग का हिस्सा क्यों नहीं बन पाया? आज भी हिंदुओं के सभी तीज त्यौहार, संस्कार व ज्योतिष गणनाएँ ज्यादातर विक्रम संवत् के हिसाब से ही होती हैं न कि शक संवत् के हिसाब से। इसका भावार्थ यही है कि आज भी लोक मान्यता विक्रम संवत् की ज्...

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार