मुख्य वक्ता डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष उज्जैन, मध्य प्रदेश ने कहा- तुलसीदास का साहित्य समस्त सुमंगल देने वाला है । उनकी रचनाओं को आत्मसात करने से , रामराज्य, लोक राज्य, स्वराज्य स्थापित हो जाएगा । विशिष्टअतिथि डॉ.शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, मुख्य राष्ट्रीय संयोजक, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना , पुणे, महाराष्ट्र ने कहा- तुलसीदास भारतीय समाज के उन्नायक और सुधारक हैं । उन्होंने विश्व बंधुत्व की भावना को केंद्र में रखते हुए रचनाऐं की हैं।
संगोष्ठीआयोजक ने प्रस्तावना मे डॉ. प्रभु चौधरी , महासचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा- संत तुलसीदास त्यागमयी मूर्ति थे। और कहा जो राष्ट्र के लिए काम करते हैं , उनकी रक्षा ईश्वर किसी न किसी रूप में करते हैं।
अध्यक्षीय भाषण में कार्यकारी अध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, श्रीमती सुवर्णा जाधव, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि- आँख मूंदकर चलना भक्ति नहीं है । तुलसीदास के दोहे आज भी प्रासंगिक हैं।
डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, बिहार ने कहा- तुलसीदास की रचनाएं धर्म , अर्थ, काम , मोक्ष प्रदान कराने वाली हैं।डॉ.अनुसूया अग्रवाल, छत्तीसगढ़ ने कहा - गोस्वामी का अर्थ होता है, जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो।श्रीमती सुनीता मंडल ने कहा- विनय पत्रिका ऐसा ग्रंथ है । जिसमें गोस्वामी जी ने युवा पीढ़ी के भटकाव को समाप्त करने के सूत्र बताए हैं।
डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद , मुख्य महासचिव महिला इकाई ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया।कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. संगीता पाल, गुजरात द्वारा सरस्वती वंदना से हुई । स्वागत भाषण और आभार व्यक्त डॉ. प्रभु चौधरी , महासचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, उज्जैन ने किया। कार्यक्रम में श्रीमती रश्मि लहर , लखनऊ , डॉ.रश्मि वाष्नेय , डॉ. आशा सिंह सिकरवार, श्रीमती स्वाति शर्मा, गाजियाबादआदि ने भी विचार व्यक्त किए। श्री सोनू जी आदि अन्य अनेक गणमान्य उपस्थित रहे।
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