साहित्य के पुनर्पाठ की आवश्यकता सदैव बनी रहती है - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा नाथ और सिद्ध काव्य का पुनर्पाठ पर केंद्रित विशिष्ट व्याख्यान दिया प्रो शर्मा ने हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला के महत्त्वपूर्ण सत्र में बोलते हुए विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि साहित्य शब्दार्थ से संवेदना को मूर्त रूप देता है। जीवन और कविता के नजरिये भिन्न - भिन्न हो सकते हैं और इसीलिए साहित्य के पुनर्पाठ की सदैव आवश्यकता बनी रहती है। जब तुलसी रामचरितमानस लिख रहे थे तो यह वाल्मीकि की कविता का पुनर्पाठ था, मैथिलीशरण गुप्त जब साकेत लिख रहे थे तो यह तुलसी की कविता का पुनर्पाठ था। बाद में राम की शक्तिपूजा और तुलसीदास जैसे निराला की कृतियाँ भी पुनर्पाठ हैं। उन्होंने अनंतसिद्ध गुरु गोरखनाथ के द्वारा बताए गए कायागढ़ पर विजय पाने पर बल देते हुए कहा कि माया, ममता के बन्धन से ऊपर उठना ही मुक्ति है। बाह्य साधना के स्थान पर अंतस्साधना पर बल, प्रवृत्ति के स्थान पर निवृत्ति का आग्रह, आंतरिक श...