Skip to main content

Posts

Showing posts with the label विशेष आलेख

उपलब्धियों से भरें हैं, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के - सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण के 9 साल

  देखें, पढ़ें विस्तृत जानकारियों से भरा विवरण...

इंटीरियर डिज़ाइनिंग एक कला और विज्ञान

काशवी जैन, इंटीरियर डिज़ाइनर इंटीरियर डिज़ाइनिंग एक कला और विज्ञान है जो किसी स्थान के इंटीरियर को और अधिक सौंदर्यपूर्ण रुप से कार्यात्मक वातावरण बनाता है। चाहे आप घर, कार्यालय, होटल या रेस्टोरेंट डिजाईन कर रहे हो, इंटीरियर डिजाईनर एक ऐसी जगह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो सुंदर और व्यावहारिक दोनों हो । इंटीरियर डिज़ाइनिंग सिर्फ सही रंग पैलेट या सही फर्निचर के सिलेक्शन करने के बारे में नही है । यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें सावधानीपूर्वक योजना, समन्वय और विस्तार पर ध्यान देना शामिल है । एक अच्छे इंटीरियर डिज़ाइनर को क्लाइंट की जरूरतों और प्राथमिकताओं के साथ-साथ जगह की कमी जेसे आकर और लेआउट को समझाना चाहिए । इंटीरियर डिज़ाइनिंग के प्रमुख तत्वों में से एक स्पेस प्लानिंग है। इसमें स्पेस का उपयोग करने का सबसे अच्छा तरीका निर्धारित करने के लिए स्पेस का विश्लेषण करना शामिल है । इसमें एक ऐसा लेआउट बनाना भी शामिल है जो कार्यात्मक और सौंदर्य दोनों तरह से मनभावन हो । उदाहरण के लिए, एक बैठक कक्ष का लेआउट आरामदायक और बातचीत के लिए अनुकूल होना चाहिए, जबकि एक रसोई का लेआउट कुशल होना चा

औषधियों में विराजती है नवदुर्गा, इन ९ औषधियों में विराजती है नवदुर्गा

मां दुर्गा नौ रूपों में अपने भक्तों का कल्याण कर उनके सारे संकट हर लेती हैं। इस बात का जीता जागता प्रमाण है, संसार में उपलब्ध वे औषधियां, जिन्हें मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के रूप में जाना जाता है। नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया और चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि यह औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली और और उनसे बचा रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गाकवच कहा गया। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जीवन जी सकता है। आइए जानते हैं दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों को जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है। १ प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ - नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है। पथया - जो हित करने वाली है। कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाल

विश्व डायबिटीज डे पर आयुर्वेद चिकित्सा का दृष्टिकोण

डायबिटीज आमतौर पर प्रमेह अथवा शक्कर की बीमारी के नाम से जाना जाता है। यह पाचन प्रक्रिया में उत्पन्न विकृति के कारण होने वाली बीमारी है यह बीमारी किसी भी व्यक्ति को हो सकती है । भारत में डायबिटीज के करीब 77 मिलियन मरीज हैं ,इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक भारत में  प्रमेह मरीजों की संख्या 101 मिलियन हो सकती है। विकासशील देशों में शहरीकरण से लोगों की जीवनशैली भी बदल रही है ,एक ही जगह बैठकर अधिक समय तक काम करना ,व्यायाम का अभाव ,आहार की बदलती आदतें, तथा बढ़ा हुआ मानसिक तनाव इन सब कारणों से बड़ा मोटापा कोलेस्ट्रोल तथा रक्तभार बीपी उत्पन्न होते हैं । ऐसे रोगियों में प्रमेह रोग होने की संभावना अधिक होती है।   डायबिटीज क्या है? डायबिटीज शरीर के रक्त में असामान्य से अधिक बढ़ी हुई शर्करा को कहते हैं अपर्याप्त इंसुलिन के उत्पादन के कारण होता है, टाइप 2 डायबिटीज अक्सर उम्र दराज लोगों में देखा जाता है यह डायबिटीज का सबसे आम प्रकार है । डायबिटीज होने के क्या कारण हैं ? 1. आहार - मीठे रस वाले पदार्थों का अधिक मात्रा में और अनियमित सेवन करना, दूध व दूध से बने पदार्थों का अ

आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्न मंथन का संदेश लेकर जिनका अवतार हुआ, सतत गतिशीलता और सुनियोजन से लक्ष्य प्राप्ति के देवता आदि धन्वंतरि को नमन

आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्न मंथन का संदेश लेकर जिनका अवतार हुआ सतत गतिशीलता और सुनियोजन से लक्ष्य प्राप्ति के देवता आदि धन्वंतरि को नमन यद्यपि वैद्यक शास्त्र के जन्मदाता के रूप में धन्वंतरि जी का नाम जनसाधारण में प्रचलित है। इतिहास में धन्वंतरि नाम के तीन आचार्यों का वर्णन प्राप्त होता है । सर्वप्रथम धनवंतरी प्रथम देवलोक में जो स्थान मधु कलश लिए हुए अश्विनीकुमारों को प्राप्त होता है उसी प्रकार मृत्यु लोक में अमृत कलश लिए हुए आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि को प्राप्त है। पुराणों में विवरण प्राप्त होता है कि क्षीरसागर के मंथन से अमृत कलश लिए हुए धन्वंतरि उत्पन्न हुए। धन्वंतरि समुद्र से निकले हुए 14 रत्नों में गिने जाते हैं श्री मणि रंभा वारुणी अमिय शंख गजराज कल्पद्रुम शशि धेनू धनु धनवंतरी विष वाजि देवता और असुर समुद्र के मंथन का निश्चय करके वासुकि नाग को रज्जू बनाकर व मंदराचल पर्वत को मथनी बनाकर पूर्ण शक्ति लगाकर समुद्र मंथन किए। तत्पश्चात धर्मात्मा आयुर्वेदमय पुरुष दंड और कमंडल के साथ प्रगट हुए। मंथन के पूर्व समुद्र में विविध प्रकार की औषधियां डाली गई थी और मंथन से उनके संयु

श्लोक से लोक तक की आस्था के केन्द्र श्री महाकालेश्वर - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

  श्लोक से लोक तक की आस्था के केन्द्र श्री महाकालेश्वर  -  प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्‌। अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वंदे महाकालमहासुरेशम्‌॥ सुपूज्य और दिव्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों में परिगणित उज्जयिनी के महाकालेश्वर की महिमा अनुपम है। सज्जनों को मुक्ति प्रदान करने के लिए ही उन्होंने अवंतिका में अवतार धारण किया है। ऐसे महाकाल महादेव की उपासना न जाने किस सुदूर अतीत से अकालमृत्यु से बचने और मंगलमय जीवन के लिए की जा रही है। शिव काल से परे हैं, वे साक्षात्‌ कालस्वरूप हैं। उन्होंने स्वेच्छा से पुरुषरूप धारण किया है, वे त्रिगुणस्वरूप और प्रकृति रूप हैं। समस्त योगीजन समाधि अवस्था में अपने हृदयकमल के कोश में उनके ज्योतिर्मय स्वरूप का दर्शन करते हैं। ऐसे परमात्मारूप महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से ही अनादि उज्जयिनी को पूरे ब्रह्माण्ड में विलक्षण महिमा मिली है। पुरातन मान्यता के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में तीन लिंगों को सर्वोपरि स्थान मिला है – आकाश में तारकलिंग, पाताल में हाटकेश्वर और इस धरा पर महाकालेश्वर। आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्‌। भूलोके

शरद पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक व आयुर्वेदिक महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आती है। प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर दिन रविवार को मनाई जाएगी। शरद पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक व आयुर्वेदिक महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होता है। इस कारण यह तिथि विशेष महत्व रखती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी विचरण करती हैं, इसलिए माता लक्ष्मी की पूजा करने से उनका विशेष आशीर्वाद मिलता है तथा जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है। हिंदू मान्यता के अनुसार लोग उपवास पूजन करते हैं। आयुर्वेद और शरद पूर्णिमा आयुर्वेद के अनुसार ऋतु विभाजन के क्रम में विसर्ग काल का विभाजन वर्षा शरद हेमंत ऋतु में होता है। विसर्गकाल में सूर्य दक्षिणायन में गति करता है। विसर्ग काल में चंद्रमा पूर्ण बल वाला होता है। समस्त भूमंडल पर चंद्रमा अपनी किरणों को फैलाकर विश्व का निरन्तर पोषण करता रहता है, इसलिये विसर्ग काल को सौम्य कहा जाता है। आयुर्वेद मत के अनुसार वर्षा ऋतु में पित्त का संचय होता है तथा शरद ऋतु में पित्त का प्रकोप होता है। प्राचीन काल स

लोक कला और साहित्य के मर्मज्ञ प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ( विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ) से ललित कुमार सिंह का साक्षात्कार

"जरुरी है लोक कलाओं के स्पन्दन को महसूस करना" लोक एक व्यापक संज्ञा है और उसकी परिधि में सब कुछ समाया हुआ है। ऐसी कला जो लोगों द्वारा बिना किसी औपचारिकता के कंठानुकंठ या एक हाथ से दूसरे हाथ तक हस्तांतरित होती हुई आगे बढ़ती है, वह अपने आप में लोक कला है। लोककलाओं की भी अपनी बारीकियां हैं, उसका अपना शास्त्र है। कई बार यह जो विभाजन किया जाता है कि शास्त्र अलग है लोक अलग है लेकिन लोग परंपराओं में भी बहुत सारे हिस्से ऐसे हैं जिनमें सूक्ष्मताओं की ओर ध्यान दिया जाता है। कुछ नियम मर्यादायें हैं उनका भी पालन किया जाता है। बस अंतर यहां आ जाता है कि लोग कलाकार उसे स्थानांतरित करता है तो आने वाली पीढ़ी उसमें अपनी ओर से कुछ इज़ाफा करती है और बिना किसी औपचारिकता के ,बिना किसी विधि विधान के, बिना किसी शास्त्री परिभाषा के निरंतर आगे बढ़ती रहती है। हमारा देश जो है लोक कलाओं का खजाना है। इस देश में ऐसा कोई हिस्सा नहीं है जहां पर कोई विशेष प्रकार की लोक कला ने जन्म नहीं लिया हो, उसका विकास नहीं हुआ हो। संकट यह है कि आश्रय के आभाव में लोक कला के सामने संकट आ खड़ा हुआ है। एक जमाने में जो मुखौ

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार