जिसे अपने कष्टों से मुक्ति चाहिए उसे लड़ना होगा। और जिसे लड़ना है, उसे पढ़ना होगा। क्योंकि विज्ञान के बिना लड़ोंगे तो हार जाओगे। यह है बाबा साहेब आंबेडकर के विचार, जिन्होंने दुनिया भर के उत्पीड़ितों, दलितों, पिछड़ों को जीत का एक मंत्र दिया, आजाद भारत के संविधान की रचना की। इस महान क्रांतिकारी में यह हिम्मत कहां से पैदा हुई? किन परिस्थितियों में जूझकर वह तपे, पले, बढ़े? और किन कठिनाइयों और यातनाओं के दौर से गुजरे कि सारी दुनिया के उत्पीड़ितों, दलितों, कमजोरों और वंचितों की आवाज और उनके मसीहा बन गए। उन्होंने भारत के एक ऐसे ग्रंथ की रचना कर डाली जिसमें समूचे समाज के लिए अमन, भाई-चारा, न्याय, समानता, सामाजिकता, शांति, प्रेम, समता, और देश प्रेम के सूत्र पिरो दिए। भारत के संविधान की रचना कर डाली, जिसकी प्रस्तावना ही.... हम भारत के लोग... से आरंभ होती है। दलित, वंचित और पिछड़ी जातियों के उत्थान और सहायता करने के संकल्प के यह बीज किसी भी इंसान में बचपन में ही मौजूद रहते हैं। विकट और विषम परिस्थितियां उन्हें और मजबूत करती रहती हैं। मैंने इसी विचार को केंद्र में रख कर बाबा साहेब के बचपन की घटनाओं क