Skip to main content

आंबेडकर का बचपन

 

जिसे अपने कष्टों से मुक्ति चाहिए उसे लड़ना होगा। और जिसे लड़ना है, उसे पढ़ना होगा। क्योंकि विज्ञान के बिना लड़ोंगे तो हार जाओगे।

यह है बाबा साहेब आंबेडकर के विचार, जिन्होंने दुनिया भर के उत्पीड़ितों, दलितों, पिछड़ों को जीत का एक मंत्र दिया, आजाद भारत के संविधान की रचना की। इस महान क्रांतिकारी में यह हिम्मत कहां से पैदा हुई? किन परिस्थितियों में जूझकर वह तपे, पले, बढ़े? और किन कठिनाइयों और यातनाओं के दौर से गुजरे कि सारी दुनिया के उत्पीड़ितों, दलितों, कमजोरों और वंचितों की आवाज और उनके मसीहा बन गए। उन्होंने भारत के एक ऐसे ग्रंथ की रचना कर डाली जिसमें समूचे समाज के लिए अमन, भाई-चारा, न्याय, समानता, सामाजिकता, शांति, प्रेम, समता, और देश प्रेम के सूत्र पिरो दिए। भारत के संविधान की रचना कर डाली, जिसकी प्रस्तावना ही.... हम भारत के लोग... से आरंभ होती है।

दलित, वंचित और पिछड़ी जातियों के उत्थान और सहायता करने के संकल्प के यह बीज किसी भी इंसान में बचपन में ही मौजूद रहते हैं। विकट और विषम परिस्थितियां उन्हें और मजबूत करती रहती हैं। मैंने इसी विचार को केंद्र में रख कर बाबा साहेब के बचपन की घटनाओं को जानने समझने की कोशिश की और बच्चों के ही नाटक के रूप में उसे रुपांतरित करने का विचार किया। इस आशा के साथ कि बच्चे उनके बालपन के संघर्षों को जांचे परखें और भविष्य के आदर्श नागरिक बनने की प्रेरणा ले सकें। बाबा साहेब के बचपन की छानबीन करते हुए मैंने पाया कि तत्कालीन समय और समाज में दलितों, पिछड़ों और अछूतों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियां बहुत ही कष्टदायक और विपरीत थीं। जात-पात, ऊंच-नीच, अंधविश्वास, अशिक्षा का बोल-बाला था। सारा समाज जाति, धर्म और वर्ग में बंटा हुआ था। देश की सारी पूंजी, संसाधन और अधिकार कुछ ही लोगों के हाथों में सीमित था। दलितों, उनके परिवारों और उनके बच्चों को खाने-पीने, आवास, निवास और पढ़ने, लिखने के अवसर बहुत सीमित थे। उनके साथ सामाजिक बहिष्कार, छुआ-छूत और अमानवीय व्यवहार किया जाता था। शिक्षा के अधिकार और साधन भी कुछ वर्गों तक ही सीमित थे। ऐसे समय में जब बाबा साहेब ने स्कूल में प्रवेश लिया तो उन्हें कदम-कदम पर अपमान, तिरस्कार, अवहेलना की पीड़ा झेलना पड़ी। किंतु बाबा साहेब ने अपने पिता के सपनों को साकार करने की दिशा में हार मानने से इनकार कर दिया। एक लोह पुरुष की भांति अपनी प्रतिभा, वीरता और संकल्प के साथ आकाश को भेदते हुए समस्त मानव जाति को अशिक्षा, अंधविश्वास, अन्याय, असमानता से मुक्त करने के मार्ग को अपने जीवन का लक्ष्य बना डाला। निराकरण के रूप में भारत के संविधान ने जन्म लिया जिसमें सब के लिए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से एक साथ रहने के कानून कायदे और नियमों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसी विचार को लेकर मैंने नाटक लेखन एवं निर्देशन का काम शुरू किया। मेरा मानना है कि कोी भी इतिहास केवल घटनाओं का लेखा-जोखा होता है लेकिन मैंने अपनी नाट्य रचना में कोशिश की है कि बाबा साहेब के बचपन की घटनाओं में यातनाओं, संवेदनाओं, उत्पीड़नों, तिरस्कार और अपमान को संवेदना, चेतना के साथ नाट्य रुपांतरण कर सकूं।

मैंने 8 से 16 साल के बच्चों के साथ कार्यशाला की शुरुआत की, मैंने कोशिश की कि मानव जाति के यातना के इतिहास को स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, न्याय, सामाजिकता की आवश्यकता के साथ सामने रखूं। इस विषय पर बच्चों से कहानी, किस्से, बातचीत, कविता, चित्रकला आदि माध्यमों का प्रयोग करते हुए बाबा साहेब के बचपन के सूत्रों को इकट्‌ठा कर अभिनय और आशु अभिनय, नाटकीय खेलों के माध्यम से एक कड़ी में पिरोना आरंभ किया। शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए नाट्य रचना की और बढ़ता चला गया। बाबा साहेब ने अपने मृत्यु पूर्व संदेश में कहा था कि किसी भी देश का संविधान कितना ही अच्छा क्यों न हो, अगर उसे लागू करने वाले अच्छे नहीं है तब वह संविधान भी अच्छा नहीं होगा। अब आने वाली पीढ़ी पर यह दायित्व है कि बाबा साहेब के जीवन से प्रेरणा लेकर शिक्षा को हथियार बना कर संविधान और देश की स्वतंत्रता और समानता की रक्षा करे।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्

तृतीय पुण्य स्मरण... सादर प्रणाम ।

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1003309866744766&id=395226780886414 Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bkk News Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets -  http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं