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अंगों की बातचीत - हम अभी जिंदा है - आसन और योग शरीर के कण-कण को जिंदा रखते हैं

✍️ डॉ निरंजन सराफ 

आज के इस आधुनिक युग में हमारा शरीर और हमारे शरीर के सभी अंग काफी पीड़ा झेल रहे हैं इसी संदर्भ में मानव शरीर के अंगों ने एक गोष्ठी रखी जिसमें विभिन्न अंग एक दूसरे से बात कर रहे हैं । वे एक दूसरे से कह रहे हैं हम अभी जिंदा है । आंतें कहती हैं मैं तो पता नहीं क्या-क्या झेल रही हूं  मनुष्य ने हमें वस्तु समझ रखा है इसीलिए मनुष्य बहुत सारे रसायनों का हम पर प्रयोग कर रहा है सामान्यतया हम रसायनों का प्रयोग निर्जीव वस्तुओं पर करते हैं परन्तु मनुष्य रसायनों का प्रयोग अब हम पर भी बहुत अधिक मात्रा में करने लगा है हमें भी निर्जीव समझने लगा है वह यह भी नहीं सोच पा रहा है कि हम अभी जिंदा हैं । दवाइयों में प्रिजर्वेटिव, टोमेटो सॉस में प्रिजर्वेटिव, बिस्किट में प्रिजर्वेटिव, ब्रेड में प्रिजर्वेटिव, जैम में प्रिजर्वेटिव, मैगी में प्रिजर्वेटिव, आटें में प्रिजर्वेटिव, सारे पिसे हुए मसालों में प्रिजर्वेटिव, कोल्ड ड्रिंक में प्रिजर्वेटिव आइस क्रीम में प्रिजर्वेटिव, फ्रेंच फ्राइज में प्रिजर्वेटिव, केमिकलों के द्वारा पके हुए आम, पपीता, केला, गाय भैंसों को रोज ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन लगा-लगा कर निकाला हुआ दूध । इतने सारे रसायनों को आंतें तो झेल ही रही हैं आंत्र में यह सारे रसायन अवशोषित होकर शरीर के सभी अंगों में पहुंच रहे हैं और यक्रत जो एक बहुत-बहुत बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है वह सारे विषों को नष्ट करता है वह भी कह रहा है मेरे तो हाल बेहाल है मैं कितने रसायनों को नष्ट करूं ।

अब त्वचा कहती है मेरे भी यही हाल है मैं भी पता नहीं क्या-क्या झेल रही हूं विभिन्न तरह के साबुनों, बॉडी वॉश से रोज मुझ में उपस्थित प्राकृतिक तेल जिसे सीबम कहते हैं को नष्ट कर दिया जाता है और मुझे रुखा बनाया जाता है । विभिन्न तरह के शैंपू,  विभिन्न तरह की केमिकल युक्त क्रीम, विभिन्न तरह की लिपस्टिक, जिसमें तरह-तरह के केमिकल होते हैं आजकल केमिकल इंजीनियरिंग का प्रयोग हो रहा है, शैंपू, बॉडी वॉश या लिपस्टिक आदि बहुत शाइनी दिखे या क्रीम बहुत शाइनी दिखे । वह बहुत स्मूथ और सॉफ्ट दिखे और महसूस भी हों । सब रसायनों का खेल है पर इस खेल में सृष्टि की सबसे सुंदर रचना मनुष्य और मनुष्य के शरीर के अंग बेजान हो रहे हैं । त्वचा फिर कह रही है कि वायु प्रदूषण से भी बहुत सारे रसायनों के संपर्क में आकर मेरा दम घुट रहा है ।

तालु कहता है हम भी बहुत कुछ झेल रहे हैं और मैं नर्म तालु जो जीभ के नीचे हूं मुझसे तो सबसे तेजी से दवाओं का अवशोषण होता है इसीलिए हृदयघात होने पर जीभ के नीचे दवा रखी जाती है ताकि हृदयाघात से बचा जा सके और मनुष्य हमें बिल्कुल भी नहीं बख्श रहा है। केमिकल वाले पेस्ट, केमिकल वाले माउथवॉश,  सिगरेट, तंबाखू, विभिन्न जहरीले रसायनों वाले गुटके, प्रिजर्वेटिव वाली विभिन्न चॉकलेट्स जिन्हें मनुष्य चूसते रहते हैं ।

फेफड़े कहते हैं, हमारा भी वही हाल है अनगिनत गाड़ियों और कारखानों के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है । पेड़ों की कटाई होती जा रही है और पूरे वातावरण में अत्यंत जहरीली गैसें घुल रही हैं । साथ में सिगरेट हमारी जान ही लिए जा रही है । आयुर्वेद में तो घी, दालचीनी, मुलेठी इलायची, नागरमोथा, जटामांसी, बरगद- पीपल की छाल जैसी दवाओं से धूमपान होता था । जो हमें स्वस्थ और बलवान रखते थे ।

तात्पर्य यह है कि हम जीवन की आपाधापी में खुद को भूल गए हैं शरीर केवल इतना ही चाहता है कि उसे दिन भर में ध्यान या आसन के द्वारा आधा से एक घंटा शांति मिले और शरीर के कण-कण में रक्त का भरपूर संचार हो और शरीर के कण-कण को बलवान रखने के लिए हमारे पौराणिक ग्रंथों में 84 लाख आसनों का वर्णन है जिसका तात्पर्य है कि ऋषि यह चाहते थे कि हमारे शरीर के हर एक अंग एवं हर एक मांसपेशी को हम आसनों के द्वारा संकुचित या प्रसारित करके सक्रिय रखें जिससे उनमें भरपूर रक्त संचार हो और वह बहुत ज्यादा स्वस्थ रहे । 

प्राचीन ऋषियों या योग या आयुर्वेद ग्रंथों का केवल एक ही उद्देश्य था कि हम स्वास्थ्य के उच्चतम स्तर, सौंदर्य के उच्चतम स्तर, मानसिक स्थिति के उच्चतम स्तर को पा सके, यह योग और आयुर्वेद की हर एक विधा में देखने को मिलता है चाहे वह शरीर की मालिश हो, चाहे नाक में तेल डालना हो, चाहे शरीर की मालिश करना हो या आसनों के द्वारा शरीर को अत्यंत दृढ़ बनाना हो या प्राणायाम के द्वारा फेफड़ों को अत्यंत सक्रिय करके भरपूर ऑक्सीजन को शरीर के कण-कण में पहुंचना हो जिससे कि शरीर का कण-कण अत्यंत स्वस्थ और अत्यंत बलवान हो सके । 

आधुनिक विज्ञान भी यही कहता है कि जब हम व्यायाम या योग करते हैं तब एंडोर्फिन, सेराटोनिन,  ऑक्सीटोसिन जैसे हैप्पी हार्मोन हमारे शरीर में स्रवित होते हैं जो कि हमारे शरीर को सुख, शांति और प्रसन्नता देते हैं एवं शरीर के दर्द को दूर करते हैं । 

आसन, प्राणायाम और ध्यान इस प्रकार से हमारे शरीर के कण-कण को स्वस्थ रखने हेतु उन्हें सक्रिय रखते हैं उनमें उत्तम ऑक्सीजन पहुंचाते हैं, उन्हें बलवान बनाते हैं और हमें पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करते हैं ।

✍️ डॉ निरंजन सराफ 

एसोसिएट प्रोफेसर स्वस्थवृत्त एवं योग विभाग 

शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय उज्जैन

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