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विश्व में हो रहे ब्रह्मांडीय परिवर्तनों को समझने में महत्वपूर्ण सहायता कर रहे हैं गणित के विभिन्न स्वरूप

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस आईसीएमएसएएसए 2025 ICMSASA-2025 का भव्य समापन हुआ

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में कॉस्मोलॉजी और विज्ञान के नए आयामों पर हुआ मंथन, 90 शोध पत्र प्रस्तुत

Ujjain | तीन दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आईसीएमएसएएसए 2025 - ICMSASA-2025 का गरिमामय समापन संपन्न हुआ। इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में देश-विदेश के सुप्रसिद्द वैज्ञानिकों, गणितज्ञों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया और विज्ञान के बदलते स्वरूप पर अपने विचार साझा किए। समापन समारोह में साउथ अफ्रीका की प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. निरूपा भीष्म मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। विशिष्ट अतिथि अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक डॉ. अरुण भीष्म, दक्षिण अफ्रीका, विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा थे। अध्यक्षता पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो व्ही एच बादशाह ने की। अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की उपलब्धियां पर विभागाध्यक्ष एवं मुख्य समन्वयक प्रोफेसर संदीप कुमार तिवारी ने प्रकाश डाला। कार्यक्रम में गणितज्ञ एवं लेखिका डॉक्टर सुमन जैन द्वारा भगवान महावीर के सिद्धांतों पर केंद्रित पुस्तक का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर वी. एच. बादशाह ने अपने उद्बोधन के साथ ही संगोष्ठी की महत्ता को रेखांकित करते हुए सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। 

साउथ अफ्रीका की सुप्रसिद्ध सोशियोलॉजिस्ट डॉ. निरूपा भीष्म ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए संगोष्ठी की उपलब्धियों की सराहना की। 

सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि प्रागैतिहासिक काल से लेकर वैदिक एवं ऐतिहासिक काल तक भारत ने गणितीय विज्ञान और अनुप्रयोगों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उसने बाद के दौर में विश्व सभ्यता और विज्ञान बोध पर गहरा प्रभाव डाला। आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे भारतीय ऋषियों के योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकेगा।

संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में कॉस्मोलॉजी और गणित के अद्भुत समन्वय पर मंथन किया गया। कॉन्फ्रेंस के प्रारंभिक सत्रों में पन्द्रह से अधिक विशिष्ट व्याख्यान आयोजित किए गए। प्रथम सत्र का आकर्षण डॉ. अरुण भीष्म का व्याख्यान रहा। उन्होंने 'कॉस्मोलॉजी के विभिन्न आयामों' पर अपने विचार प्रस्तुत किए। डॉ. भीष्म ने बताया कि वर्तमान में विश्व में हो रहे ब्रह्मांडीय परिवर्तनों - 'कॉस्मोलॉजिकल चेंज' को समझने में गणित के विभिन्न स्वरूप महत्वपूर्ण सहायता कर रहे हैं। उन्होंने जोर दिया कि गणितीय सूत्रों के माध्यम से अब जटिल कैलकुलेशन अति शीघ्र और सटीक रूप से किए जा रहे हैं।

कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन अकादमिक रूप से अत्यंत समृद्ध दस से अधिक विशिष्ट व्याख्यान आयोजित किए गए। इस सत्र में रोमानिया, तुर्की और डरबन (साउथ अफ्रीका) की जुलुलैंड यूनिवर्सिटी से आए विषय विशेषज्ञों ने अपने शोध और विचार रखे। साथ ही भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे बिट्स पिलानी (BITS Pilani), प्रयागराज यूनिवर्सिटी और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के विद्वानों ने भी अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए। इसके साथ ही अलग-अलग संयुक्त सत्र आयोजित किए गए, जिनमें देश-विदेश के प्रतिभागियों द्वारा लगभग 90 रिसर्च पेपर (शोध पत्र) प्रस्तुत किए गए।

समापन दिवस की शुरुआत यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका (USA), रोमानिया और दिल्ली यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के विशिष्ट व्याख्यानों से हुई। तत्पश्चात, भव्य समापन समारोह का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के अंत में संगोष्ठी समन्वयक प्रो संदीप कुमार तिवारी ने तीन दिनों तक चले ज्ञान के इस महाकुंभ में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें कॉन्फ्रेंस की उपलब्धियों को रेखांकित किया गया। अंत में, संगोष्ठी के सह-संयोजक डॉ. राजेश कुमार टेलर ने सभी अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।

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