Skip to main content

सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा एवं हाइड्रोजन ऊर्जा होंगे भविष्य में पृथ्वी के ब्रह्मा, विष्णु ,महेशृ - पद्मश्री प्रो.जी. डी. यादव

सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय में "रासायनिक और सतत विज्ञान में अभूतपूर्व नवाचार :शोध और शिक्षा" विषय पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ शुभारंभ

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री प्रो.जी. डी.यादव निदेशक इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी ,मुंबई,विशिष्ट अतिथि विधायक उज्जैन उत्तर श्री अनिल जैन कालूहेड़ा एवं प्रो.डी.सी डेका, कुलपति मिजोरम विश्वविद्यालय, एसोसिएशन ऑफ केमिस्ट्री टीचर्स के अध्यक्ष प्रोफेसर प्रभु तथा महासचिव श्री आर यामगर भी उपस्थित थे। 

स्वागत भाषण संयोजिका प्रो. उमा शर्मा, विभागाध्यक्ष रसायन शास्त्र विभाग ने दिया। उद्घाटन समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्राट वि. वि. विद्यालय, रसायन शास्त्र विज्ञान अ.शा के पूर्व छात्र, विधायक, उज्जैन (उत्तर) श्री अनिल जैन कालूहेड़ा ने उज्जैयनी नगरी के गौरवशाली इतिहास को उल्लेखित करते हुए संगोष्ठी में उपस्थित बुद्धिजीवी वर्ग का आहवान करते हुए कहा कि वे आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महती भूमिका निभा सकते हैं. कोविड महामारी के दौरान भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा वैक्सीन निर्माण का कार्य अत्यंत कम समय में कर दिखाया जो आत्म निर्भरता का अनुपम उदाहरण है ।

प्रोफेसर आर. सी. मौर्य सर को आजीवन उपलब्धि पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ACT सर्वश्रेष्ठ उमंग महिला पुरस्कार एम. राधा मैडम को दिया गया।अगला पुरस्कार, ACT युवा सर्वश्रेष्ठ रसायन विज्ञान शिक्षक पुरस्कार (45 वर्ष से कम आयु) डॉ. मानुष प्रति हजारिका को दिया गया, जिन्हें रसायन विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए सम्मानित किया गया।डॉ. उमासाई प्रकाश पुरस्कार रसायन विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए डॉ. संगीता शर्मा को दिया गया।

प्रोफेसर वी. अनुराधा को महाविद्यालय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ महिला शिक्षिका का पुरस्कार मिला। रसायन विज्ञान में उत्कृष्ट शोध के लिए प्रोफेसर विवेक कुमार तिवारी को पुरस्कार दिया गया।राज्य स्तर पर सर्वश्रेष्ठ स्नातकोत्तर रसायन विज्ञान शिक्षक का पुरस्कार पी. पद्मावती को दिया गया।

प्रोफेसर हरीश कुमार को रसायन विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया।

उद्घाटन समारोह में सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय, उज्जैन और मिजोरम विश्वविद्यालय, मिजोरम के बीच एम ओ यू किया गया, समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

इसके बाद पद्मश्री (डॉ.) जी. डी. यादव सर का बहुप्रतीक्षित मुख्य भाषण हुआ, जी. डी. यादव सर ने अपने व्याख्यान की शुरुआत जलवायु परिवर्तन को प्रमुख चिंता बताते हुए की। उन्होनें कार्बन आधारित ईंधन और उनके हानिकारक प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया। प्रोफेसर यादव ने भारत के क्लाइमेट चेंज पर गहन शोध करते हुए चर्चा की, उन्होंने कहा energy is globally geopolitical issue. भारत के किसानों द्वारा पराली जलाने पर उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त की उन्होंने कहा कि प्रतिवर्ष भारत लगभग 100 MMTA कृषि अनुपयोगी पदार्थ जलाता है। उन्होंने कार्बन के नवीनीकृत और अनविनिकृत स्त्रोत के बारे में जानकारी दी। इसके साथ ही नेट जीरो तथा सस्टेनेबिलिटी की महत्वपूर्ण अवधारणा बताई । 5 R की अवधारणा दी जिसका अर्थ Reuse, Repurpose, Reduce, Reuse, Recycle engineering है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा एवं हाइड्रोजन ऊर्जा को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उपमा दी। प्रत्येक युवा को Nation first, self last का मंत्र वाक्य अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिये।

 "स्टॉक होम घोषणापत्र - 2025 भविष्य की रसायन" थीम पर पैनल डिस्कशन सत्र का आयोजन आयोजन का प्रमुख आकर्षण रहा।पद्मश्री प्रोफेसर जी.डी. यादव जिन्होने भारत देश के प्रतिनिधि के रुप में स्वयं स्टॉकहोम घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये थे, विषय विशेषज्ञ के रुप में उपस्थित हुए। 

आचार्य ब्रजेश पारे, माधव विज्ञान महाविद्यालय, उज्जैन ने इस सत्र का संचालन किया। विशेषज्ञ पैनलिस्ट के रूप में प्रो ब्रजेश मिश्रा, रजनीश मिश्रा, आई आई टी इंदौर, डॉ. सुबर्ना सिवापालन, मलेशिया, कुलगुरु प्रोफेसर अर्पण भारद्वाज, सम्राट विक्रमादित्य विवि  उज्जैन थे। 

प्रोफेसर यादव ने कहा कि किसी भी नुकसान करने वाली वस्तु पर बैन लगाने से ज़्यादा अच्छा होगा कि हम बेहतर विकल्प समाज के समक्ष प्रस्तुत करें, रसायनशास्त्रियों को इसे चुनौती की तरह लेना चाहिये और उन्हें अपने रसायनज्ञ होने पर गर्व करना चाहिए क्योंकि परमाणु से वायुमंडल तक रसायन ही सर्वत्र व्याप्त है।

प्रोफेसर विमल रार, दिल्ली एवं उपकारासामी लॉडरेज, भुवनेश्वर, डॉ. संजय सेनगुप्ता, नईदिल्ली, डॉ. विनोद कुमार तिवारीनिस्सेर, वाराणसी ने आमंत्रित व्याख्यान दिये। आभार प्रदर्शन, भौतिक विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो स्वाति दुबे ने किया।मौखिक सत्रों में 20 शोध पत्रों का वाचन किया गया एवं 40 पोस्टर प्रस्तुत किये गये ।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...