विक्रमादित्य और कालिदास काल की मुद्राओं में हैं संचार के महत्वपूर्ण आयाम - डॉ. आर. सी. ठाकुर
अखिल भारतीय कालिदास समारोह में आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के प्रथम सत्र में हुआ कालिदास के साहित्य में शोध के नए आयाम पर गहन मंथन
उज्जैन। मध्य प्रदेश शासन के तत्वाधान में सम्राट् विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह के आयोजन के अंतर्गत सम्राट् विक्रमादित्य विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का प्रथम सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र में कालिदास साहित्य के विभिन्न पक्षों पर व्यापक मंथन हुआ।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ विद्वान प्रो केदारनाथ जोशी ने की। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि पूर्व कुलपति एवं संभागायुक्त डॉ. मोहन गुप्त, प्रो. सरोज कौशल जोधपुर, वरिष्ठ मुद्रशास्त्री डॉ. आर. सी. ठाकुर, महिदपुर, प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त ने अपने मुख्य वक्तव्य में कालिदास के काव्य में शोध के नए आयामों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि कालिदास के लक्षण ग्रंथों के आधार पर पर्याप्त समीक्षा हो चुकी है। अब नई पीढ़ी को नए ढंग से सोचना चाहिए। उनके साहित्य में बहुत से ऐसे प्रश्न है जिन पर शोध किया जा सकता है।
डॉ. सरोज कौशल, जोधपुर ने अपने वक्तव्य में कालिदास के काव्य में अलंकार योजना पर बात करते हुए कहा कि कालिदास को सिर्फ उपमा के संदर्भ में जोड़ कर न देखा जाए, बल्कि अन्य सादृश्यमूलक अलंकार, समासोक्ति, स्वभावोक्ति अलंकारों को भी देखना चाहिए।
डॉ. आर. सी. ठाकुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि विक्रमादित्य और कालिदासकालीन मुद्राओं में संचार के महत्वपूर्ण आयाम दिखाई देते हैं। प्राचीनकाल में संचार का कार्य मुद्राओं के माध्यम से होता था। राजा चक्रवर्ती है, उसके यहाँ संतान का जन्म हुआ या राजा ने विजय प्राप्त की, इसकी सूचना मुद्राओं के माध्यम से प्रस्तुत की जाती थीं। उसका धर्म क्या था, उसकी भाषा आदि सबका पता हमें मुद्राओं के माध्यम से लगता है। लेखक जो लिख देते हैं तो वह समाज को एक राह दिखाते हैं।
प्रो. केदारनाथ जोशी ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया और शोध वाचकों को उनके शोध पत्र के लिए बधाई और शुभकामनाएं दी।
कालिदास समिति के सचिव प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास के काव्य में भारतीय जनमानस की विविध संवेदनाओं और जीवनानुभव की जीवन्त अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने सैकडों वर्षों पूर्व जिन मानवीय विषयों की ओर संकेत किया, वे स्वातंत्र्योत्तर भारत के लिए प्रेरणास्पद सिद्ध हुए।
संगोष्ठी में विभू त्रिपाठी उड़ीसा, डॉ. सुरेश कुमार एन ओझा गुजरात, डॉ. नरेंद्र सिंह पंवार, रतलाम, डॉ. चिंतामणि राठौर, गुरु अभिलाषा, आगरा, श्री कारूलाल जमड़ा, जावरा, आदि शोध वाचकों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
संचालन प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ सर्वेश्वर शर्मा ने किया।
राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का दूसरा सत्र दिनांक 3 नवम्बर को होगा
विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का दूसरा सत्र दिनांक 3 नवम्बर को दोपहर 2: 30 बजे कालिदास संस्कृत अकादमी स्थित पं सूर्यनारायण व्यास संकुल सभागार में होगा।





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