भारतीय कला की अवधारणा के समस्त तत्व मिलते हैं कालिदास के साहित्य में – कला मनीषी श्री नर्मदाप्रसाद उपाध्याय
श्रेष्ठ मानव के निर्माण के लिए आवश्यक सभी तत्व मिलते हैं कालिदास साहित्य में – कुलगुरु प्रो मिश्र
राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के तृतीय सत्र में हुआ कालिदास के साहित्य में अभिनव चिंतन की आवश्यकता पर मंथन, विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए योग्य पाए गए पांच श्रेष्ठ शोधकर्ताओं की घोषणा हुई
Ujjain | मध्य प्रदेश शासन के तत्वाधान में सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह के आयोजन के अंतर्गत सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का तृतीय सत्र पं सूर्यनारायण व्यास संकुल में आयोजित किया गया। इस सत्र में कालिदास के साहित्य में कला, पुरातत्व, मानव मूल्य आदि पर व्यापक मंथन हुआ। अध्यक्षता प्रो. मनुलता शर्मा, वाराणसी ने की। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि वरिष्ठ कला मनीषी नर्मदाप्रसाद उपाध्याय इंदौर, प्रो. शिवशंकर मिश्र, कुलगुरु पाणिनि संस्कृत विश्विद्यालय उज्जैन, डॉ. नारायण व्यास भोपाल, प्रभारी कुलगुरु प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
सारस्वत अतिथि वरिष्ठ कला मनीषी श्री नर्मदाप्रसाद उपाध्याय इंदौर ने अपने उद्बोधन में कहा कि कालिदास जो भी लिखते हैं वह दीप्तिमान हो उठता है। कालिदास एक मात्र ऐसे कवि हैं जिन्होंने कला की समग्र अवधारणा को काव्य में निरूपित किया है। उनके साहित्य में भारतीय कला के अवधारणा के सारे तत्व विद्यमान हैं। नए शोधार्थियों को चाहिए कि वे कालिदास के अवधारणा पर बने हुए लघु चित्रों पर व्यापक शोध करें।
कुलगुरु प्रो. शिवशंकर मिश्र, उज्जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि कालिदास के सम्पूर्ण साहित्य का जिस दृष्टि से अध्ययन करें, हमें उसमें वही तत्व दिखाई देते हैं। कालिदास साहित्य में हमें श्रेष्ठ मानव के निर्माण के लिए आवश्यक सभी तत्व मिलते हैं।
प्रो. मनुलता शर्मा, वाराणसी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कालिदास साहित्य पर गहन चर्चा करते हुए कहा कि साहित्यशास्त्र के सभी प्रतिमानों के दर्शन उनके काव्य को अनुपम बनाते हैं। उन्होंने सभी शोध वाचकों को बधाई दी।
प्रभारी कुलगुरु प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास लोक और शास्त्र की अनुपूरकता के कवि हैं। उन्होंने सदियों पहले लोक एवं जनजातीय संस्कृति के उपादानों का सुंदर चित्रण किया, जिनकी निरंतरता आज भी दिखाई देती है। महाकवि ने जिन लोक विश्वासों और रीति-रिवाजों का वर्णन किया उन्हें हम आज भी जनजीवन में जीवंत पाते हैं।
पुरातत्ववेत्ता डॉ. नारायण व्यास, भोपाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें कालिदास के साहित्य को पुरातत्व एवं शिल्प कला से भी जोड़ कर देखना चाहिए जिससे काव्य और उसमें वर्णित कला वैभव, निर्माण, राजा, काल आदि का प्रामाणिक साक्ष्य हमें मिल सकेगा।
अखिल भारतीय कालिदास समारोह में आयोजित विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए योग्य पाए गए सर्वश्रेष्ठ 5 शोधपत्रों को विक्रम कालिदास सम्मान देने की घोषणा की गई। इनमें श्रीनिवासन अय्यर उदयपुर, गुरु अभिलाषा आगरा, कुशाग्र अनिकेत यूएसए डॉ. वंदना गवली, भोपाल एवं डॉ शैलेंद्र कुमार साहू, वाराणसी, सम्मिलित हैं। इन्हें समापन समारोह में पुरस्कृत किया जाएगा। संगोष्ठी में मेनकारानी साहू, उड़ीसा, जी. एस. त्रिवेदी, उदयपुर, श्री बादल टुडू, पश्चिम बंगाल, सुमन्त पात्र, वसुधा गाडगिल इंदौर आदि ने भी शोध पत्र वाचन किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ विष्णुप्रसाद मीणा ने किया और आभार डॉ. सर्वेश्वर शर्मा ने व्यक्त किया।
राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का चतुर्थ सत्र एवं अखिल भारतीय संस्कृत वादविवाद स्पर्धा दिनांक 5 नवम्बर को
विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का चतुर्थ सत्र दिनांक 5 नवम्बर को प्रातः काल 9: 30 बजे कालिदास संस्कृत अकादमी स्थित पं सूर्यनारायण व्यास संकुल सभागार में होगा।
अखिल भारतीय अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वादविवाद स्पर्धा दिनांक 5 नवम्बर को दोपहर 2 बजे कालिदास अकादमी स्थित सूर्यनारायण व्यास संकुल में होगी। अखिल भारतीय स्तर की अंतरविश्वविद्यालयीन कालिदास संस्कृत वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय - आतङ्कनाशनं भूयात् प्रजानामिति शंसती। सर्वातिशायिनी लोके कालिदासस्य भारती, रखा गया है।






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