संरक्षण कृषि की दिशा में प्रभावी कदम: स्लिट-टिल ड्रिल द्वारा नो-टिलेज एवं अवशेष-संरक्षण आधारित गेहूँ बुवाई का सफल प्रदर्शन
🙏 द्वारा, राधेश्याम चौऋषिया 🙏
भोपाल। भोपाल के खजूरी और बिनापुर गाँवों में स्लिट-टिल ड्रिल द्वारा नो-टिलेज और अवशेष-संरक्षण आधारित गेहूँ बुवाई का सफल प्रदर्शन किया गया। इस तकनीक की खासियत यह है कि इसमें खेत को दोबारा नहीं जोता जाता और धान की बची पराली को जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इससे मिट्टी की नमी बनी रहती है, पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचता है और डीजल की अच्छी बचत होती है।
इस प्रदर्शन के लिए खजूरी गाँव के प्रहलाद मालवीय, नारायण सिंह और बलकिशन साहू तथा बिनापुर गांव के महेश कुमार और भगवान सिंह मेन्ना—कुल पाँच किसानों—के खेत चुने गए। प्रत्येक किसान के एक एकड़ खेत में गेहूँ की किस्म लोक -१ को स्लिट-टिल ड्रिल मशीन से सीधे बोया गया। मशीन ने धान के अवशेषों के बीच एक पतली स्लिट बनाकर बीज को सही गहराई और उचित दूरी पर जमा किया, जिससे बुवाई तेज, सरल और सटीक ढंग से पूरी हुई।
किसानों ने बताया कि यह तरीका कम खर्च वाला, कम मेहनत वाला और व्यावहारिक है। जुताई न करने से समय और डीजल दोनों की बचत हुई, मजदूरी की आवश्यकता कम पड़ी और अवशेषों के बावजूद मशीन ने बिना रुकावट उत्कृष्ट कार्य किया।
यह प्रदर्शन सीआरपी ऑन सीए, केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल की टीम द्वारा संचालित किया गया, जिसमें डॉ. दुश्यंत सिंह प्रधान अन्वेषक, डॉ. मनीष कुमार सह-प्रधान अन्वेषक और डॉ. एच. एस. टुटेजा वरिष्ठ शोध सहायक के रूप में शामिल रहे। टीम ने बताया कि स्लिट-टिल ड्रिल तकनीक पराली को खेत में ही सड़ने देती है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन नहीं होता और वायु प्रदूषण भी कम होता है।
समग्र रूप से, खजूरी और बिनापुर गाँवों में हुआ यह प्रदर्शन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि स्लिट-टिल ड्रिल एक किफायती, टिकाऊ और जलवायु-अनुकूल तकनीक है, जो किसानों को कम लागत में बेहतर उत्पादन और पर्यावरण-सुरक्षा दोनों प्रदान करती है।
✍ राधेश्याम चौऋषिया
● सम्पादक, बेख़बरों की खबर
● राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार, जनसम्पर्क विभाग, मध्यप्रदेश शासन
● राज्य मीडिया प्रभारी, भारत स्काउट एवं गाइड मध्यप्रदेश
● मध्यप्रदेश ब्यूरों प्रमुख, दैनिक निर्णायक
● मध्यप्रदेश ब्यूरों प्रमुख, दैनिक मालव क्रान्ति
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