महाकवि कालिदास ने रचनाओं में किया है नाट्यशास्त्र के निर्वाह के साथ नवाचार – पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी
तर्कनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ हैं कालिदास काव्य सृजन और नाट्य प्रस्तुति में - प्रो बसंतकुमार भट्ट
कालिदास समारोह में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में हुआ कालिदास साहित्य और नाट्यशास्त्र के अन्तःसम्बधों पर व्याख्यान और शोध सम्भावनाओं पर विमर्श
Ujjain | मध्य प्रदेश शासन के तत्वाधान में सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह के आयोजन के अंतर्गत सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का द्वितीय सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र में कालिदास के साहित्य के साथ नाट्यशास्त्र के सम्बंध के साथ शोध की नई दिशाओं पर व्यापक विमर्श हुआ। सत्र की अध्यक्षता पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने की। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि प्रो. बसंतकुमार भट्ट, अहमदाबाद, विशिष्ट अतिथि प्रो. ब्रजसुंदर मिश्र, भुवनेश्वर, डॉ रमण सोलंकी, प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कालिदास साहित्य पर अपने विचार व्यक्त किए।
पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नाट्यशास्त्र के साथ कालिदास के संबंध पर चर्चा करते हुए कहा कि नाट्यशास्त्र की परिभाषिक शब्दावली का प्रयोग कालिदास ने बड़ी सजगता के साथ किया है। उन्होंने नाट्यशास्त्र के मानदंडों को आधार के रूप में लेने के साथ नवाचार भी किए हैं। संस्कृत साहित्य में शुद्ध पाठ का बहुत महत्व होता है, इसलिए नई पीढ़ी को शुद्ध पाठ करना चाहिए। कालिदास या अन्य बड़े कवियों को पढ़ने के बाद हमें इनकी टीकाएं भी पढ़नी चाहिए, जिससे हमें उसका अधिक ज्ञान हो सकेगा। हम कोई भी अवधारणा बनाने से पहले उन टीकाओं का ध्यान रखें। उन्होंने शोधपत्र वाचकों को बधाई दी।
सारस्वत अतिथि प्रो. बसंत कुमार भट्ट ने अपने उद्बोधन में कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तल के आधार पर कालिदास के तर्कनिष्ठ और वास्तविकनिष्ठ होने पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि कालिदास काव्य सृजन के साथ नाट्य प्रस्तुति में भी तार्किक बने रहते हैं।
डॉ ब्रजसुंदर मिश्र भुवनेश्वर ने अपने वक्तव्य में कहा कि कालिदास के साहित्य में शोध की बहुत संभावना है। सनातन परम्परा में तीन अंक का बहुत महत्व है और कालिदास ने भी उस परम्परा को अपने काव्य मेघदूत में अच्छे से दिखाया है।
कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास राष्ट्र की समृद्ध विरासत के साथ एकता और अखंडता के चितेरे हैं। उन्होंने देश के प्राकृतिक और सांस्कृतिक भूगोल के दर्शन अपनी रचनाओं के माध्यम से कराया है। उनके साहित्य पर अनुसंधान की व्यापक संभावनाएं हैं।
डॉ. रमण सोलंकी ने अपने उद्बोधन में कहा कि कालिदास के साहित्य के आधार पर कई ऐसे पुरातात्विक अवशेष मिले हैं जिनसे उनके ईसवी पूर्व में होने की पुष्टि होती है। कहानियों, किंवदंतियों के माध्यम से हम अगर उनकी खोज करते है तो आज भी उनके साक्ष्य मिलते हैं।
संगोष्ठी में डॉ. नवीन मेहता, सांची, अनुज मिश्रा, वाराणसी, तिलक सोलंकी, सुमंत पात्र पश्चिम बंगाल, डॉ. योगेश्वरी फिरोजिया, सुश्री सुपर्णा सरकार, वाराणसी, डॉ नेत्रा रावणकर, आदि ने शोध पत्र वाचन किया।
कार्यक्रम में कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज, प्रो मनुलता शर्मा वाराणसी, प्रो सरोज कौशल, जोधपुर प्रो एडुकोन्दुलु विशाखापत्तनम, प्रो कौशलेंद्र पांडेय, वाराणसी आदि सहित अनेक सुधीजन उपस्थित थे।
अतिथियों का स्वागत अंग वस्त्र एवं साहित्य भेंट कर प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा, डॉक्टर सर्वेश्वर शर्मा एवं डॉ अजय शर्मा ने किया।
संगोष्ठी सत्र का संचालन डॉक्टर रश्मि मिश्रा ने किया। आभार प्रदर्शन प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।
राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का तीसरा सत्र दिनांक 4 नवम्बर को होगा
विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का तीसरा सत्र दिनांक 4 नवम्बर को दोपहर 2: 30 बजे कालिदास संस्कृत अकादमी स्थित पं सूर्यनारायण व्यास संकुल सभागार में होगा।






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