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जो आत्मजय कर सकता है वही महावीर कहला सकता है, यही है भगवान महावीर का विश्व को शाश्वत सन्देश – प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

राष्ट्रीय संगोष्ठी में हुआ भगवान महावीर स्वामी का विश्व चिंतन को प्रदेय पर मंथन 

प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा महावीर स्वामी का विश्व चिंतन को प्रदेय पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वक्ता सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, हिंदी परिवार इंदौर के संस्थापक श्री हरेराम वाजपेयी, श्री पदमचंद गांधी जयपुर, श्रीमती सुवर्णा यादव एवं डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के संरक्षक डॉ ब्रजकिशोर शर्मा ने की। 

मुख्य अतिथि वक्ता प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भगवान महावीर का चिंतन वैश्विक है, जिसमें प्राणि मात्र के प्रति प्रेम और सद्भाव छुपा है। भौतिकता के स्थान पर आत्म तत्त्व की प्रतिष्ठा उनके चिंतन का अद्वितीय प्रदेय है। अनेकांतवाद और अपरिग्रह जैसे सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेंगे। जिन का तात्पर्य है विजेता। यह जय बाह्य नहीं है आत्मजय है, जो यह कर सकता है वही महावीर कहला सकता है। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र इस विजय के लिए माध्यम हैं।  वे इस बात पर बल देते हैं कि समस्त प्राणियों के बीच सहकार और सद्भाव होना चाहिए, बैर या अतिक्रमण नहीं।

समारोह के मुख्य वक्ता एवं राष्ट्रीय संयोजक प्रसिद्ध लेखक एवं विचारक श्री पदमचंद गांधी जयपुर ने कहा कि  प्रभु महावीर ने आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए सर्वस्व त्याग कर दिया तथा सामाजिक समानता के लिए कहा जितनी आवश्यकता है उससे अधिक रखना परिग्रह है अर्थात प्राप्त के प्रति ममत्व भाव तथा अप्राप्त की लालसा परिग्रह है और परिग्रह से ही हिंसा होती है। मन की वृत्तियों को बिगाड़ लेता है तथा कई तरह के पापों को जन्म देता है। अतः हे भव्य आत्मन यदि सुखी बनना चाहता है तो परिग्रही नहीं अपरिग्रही बन। साधनों में सुख नहीं साधना में सुख है। आज के भौतिक युग में शांति प्राप्त हेतु, सुखी रहने हेतु, समत्व भाव में रहने हेतु और अहिंसा को महत्व देने हेतु वर्धमान की नितांत आवश्यकता है।

संस्था के मार्गदर्शक एवं विशिष्ट अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी इंदौर ने अपने संबोधन में कहा कि जियो और जीने दो के नाम पर केवल स्वयं जीना चाहता है। चाहे दूसरों को वह छल, कपट, अन्याय, शोषण, अत्याचार, आतंक द्वारा अपने सैन्य व शक्ति बल के द्वारा दूसरों पर शासन करते हुए स्वयं को ही सर्वोच्च मान रहा है, भले ही दूसरों का अस्तित्व धूमिल क्यों ना हो जाए। परिणाम सामने है - घरेलू युद्ध, सीमाओं पर अतिक्रमण, एक दूसरे देशों पर आक्रमण जैसे अफगानिस्तान- तालिबान युद्ध, सीरिया गृह युद्ध, ईरान -हमास युद्ध, रूस - यूक्रेन का युद्ध, कुकीज- मैतेई विवाद से उत्पन हिंसा । यह ऐसे उदाहरण है जिन्होंने संपूर्ण विश्व को हिला कर रख दिया है।

 

राष्ट्रीय संगठन महामंत्री एवं विशिष्ट वक्ता डॉ प्रभु चौधरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रभु महावीर ने जीवन जीने की शैली देकर संपूर्ण मानव जाति पर उपकार किया, वह आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है। महावीर एक व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व है। महावीर एक शस्त्र नहीं जीता जागता शास्त्र है। महावीर नाम नहीं आचरण है। महावीर शब्द नहीं शब्दकोश है। महावीर धर्म, अध्यात्म ही नहीं विज्ञान एवं जीवन विज्ञान है। महावीर अहिंसा का नाम है। महावीर एक पंथ, संप्रदाय जाति, वर्ण, वाद एवं परंपरा नहीं मानवता की पहचान है। महावीर क्रूरता नहीं करुणा एवं क्षमा एवं दया की मूरत है। अहिंसा की सूक्ष्मतम व्याख्या करते हुए प्रत्येक जीव की जिजीविषा को स्वीकार करे।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं महामंत्री  नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में बताया कि प्रभु महावीर ने आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए सर्वस्व त्याग कर दिया तथा सामाजिक समानता के लिए कहा जितनी आवश्यकता है उससे अधिक रखना परिग्रह है अर्थात प्राप्त के प्रति ममत्व भाव तथा अप्राप्त की लालसा परिग्रह है और परिग्रह से ही हिंसा होती है। व्यक्ति झूठ बोलता है। चोरी करता है। दुष्कृत करता है । मन की वृत्तियों को बिगाड़ लेता है तथा कई तरह के पापों को जन्म देता है। अतः हे भव्य आत्मन यदि सुखी बनना चाहता है तो परिग्रही नहीं अपरिग्रही बन। साधनों में सुख नहीं साधना में सुख है।

संगोष्ठी की विशेष अतिथि एवं राष्ट्रीय मुख्य संयोजक श्रीमती सुवर्णा जाधव ने कहा कि अहिंसा को समग्रता से जीतकर, परम पद को प्राप्त कर, सिद्ध किया कि अहिंसा ही धर्म का प्राण तत्व है। अहिंसा न केवल विचार तक सीमित है अपितु आचारणिय भी है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमने अहिंसा की परिधि को सीमित एवं संकुचित कर दिया है। लोगों ने इसकी समीक्षा एवं अर्थ अपने-अपने स्वार्थ के अनुरूप बना दिया है। इसके तथ्यात्मक, सूक्ष्म एवं समीक्षात्मक पहलुओं को नजर अंदाज कर दिया है। आज पानी को तो छान कर पीते हैं लेकिन दूसरों की प्राणघात पहुंचाते हुए जरा भी नहीं हिचकते। उसे हम अपनी चातुर्य समझने हुए बुद्धिमानी करार देते हैं।

संगोष्ठी के अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय संरक्षक श्री ब्रजकिशोर शर्मा  ने कहा कि यह सच है कि जब मानवीय मूल्यों के अधःपतन की स्थिति दृष्टिगत होती है तो भगवान महावीर को याद करते हैं। वह महावीर जो जन्म से वर्धमान थे, जिन्होंने गृहस्थ में रहकर जीवन को आत्मा के कल्याण हेतु साधना का मार्ग अपना कर समग्र उपसर्गों को समत्व भाव लेते हुए साढ़े बारह वर्ष तक अनवरत कठोर उत्पीड़न सहा। उन्होंने माया लोभ इत्यादि का शमन कर स्वचेतन शक्ति द्वारा महावीरता एवं वीतरागता को सिद्ध किया।

संगोष्ठी के शुभारंभ में अपनी प्रस्तावना में राष्ट्रीय महासचिव डॉ शहेनाज शेख ने बताया कि हे मानव तू ही तेरा कर्ता एवं भोक्ता है। तू ही सर्वशक्तिमान है। तू ही स्वयं अपने शक्ति के स्रोतों की पहचान कर। तू ही उनका उद्घाटन कर्ता है। तेरे में अनंत क्षमता है। अतः अपने सिंहत्व को जगा और पुरुषार्थ कर। पल भर का भी प्रमाद मत कर। वर्धमान के जो विचार थे सिद्धांत बन गए, जिनकी आज हमें आवश्यकता है। यह सच है कि जब मानवीय मूल्यों के अधःपतन की स्थिति दृष्टिगत होती है तो महावीर को याद करते हैं। वह महावीर जो जन्म से वर्धमान थे, जिन्होंने गृहस्थ में रहकर जीवन को आत्मा के कल्याण हेतु साधना का मार्ग बतलाया। 

संगोष्ठी का शुभारंभ सरस्वती वंदना डॉक्टर अरुणा सराफ राष्ट्रीय सचिव इंदौर द्वारा प्रस्तुत की गई संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता एवं राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ रश्मि चौबे ने कहा कि गृहस्थ में रहकर जीवन को आत्मा के कल्याण हेतु साधना का मार्ग अपना कर समग्र उपसर्गों को समत्व भाव में, गर्त को तपस्यचरण में, दमन को अंतर्मुखता और शोषण को आत्म शांति से सामना करते हुए साढे बारह वर्ष तक अनवरत कठोर उत्पीड़न सहते हुए तथा दानव, पशुता, निर्दयता, मद- मत्सर, क्रोध, मान, माया लोभ इत्यादि का शमन कर स्वचेतन शक्ति द्वारा महावीरता एवं वीतरागता को सिद्ध किया। प्रभु महावीर ने जीवन जीने की शैली देकर संपूर्ण मानव जाति पर उपकार किया, वह आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है।

संगोष्ठी में अतिथि परिचय स्वागत भाषण  प्रदेश महासचिव सुश्री रंजना पांचाल देवास ने दिया। संचालक श्रीमती श्वेता मिश्रा बेंगलूर एवं डॉ रश्मि चौबे गाजियाबाद द्वारा किया गया अंत में आभार प्रदर्शन संस्था के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री डॉ प्रभु चौधरी ने उपस्थित जनों का आभार व्यक्त किया।

संगोष्ठी में कोलकाता से श्रीमती सरिता जैन, उज्जैन से श्री सुंदरलाल मालवीय श्रीमती अंजना जैन, मधु लता शर्मा भोपाल माया मेहता मुंबई अनामिका गुप्ता सतना डॉ रेनू सिरोया कुमुदिनी उदयपुर आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

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