पर्वोत्सव: पुराख्यान, परंपरा और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न, प्रो शर्मा का हुआ सारस्वत सम्मान
प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी पर्वोत्सव: पुराख्यान, परंपरा और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी इंदौर ने की। मुख्य वक्ता सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, प्राचार्य डॉ अनसूया अग्रवाल, महासमुंद छत्तीसगढ़, डॉ प्रभु चौधरी, डॉ जितेंद्र कुमार तिवारी, मुंबई, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा का सारस्वत सम्मान किया गया।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय पर्वोत्सव दुनिया में विलक्षण हैं। उनका इस देश की भूमि, भूगोल और खगोल से गहरा संबंध है। विविध पर्व और उत्सवों में पुराख्यान के साथ स्थानीय संस्कृति और लोककथाओं की गहरी छाप दिखाई देती है। ये जीवन की एकरसता और जड़ता को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विभिन्न पर्वोत्सव आंतरिक शुद्धि के साथ आध्यात्मिक उन्नति में आधार देते हैं। पर्व और उत्सवों से समृद्ध परंपरा, संस्कृति, रीति रिवाज, मूल्य और आदर्शों से जुड़ाव सम्भव होता है।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी इंदौर ने कहा कि व्रत, पर्वोत्सवों ने देश की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ एकता को मजबूती देने में अविस्मरणीय भूमिका निभाई है। तुलसी का काव्य सबका हितकारी है। उनका सन्देश है कि यश, वाणी और ऐश्वर्य वही श्रेष्ठ है जो गंगा के समान सबके लिए कल्याणकारी होता है। प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा की लेखनी इसी प्रकार सबका हित करने वाली है।
नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि दीपावली पर्व बाहर के साथ अंदर की शुद्धि और पवित्रता का पर्व है। उत्सव और पर्वों को सभी को मिल जुलकर मनाना चाहिए, तभी उनकी सार्थकता है।
प्राचार्य डॉ अनसूया अग्रवाल महासमुंद, छत्तीसगढ़ ने कहा कि विभिन्न पर्व उत्सव लोकजीवन को सार्थक दिशाबोध देते हैं। राष्ट्र और संस्कृति को उत्कर्ष पर ले जाने के लिए इनका विशिष्ट योगदान है। यह हमारी आंतरिक प्राणवत्ता को प्रत्यक्ष करते हैं।
श्री सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि दीपावली सहित विभिन्न पर्व उत्सव हमारे कृषि जीवन से जुड़े हुए हैं। विविध फसलों से प्राप्त सामग्री को आस्था के साथ देवताओं को अर्पित किया जाता है।
डॉ जितेंद्र कुमार तिवारी मुंबई ने कहा कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। भारतीय परंपरा में निरन्तर परिवर्तित होने वाले जीवन चक्र को महिमा मिली है। भरथरी की कथा और काव्य इसी बात को प्रतिबिंबित करते हैं।
स्वागत भाषण डॉ प्रभु चौधरी, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री, उज्जैन ने दिया। लोक गायक श्री सुंदरलाल मालवीय ने कविवर डॉ शिवमंगल सिंह सुमन के गीत यह दिन बार-बार आए की प्रस्तुति करते हुए प्रो शर्मा को बधाई एवं मंगलकामनाएँ अर्पित कीं। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित डॉ हरीशकुमार सिंह, मेरुप्रभा मिश्रा, डॉ श्वेता पंड्या आदि सहित देश-विदेश के अनेक साहित्यकार, संस्कृति कर्मी और शिक्षाविदों ने डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा को उनके जन्मदिवस पर बधाई और मंगलकामनाएं दीं।
वाग्देवी वंदना और संचालन श्रीमती श्वेता मिश्रा बेंगलुरु ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।
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