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भगवान धन्वंतरि जयंती: आयुर्वेद के जनक को समर्पित एक दिव्य उत्सव

भगवान धन्वंतरि जयंती: आयुर्वेद के जनक को समर्पित एक दिव्य उत्सव

✍️ डॉ. प्रकाश जोशी, व्याख्याता, रचना शारीर विभाग, शासकीय धन्वंतरी आयुर्वेदिक महाविद्यालय

✍️ डॉ. जितेंद्र जैन, पूर्व व्याख्याता, पदस्थ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी, शासकीय आयुर्वेद औषधालय, करोहन, जिला उज्जैन


भगवान धन्वंतरि: अमृत कलश से आयुर्वेद के अवतरण तक

आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्न मंथन का संदेश लेकर जिनका अवतार हुआ, वे सतत गतिशीलता और सुनियोजन से लक्ष्य प्राप्ति के देवता आदि धन्वंतरि हैं। उन्हें आयुर्वेद के जनक के रूप में मान्यता प्राप्त है और जनसाधारण में भी वैद्यक शास्त्र के जन्मदाता के रूप में उनका नाम अत्यंत श्रद्धा से स्मरण किया जाता है।

इतिहास में ‘धन्वंतरि’ नाम के तीन प्रमुख आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है। सर्वप्रथम, धन्वंतरि प्रथम — जिनका अमृत कलश लिए हुए क्षीरसागर से अवतरण हुआ — देवताओं में अश्विनीकुमारों की तरह अमरत्व का प्रतीक माने जाते हैं। पुराणों के अनुसार, देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन के दौरान जो 14 रत्न प्राप्त हुए, उनमें से एक धन्वंतरि भी थे।

समुद्र मंथन की प्रक्रिया में देवताओं और असुरों ने वासुकि नाग को रज्जू तथा मंदराचल पर्वत को मथनी बनाकर समुद्र का मंथन किया। मंथन से पूर्व समुद्र में अनेक प्रकार की औषधियां डाली गईं थीं, जिनके संयुक्त रसों से अमृत की उत्पत्ति हुई। इसी अमृत कलश के साथ श्वेत कमंडल धारण किए हुए धर्मात्मा, आयुर्वेदमय पुरुष भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। उनका यह दिव्य स्वरूप रोग-शोक से मुक्त जीवन के लिए दैवीय शक्तियों का प्रतीक है।

श्लोक के माध्यम से समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों का वर्णन इस प्रकार है:

"श्री मणि रंभा वारुणी अमिय शंख गजराज कल्पद्रुम शशि धेनू धनु धनवंतरी विष वाजि।"

इस प्रकार धन्वंतरि प्रथम का जन्म समुद्र मंथन काल में अमृत उत्पत्ति के समय हुआ था। आयुर्वेद के प्रथम अंग शल्यशास्त्र में भी वे पूर्ण पारंगत माने जाते हैं।


त्रैविध धन्वंतरि परंपरा और धनतेरस का सांस्कृतिक महत्व

धन्वंतरि द्वितीय का जन्म काशी के चंद्रवंशी राजकुल में सुनहोत्र की वंशावली में चौथी और पांचवीं पीढ़ी में हुआ था। जबकि धन्वंतरि तृतीय को काशीराज दिवोदास के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद के समृद्ध विकास और विस्तार में तृतीय धन्वंतरि का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। वर्तमान में जो आयुर्वेदिक परंपरा प्रचलन में है, उसका मूल स्रोत यही तृतीय धन्वंतरि हैं।

आगम प्रमाणों के अनुसार, भगवान धन्वंतरि का अवतरण कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को हुआ था। वैद्यक समाज इस दिन को धन्वंतरि जयंती के रूप में परंपरागत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाता चला आ रहा है। यह दिन धनतेरस के रूप में भी प्रसिद्ध है, जिससे दीपावली पर्व का शुभारंभ होता है।

धनतेरस के दिन धातु से बनी वस्तुएं जैसे बर्तन, आभूषण आदि खरीदने की परंपरा है। यह परंपरा सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। वास्तव में, स्वास्थ्य ही परम धन है — और इस परम धन के प्रतीक भगवान धन्वंतरि की उपासना करके हम शारीरिक और मानसिक आरोग्य की प्राप्ति कर सकते हैं।

इस प्रकार भगवान धन्वंतरि जयंती न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि आयुर्वेद और स्वास्थ्य के प्रति समाज को जागरूक करने का एक श्रेष्ठ अवसर भी है। सभी को इस दिन भगवान धन्वंतरि की आराधना कर आरोग्य के दीर्घकालिक लाभ की प्राप्ति हेतु संकल्पित होना चाहिए।


आरोग्यं परमं भाग्यं।
स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्।
आरोग्यं सर्वसंपदा।

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