Skip to main content

यशस्वी कथाकार मोहन राकेश तथा अमरकांत की जन्मशती पर हुआ उनके अवदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन


आज के दौर को समझने के लिए मोहन राकेश और अमरकांत के यथार्थवादी साहित्य को पढ़ने की जरूरत – प्रो कल्पना गवली

आधुनिकता और संस्कार के बीच उलझे मानवीय मन के द्वंद्व के चितेरे हैं मोहन राकेश और अमरकांत - प्रो शर्मा 

साहित्यकार प्रो गवली और श्री शुक्ल का हुआ सारस्वत सम्मान

Ujjain | सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला में यशस्वी कथाकार मोहन राकेश तथा अमरकांत की जन्मशती पर  अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय बडौदा की हिंदी विभागाध्यक्ष एवं डीन प्रो कल्पना गवली थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि ओस्लो नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चंद्र शर्मा एवं डॉक्टर सी एल शर्मा, रतलाम ने शती  साहित्यकारों के योगदान पर प्रकाश डाला। भाषा, साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में किए गए विशिष्ट योगदान के लिए साहित्यकार प्रो कल्पना गवली एवं श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक को अंग वस्त्र, साहित्य, पुष्पमाल एवं पगड़ी भेंट कर सारस्वत सम्मान किया गया। मालवी लोकगीतों की सरस प्रस्तुति श्रीमती माया मालवेंद्र बधेका ने की। 

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो. कल्पना गवली, बड़ोदरा, गुजरात ने कहा कि साहित्य को समझना हो तो सत्यं शिवम् सुंदरम सूत्र के माध्यम से समझा जा सकता है। साहित्यकार अपने समाज के सत्य को उजागर करते हुए लोक कल्याण का कार्य करता है। वह वाक्य, शब्दों का जाल बुनता है और उसे सुंदर बनाता है। आज के समय को समझने, जानने के लिए मोहन राकेश और अमरकांत के यथार्थवादी साहित्य को पढ़ने की आवश्यकता है। उनकी कहानियों में हम उन मुद्दों, परिस्थितियों और उदाहरणों को देख पाते है जो समाज में विद्यमान हैं। उनका कथ्य आज के जीवंत चरित्रों का है। साहित्यकार जब लिखता है तो वह बिना लाग लपेट के लिखता है जिससे वह सत्य खुरदुरा लगता है क्योंकि वह समाज का सत्य है। 

कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि मोहन राकेश और अमरकांत ने अपनी रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं के क्षरण के बीच मध्यवर्गीय जीवन की विसंगतियों को उद्घाटित किया।  

उनकी रचनाओं में शहरी ग्रामीण जीवन का यथार्थ और सामाजिक शोषण प्रमुखता से उभरता है। उन्होंने नई कहानी आंदोलन को समृद्ध किया। आधुनिकता और संस्कार के बीच उलझे मानवीय मन के द्वंद्वों को उन्होंने बड़ी प्रामाणिकता के साथ व्यक्त किया है। दोनों ने भाषा की सर्जनात्मक पर विशेष बल दिया।

वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे  ने अपने उद्बोधन में कहा कि मोहन राकेश इबसन से प्रभावित थे और वह प्रभाव उनके नाटकों में देखा जा सकता है। मोहन राकेश ने जो अपने आस - पास देखा, सुना, अनुभव किया वह यथार्थ उन्होंने साहित्य में उतारा। इनकी कहानियों को गहराई से पढ़ा जाए तो समाज के यथार्थ को बहुत अच्छे से समझा जा सकता है।

विशिष्ट वक्ता प्रो. जगदीशचंद्र शर्मा ने पीठिका प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य में नई कहानी और नई कविता एक नया मोड है। मोहन राकेश और अमरकांत बड़े कहानीकार हैं। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

विशिष्ट अतिथि डॉ. सी. एल. शर्मा रतलाम ने कहा कि जीवन के कठिन प्रश्नों का हल भी जीवन से ही मिलता है। नए कहानीकारों ने कहानी को अनुभव जन्य बना दिया, उसे यथार्थ से जोड़ दिया। नई कहानी में यथार्थ से ज्यादा संवेदना का महत्व है।

इस अवसर पर प्राध्यापक डॉ स्वर्णलता ठन्ना, श्री हेमंत थोरात, गुजरात, डॉ अतुल वसावा, बड़ौदा, श्री मुकेश ठन्ना आदि सहित अनेक साहित्यकार, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे। अतिथियों द्वारा वाग्देवी भवन में स्थित विश्व हिंदी संग्रहालय का अवलोकन किया गया।

संचालन शोधार्थी संगीता मिर्धा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ सी एल शर्मा ने किया।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...