समवेत पत्रिका के जल संस्कृति केंद्रित दो विशेषांकों का विमोचन सम्पन्न
जल संस्कृति और साहित्य मानव जीवन की सभ्यता और प्रकृति से जुड़ी गहरी संवेदनाओं के दर्पण हैं। जल को जीवन, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक मानते हुए साहित्य में इसकी महिमा गाई गई है। लोकगीतों, कविताओं और ग्रंथों में जल संस्कृति मानव और प्रकृति के संतुलन को दर्शाती है।
ये उद्गार विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने समवेत पत्रिका के जल संस्कृति पर केंद्रित दो विशेषांकों का विमोचन करते हुए व्यक्त किए। प्रो शर्मा ने कहा कि समवेत के दोनों विशेषांक हिंदी अकादमिक जगत में अपनी विशेष भूमिका निभाएंगे। सामान्यतया ऐसे विषयों पर प्रकाशन कम ही होते हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. नवीन नंदवाना के संपादन में प्रकाशित जल संस्कृति और साहित्य केंद्रित ये अंक शोधार्थियों के लिए शोध के नए आयाम प्रस्तुत करेंगे।
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. नवीन नंदवाना के संपादन में विगत बारह वर्षों से निरंतर प्रकाशित हो रही समवेत पत्रिका के जल संस्कृति पर केंद्रित दो विशेषांकों का विमोचन विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो. मदन सिंह राठौड़, अध्यक्ष, मानविकी संकाय तथा प्रो. के.बी. जोशी, अधिष्ठाता, स्नातकोत्तर अध्ययन, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अधिष्ठाता स्नातकोत्तर अध्ययन प्रो. के.बी. जोशी ने इन अंकों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि यह शोध पत्रिका शोधार्थियों का शोध के क्षेत्र में दिशाबोध करेगी और शोधार्थी नए विषयों पर शोध के लिए प्रेरित होंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय सनातन परंपरा में जल को जीवन, शुद्धि और दिव्यता का प्रतीक माना गया है। नदियों को माता का दर्जा देकर पूजनीय बनाया गया है। यज्ञ, पूजा और संस्कारों में जल की अनिवार्यता इसे पवित्र बनाती है। गंगाजल अमृत समान मानकर मोक्ष और आध्यात्मिक शांति का साधन माना गया है। जल संस्कृति और साहित्य जैसे नूतन विषय पर प्रकाशन अभिनंदनीय है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. मदन सिंह राठौड़, अधिष्ठाता, विश्वविद्यालय सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय ने समवेत के इन अंकों की प्रशंसा करते हुए बताया कि समवेत के विशेषांक अपना विशेष महत्व रखते हैं। उन्होंने जल संस्कृति, साहित्य और कला के अंत:संबंधों पर विचार व्यक्त करते हुए इन अंकों को अकादमिक जगत में महत्वपूर्ण बताया। कहा कि भारतीय कलाओं और जल संस्कृति का गहरा संबंध है। चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य और नृत्य में नदियों, झीलों और सरोवरों की छवियाँ जीवन और सौंदर्य का प्रतीक बनती हैं। मंदिरों के सरोवर, संगीत में जल की लहरें और नृत्य की गतियाँ जल संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति हैं।
इतिहासकार और साहित्यकार श्री कृष्ण जुगनू ने इस प्रकाशन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय समाज और इतिहास में जल का महत्व अत्यंत गहरा है। हमारी नदियों के किनारे महान सभ्यताएँ विकसित हुईं। जल ने कृषि, व्यापार और जीवन-निर्वाह को आधार दिया। तीर्थों और नदी-तटों पर धार्मिक तथा सांस्कृतिक केंद्र फले-फूले, जिससे समाज की एकता और समृद्धि बढ़ी। उन्होंने कहा कि साहित्य और जल संस्कृति का अनूठा संबंध है और ऐसे भारतीय सनातन परंपरा के विषयों पर प्रकाशन बहुत आवश्यक है। समवेत का यह कदम अभिनंदनीय है।
इस अवसर पर उदयपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुनीता मिश्रा ने जल संस्कृति केंद्रित दो अंकों के प्रकाशन के लिए अपनी शुभकामनाएं और बधाई प्रेषित की।
कार्यक्रम में संपादक डॉ. नवीन नंदवाना ने समवेत के प्रकाशन की प्रक्रिया और अब तक की विकास यात्रा पर प्रकाश डाला। साथ ही बताया कि समवेत ने अब तक विभिन्न विषयों पर बारह विशेषांक प्रकाशित किए हैं जिनमें अपने-अपने राम, सबके राम, जल संस्कृति और साहित्य, आदिवासी जीवन और समाज, 21वीं सदी के हिंदी उपन्यास तथा भारतीय भक्ति साहित्य आदि प्रमुख हैं।
इस अवसर पर डॉ. नीतू परिहार, प्रो. प्रीति भट्ट सहित अनेक शोधार्थी-विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में समवेत के संपादक डॉ. नवीन नंदवाना ने आभार व्यक्त किया।
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