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जो प्रमाण वेद और शास्त्र नहीं दे सकते वे प्रमाण लोक देता है- पद्मश्री डॉ दाधीच

लोक ने अपनी भाषा, शब्दावली और व्याकरण से  भाषाओं को समृद्ध बनाया है – कुलपति प्रो नन्दकिशोर पांडेय  

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में हुआ भारत की लोक और जनजातीय भाषाएँ, साहित्य और संस्कृति: संरक्षण, व्याख्या और प्रासंगिकता पर मंथन

संजा लोकोत्सव 2025 के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय लोक साहित्य महोत्सव में हुआ पद्मश्री से सम्मानित चार विभूतियों का सम्मान और पांच ग्रन्थों का लोकार्पण

Ujjain | हिंदी पखवाड़े के अवसर पर सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन एवं   प्रतिष्ठित संस्था प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन द्वारा संजा लोकोत्सव  2025 के अंतर्गत दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन एवं पर्यटन विभाग, मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। पहले दिन शनिवार को अंतरराष्ट्रीय लोक साहित्य महोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भारत की लोक और जनजातीय भाषाएँ, साहित्य और संस्कृति : संरक्षण, व्याख्या और प्रासंगिकता पर गहन मंथन हुआ। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि विख्यात नृत्य गुरु एवं पद्मश्री से समलंकृत विद्वान प्रो पुरु दाधीच थे। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने की। इस अवसर पर जयपुर के कुलपति प्रो नंदकिशोर पांडेय,  उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी के कुलपति प्रो नवीन चंद्र लोहनी हल्द्वानी, केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक डॉ सुनील कुलकर्णी, सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर पद्मश्री से अलंकृत चार विभूतियों डॉ पुरु दाधीच, डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित, श्री प्रहलाद टिपानिया एवं श्री कालूराम बामनिया को कला महर्षि एवं कला गंधर्व की उपाधि से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय के सहयोग से प्रकाशित पांच पुस्तकों मालवी लोक साहित्य, बघेली लोक साहित्य, गोंडी लोक साहित्य भीली लोक साहित्य एवं हिंदी भीली अध्येता कोश का लोकार्पण प्रधान संपादक एवं अनुवादक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ श्रीनिवास शुक्ल सरस सीधी, डॉ पूरन सहगल ने करवाया।

मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. पुरु दाधीच से नृत्य विशेषज्ञों द्वारा कला संवाद किया गया। उन्होंने अपने उद्बोधन एवं संवाद में प्राचीन काल में नृत्य आदि पर चर्चा करते हुए कहा कि पुराणों में तीन प्रमाण बताए गए हैं- वेद, शास्त्र और लोक। जो प्रमाण वेद और शास्त्र नहीं दे सकते वे प्रमाण लोक देता है। संजा पर्व अलग - अलग क्षेत्रों में विविध रूपों में मनाया जाता है। संजा पर्व के गीतों का  ज्योतिष शास्त्र, सामाजिक, सांस्कृतिक अर्थ निकलता है। हमें लोक संस्कृति को नवीन परिप्रेक्ष्य में  देखना चाहिए।

मुख्य वक्ता जयपुर के कुलपति प्रो. नंदकिशोर पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि सभी का शास्त्र एक होता है लेकिन अलग -अलग क्षेत्रों के कारण लोकाचार की पद्धति अलग हो जाती है। लोक ने अपनी भाषा, शब्दावली और व्याकरण से हमारी भाषाओं को और समृद्ध बनाया है।

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो. सुनील कुलकर्णी ने अपने उद्बोधन में कहा कि लोक साहित्य को पाठ्यक्रम में शामिल कर उसको आगे बढ़ाना चाहिए। लोकभाषा में परीक्षा देने के लिए शासन ने प्रावधान किया है। हमें अपनी भारतीय आलोचना पद्धति पर ध्यान देकर लोक संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नवीनचंद्र लोहनी ने अपने वक्तव्य में कहा कि संजा लोकोत्सव में अलग -अलग क्षेत्र विशेष की संस्कृतियों को देखने समझने का अवसर प्राप्त होता है। लोक से बड़ा कोई शास्त्र नहीं होता। जो बातें हम लोक से सीखते हैं कई बार हमें वे बातें बड़े - बड़े ग्रन्थ भी नहीं सिखा पाते हैं। इसलिए हमें लोक संस्कृति और साहित्य का प्रचार - प्रसार व्यापक रूप से करना चाहिए।

मुख्य समन्वयक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि लोक तत्वों का निरन्तर कायांतरण होता है। भारतीय सन्दर्भ में कोई भी अतीत मृत भूतकाल नहीं है। वर्तमान में लोक एवं जनजातीय साहित्य के सूक्ष्म अध्ययन, प्रसंगानुरूप व्याख्या, अनुशीलन और गहन विमर्श की जरूरत है। लोक साहित्य और संस्कृति सतत वर्तमान है। उनमें अतीत, वर्तमान और भविष्य का सम्मिलन है।


संजा लोकोत्सव की पीठिका संस्था निदेशक डॉ पल्लवी किशन ने प्रस्तुत की। अतिथियों का स्वागत प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ शिव चौरसिया, डॉ पल्लवी किशन, श्री कुमार किशन,  डॉ पुष्पा चौरसिया, डीएसडब्ल्यू प्रो एस के मिश्रा, सिद्धार्थ भागचंदानी आदि ने किया।

प्रथम तकनीकी सत्र की विशिष्ट अतिथि डॉ वंदना कुमारी, जयपुर थीं। इस सत्र में डॉ. नेत्रा रावणकर और डॉ बरखा श्रीवास्तव, सांवेर ने  शोध पत्रों का वाचन किया।

कार्यक्रम में डॉक्टर विभा दाधीच, डॉक्टर पूरन सहगल, मनासा, माया मालवेंद्र बधेका, डॉ ललित सिंह नई दिल्ली, डॉ ध्रुवेंद्र सिंह जोधा भोपाल आदि सहित इंडोनेशिया से आए नृत्य दल के कलाकार, शिक्षाविद एवं शोधार्थी उपस्थित थे। प्रारम्भ में लोक गीतों की प्रस्तुति युवा गायिका स्नेहा गेहलोत ने की।

कार्यक्रम का संचालन प्रो. जगदीशचंद्र शर्मा ने और आभार प्रदर्शन संस्थाध्यक्ष डॉ. शिव चौरसिया ने किया। 




संजा लोकोत्सव के अंतर्गत रविवार को अकादमिक सत्र, अंतरराष्ट्रीय लोक साहित्य महोत्सव के समापन के साथ लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे 

संजा लोकोत्सव के अंतर्गत 14 सितम्बर 2025, रविवार, को कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के तकनीकी सत्र प्रातः 10: 30 बजे प्रारम्भ होंगे। दोपहर 2:00 बजे चतुर्थ तकनीकी सत्र होगा। संजा लोकोत्सव - अंतरराष्ट्रीय लोक साहित्य महोत्सव का समापन एवं लोक सांस्कृतिक सन्ध्या का आयोजन कालिदास अकादेमी स्थित भरत विशाला रंगमंच पर सायं 7:00 होगा।

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