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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती पर हुआ गुप्त जी के काव्य के विविध आयामों पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

समाज और देश को वैचारिक पृष्ठभूमि दी राष्ट्रकवि गुप्त जी ने – प्रो विशाला शर्मा 

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं ललित कला अध्ययनशाला द्वारा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती पर गुप्त जी के काव्य के विविध आयामों पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो, इन पंक्तियों के माध्यम से देश के नागरिकों को उद्यम के लिए प्रेरित करने वाले रचनाकार हिन्दी साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्रों में से एक राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त स्मृति प्रसंग के तहत आयोजित इस संगोष्ठी की मुख्य अतिथि साहित्यकार एवं हिंदी सेवी प्रो विशाला शर्मा, छत्रपति सम्भाजीनगर, महाराष्ट्र थीं। अध्यक्षता कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने की। संगोष्ठी में कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया, प्रो गीता नायक एवं प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने प्रकाश डाला। कार्यक्रम में लेखिका प्रो विशाला शर्मा को अंगवस्त्र, साहित्य एवं मौक्तिक माल अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया। कार्यक्रम में डॉ विशाला शर्मा द्वारा विगत पच्चीस वर्ष से संपादित पत्रिका समागम के विशेषांकों एवं उनकी पुस्तक प्रयोजनमूलक हिंदी का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। 

मुख्य अतिथि प्रो विशाला शर्मा,  छत्रपति संभाजीनगर ने अपने व्याख्यान में कहा कि मैथिलीशरण गुप्त ने समाज और देश को वैचारिक पृष्ठभूमि दी, जिसके आधार पर नया दर्शन विकसित हुआ है। उन्होंने आम-जन के बीच प्रचलित देशी भाषा को मांजकर जनता के मन की बात, जनता के लिए, जनता की भाषा में कही, इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि का सम्मान प्रदान किया। वे समाज के जिस हिस्से में शोषण, झूठ, अधिकारों का दमन, अनैतिकता एवं पराधीनता थी, उसे वे बदलना चाहता थे और उसके स्थान पर नैतिकता एवं पवित्रता से अनुप्राणित आजाद भारत देखना चाहते थे। उन्होंने प्रवासी साहित्य की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह साहित्य उन लेखकों द्वारा लिखा गया साहित्य है जो अपनी मातृभूमि से दूर किसी अन्य देश में रहते हैं। यह साहित्य, उन लेखकों के अनुभवों, संघर्षों, और सांस्कृतिक मिश्रण को दर्शाता है जो अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए एक नए देश में जीवन यापन करते हैं। प्रवासी साहित्य में अक्सर दो संस्कृतियों के बीच का टकराव दिखाई देता है। यहां सहित्य लेखन में स्त्री कथाकारों की बहुलता और प्रधानता है।


अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अर्पण भारद्वाज ने कहा कि जिसका मन सहृदय होता है वही व्यक्ति साहित्यकार होता है। मैथिलीशरण गुप्त ऐसे ही रचनाकार थे। भाषाएं मनुष्य को समृद्ध बनाती है। हमें पठन-पाठन के आधुनिक तरीके अपनाने होंगे। तभी विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षा में सफल हो पाएंगे।

विशिष्ट वक्तव्य कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्रकुमार शर्मा ने देते हुए कहा कि भारतीय राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा के बीजवपनकर्ता मैथिलीशरण गुप्त जी का काव्य आज भी प्रासंगिक हैं। गांधी दर्शन से प्रभावित गुप्त जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया और असहयोग आंदोलन में जेल यात्रा भी की। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रप्रेम को जगाने के साथ ही अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध प्रतिरोध की ताकत पैदा की। भारत भारती की पंक्ति - हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी, आओ, विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी, आज भी जनमानस को प्रेरित करती हैं। गुप्त जी ने रामकथा को एक नया परिवेश दिया। रामकथा से अनुप्रेरित साकेत आधुनिक युग का एक प्रसिद्ध महाकाव्य है। 

कार्यक्रम में डॉ हरिमोहन बुधौलिया ने भी विचार व्यक्त किए। अतिथि परिचय तथा स्वागत भाषण प्रोफेसर गीता नायक ने दिया। 

विशिष्ट व्याख्यान तथा परिसंवाद में प्रो जगदीशचंद्र शर्मा सहित हिंदी अध्ययनशाला के शोधकर्ता और विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा वाग्देवी एवं राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।

अतिथियों का स्वागत विभाग के अध्यक्ष, शिक्षकों एवं शोधार्थी नंदिनी तिवारी ने किया। संचालन शोधार्थी सचिन तिवारी ने किया और आभार डॉ अरुणा दुबे ने माना।

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