गोस्वामी तुलसीदास: सांस्कृतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन द्वारा गोस्वामी तुलसीदास: सांस्कृतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन में मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल, श्री ब्रजकिशोर शर्मा, सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक नॉर्वे, विशेष अतिथि श्री पदमचंद गांधी जयपुर, डॉ आफताब अनवर शेख प्राचार्य चॉइस कॉलेज पुणे, डॉ शहनाज शेख, नांदेड़, डॉ प्रभु चौधरी आदि ने विचार व्यक्त किए।
नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने गोस्वामी तुलसीदास की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि वे भारतीय साहित्य जगत के अद्वितीय नक्षत्र थे।
मुख्य वक्ता के रूप में शामिल विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द कुमार शर्मा ने कहा कि तुलसी काव्य भारत वाणी है और भारतीयता का साकार बिम्ब है। तुलसीदास ने अपने काव्य के माध्यम से सम्पूर्ण जगत को सार्वभौमिक मूल्यों से जोड़ा। तुलसीदास जी का काव्य भारत और भारतीय संस्कृति का अक्षर प्रतीक है। तुलसीदास जी के विचार, भाषा, कथा वर्णन अनुपम है। उन्होंने ब्रह्म के सगुण और निर्गुण रूप के बीच समन्वय किया।
अध्यक्षता करते हुए श्री व्रज किशोर शर्मा ने उद्बोधन में कहा कि गोस्वामी तुलसीदास के काव्य में जीवन का सार समाया हुआ है।
विशिष्ट वक्ता डॉ प्रभु चौधरी राष्ट्रीय संगठन महामंत्री उज्जैन ने कहा कि तुलसीदास रामबोला से राम भक्त बने। वे मध्य युग के महान कवि, और वाल्मीकि के अवतार थे। राम भक्तों में हनुमान के पश्चात किसी का नाम लिया जाएगा तो नाम आएगा तुलसीदास का। मध्यकाल के अंधकार मय युग में जब जनता त्रासद स्थितियों में थी उस समय तुलसी ने रामचरित मानस की रचना कर जन-जन में राम भक्ति को पहुंचाया। उन्होंने भक्ति की मशाल जलाकर भक्ति आंदोलन को नई दिशा दी।
विशेष अतिथि श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक नॉर्वे ने तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे मंगल भवन का गान किया। विशिष्ट वक्ता डॉ. नीलू सक्सेना ने तुलसीदास की भक्ति पद्धति का वर्णन किया। विशिष्ट वक्ता के रूप में पदमचंद गांधी ने गोस्वामी तुलसी दास जी की जीवन गाथा प्रस्तुत की।
कवि श्री सुन्दरलाल जोशी नागदा ने तुलसी के भक्ति मार्ग और रामायण की विशेषताओं की चर्चा करते हुए कहा कि उनके लेखन में भक्ति, वात्सल्य और सौंदर्य का अद्भुत मिश्रण है। उन्होंने काव्य पंक्तियां सुनाईं, जब तक जग में है राम का नाम तब तक रहेगा आपका नाम। रचना की मानस की, करके शिव अरदास। भक्ति ज्ञान गंगा बही, जय हो तुलसीदास। जय हो तुलसीदास, ग्रंथ समरसता साया। भरा भक्ति गुण सार, ज्ञान आदर्श समाया। नवधा भक्ति भाव, राम गुण सागर सृजना। भरे अथाह संदेश, करी ग्रंथों की रचना। कारूलाल जमड़ा जावरा ने तुलसीदास जी के नाम तथा ग्रंथ के बारे में बताया। प्रसन्ना कुमारी केरल ने रामचरित मानस के मार्मिक दोहे प्रस्तुत किये।
डॉ. शहनाज शेख ने स्वागत भाषण तथा प्रस्तावना के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी के योगदान की चर्चा की। उन्होंने कहा कि गोस्वामी जी ने भेदभाव से मुक्त समाज की कल्पना की थी।
विशिष्ट अतिथि डॉ जया सिंह ने तुलसी की महिमा का वर्णन किया, सृजना मानस की हुई, चित्रकूट के तीर। तुलसी ने चंदन घिसा, तिलक किया रघुवीर। तिलक किया रघुवीर, दरस हनुमत का पाया। सकल सृष्टि का सार, हुआ मानस में साया। बुरे काम गुण दोष, लिखी सब इसमें वर्जना। सद्गुण चरित समाय, करी मानस की सृजना।
मध्यप्रदेश प्रांतीय अध्यक्ष डॉ अनीता तिवारी भोपाल ने काव्य पंक्तियों से तुलसी के योगदान का वर्णन किया, हुए एक बड़े भक्त महान, जपते रहते राम का नाम। राम नाम से हुआ कल्याण, जग में उनकी निराली शान। काशी के घाटों पर रहते, राम नाम की कथा वो कहते। रामबोला पड़ा उनका नाम, बने बड़े वो कवि महान। रामचरितमानस को लिखा, किया प्रभु का अति गुणगान। हनुमान चालीसा के रचयिता, किए तुलसी ने दर्शन हनुमान। श्रावण शुक्ल सप्तमी को जन्मे, माता हुलसी पिता आत्माराम। नरहरीदास से शिक्षा पाए, रत्नावली से ब्याह रचाए। पत्नी ने तोड़ा अभिमान, मिल गया तुलसी को फिर ज्ञान। हुए एक बड़े भक्त महान, जपते रहते राम का नाम।
आयोजन में उपस्थित श्रोतागण ने भी विचार विमर्श किया। सरस्वती वंदना डॉ अरुणा सराफ इंदौर ने की। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना इकाई की अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी का संचालन श्वेता मिश्र बरेली ने किया। यह आयोजन राष्ट्रीय संगठन महामंत्री डा प्रभु चौधरी के संयोजन में आयोजित हुआ। आभार डॉ मुमताज पठान राष्ट्रीय सचिव पुणे ने माना।
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