विक्रम विश्वविद्यालय में गोस्वामी तुलसीदास जयंती एवं मुंशी प्रेमचंद जयंती पर हुआ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षरवार्ता और कृष्ण बसन्ती का हुआ लोकार्पण
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला में मध्य प्रदेश लेखक संघ एवं राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के सहयोग से विश्ववन्द्य गोस्वामी तुलसीदास जयंती एवं मुंशी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर गोस्वामी तुलसीदास एवं मुंशी प्रेमचंद: साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सन्दर्भों में विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 31 जुलाई, गुरुवार को मध्याह्न में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी के कुलपति प्रो नवीनचन्द्र लोहनी, ओस्लो नॉर्वे से श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया, फिलाडेल्फिया, यूएसए से डॉ मीरा सिंह, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ सोमदत्त काशीनाथ, मॉरीशस, डॉ प्रभु चौधरी सहित अनेक सुधी साहित्यकार और संस्कृतिकर्मियों ने दोनों साहित्यकारों के रचना संसार पर मंथन किया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षरवार्ता और कृष्ण बसन्ती का लोकार्पण किया गया।
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी के कुलपति प्रो नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि तुलसी संतुलन की दुनिया में आगे ले जाते हैं। रामचरितमानस संपूर्ण विश्व में जानी जाती है और इसने समाज को बहुत गहरे प्रभावित किया है। तुलसी ने धर्म को स्थापित किया है। उनका साहित्य हमें किसी भी नकारात्मक सत्ता से लोहा लेने की शक्ति देता है।
अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने कहा कि तुलसी ने अपने नायक को विशाल एवं उद्दात बनाया। उनकी कविता जन्म से लेकर प्रयाण तक की कविता है। कलम के माध्यम से कवि समाज को गढ़ सकता है। कवि कविता में पात्रों को पूजनीय बना देता है। तुलसी काव्य का सन्देश है कि समाज के ऋणत्मक बदलाव को हमें रोकना है।
मुख्य वक्ता कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास संपूर्ण विश्व मानवता का उद्धार करने वाले महापुरुष हैं। उन्होंने विश्व सभ्यता के कल्याण के लिए जन्म लिया। तुलसी समग्रता में जीवन को देखते हैं। तुलसी का दर्शन राम दर्शन है। उनका सांस्कृतिक तथा काव्यात्मक योगदान अनुपम है। जहां तुलसी की पंक्तियों का उच्चारण होता है वह स्थान मंगलमय हो जाता है। हमारी परंपरा में वैदिक काल से ही श्रद्धा - विश्वास की गंगा बहती आ रही है। गोस्वामी तुलसीदास जी से जुड़ना विश्व मानवता के साथ जुड़ना है। तुलसीदास की पंक्तियां हमें आत्मावलोकन का अवसर देती हैं। उनकी वाणी आज लोककंठहार बनकर हमारे बीच जीवन्त है। तुलसी और कबीर हमें अलग-अलग जगह रास्ते एक ही दिशा की ओर ले जाते हैं। प्रेमचंद ने समाज के द्वंद्व को अपनी रचना में दिखाया है। प्रेमचंद मनुष्यता के पक्ष में खड़े रहते हैं।
नॉर्वे से श्री सुरेश चंद्र शरद आलोक ने कहा कि राम हमारे जीवन का हिस्सा हैं। तुलसी का काव्य आज भी प्रासंगिक है। विद्यार्थी अपना लक्ष्य साध कर हर क्षण अपने कार्यों का चिंतन मनन करें, अपना निरीक्षण करें।
पूर्व अध्यक्ष हरिमोहन बुधौलिया ने कहा कि तुलसीदास जी हमें जीवन जीने की शैली सिखाते हैं। आज देश के विभिन्न भागों तथा संस्थाओं में तुलसी जयंती मनाई जा रही है। प्रेमचंद तथा तुलसी का रचना संसार सात समंदर पार भी महत्वपूर्ण है। तुलसी की एक-एक चौपाई महामंत्र है।
प्रो गीता नायक ने कहा कि तुलसी काव्य के शिखर पुरुष और प्रेमचंद कालजयी साहित्यकार हैं। हमें तुलसीदास की पंक्तियों को अपने जीवन में उतारना है।
ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि तुलसीदास हमें प्रशंसा के क्षण में गर्व नहीं होने देते और जब हम हतोत्साहित हो जाते हैं तो हमें निराश नहीं होने देते। वह सभी के साथ आत्मीय संबंध बनाए रखते हैं और एक ही धरातल पर खड़े रहते हैं।
डॉ प्रभुलाल चौधरी ने कहा कि एक महापुरुष ने अध्यात्म तथा दूसरे ने साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान दिया। प्रेमचंद उपन्यास सम्राट रहे जिन्होंने दलित वर्ग की उपेक्षा, समाज को आगे लाने जैसे विषय को और शोषण को केंद्र में रखा। तुलसी का नाम आते ही राम का स्मरण होता है। इन्होंने तुलसी के जीवन के विषय में विशिष्ट जानकारी दी।
यूएसए से डॉ मीरा सिंह ने तुलसीदास जी पर एक कविता सुनाई। डॉक्टर सोमदत्त काशीनाथ ने मॉरीशस से तुलसी जयंती पर हिंदी विभाग के सुधीजनों के प्रति मंगलकामनाएं अर्पित की।
शोधार्थी रणधीर आठिया ने रामचरितमानस के दोहे सुनाए। शोधकर्ता श्यामलाल चौधरी ने राम संबंधी सुंदर गीत सुनाया। डॉ नेत्रा रावणकर जी ने प्रेमचंद की कहानी हीरा मोती पर अपने विचार रखें। शोधार्थी रामसुखेन यादव ने भक्ति के दोहे सुनाए। प्रारम्भ में गोस्वामी तुलसीदास और मुंशी प्रेमचंद के चित्र पर अतिथियों द्वारा पुष्पांजलि अर्पित की गई।
संचालन शोधार्थी अजय सूर्यवंशी ने किया। आभार प्रदर्शन प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।
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