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चरक जयंती विशेष लेख
चरक संहिता: आयुर्वेद की अमूल्य धरोहर
आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाने वाली चरक संहिता चिकित्सा शास्त्र का सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ है। इस ग्रंथ में चिकित्सा विज्ञान के मौलिक तत्वों का जितना उत्तम विवेचन किया गया है, उतना अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। प्राचीन विद्वानों ने कहा है –
“चरकस्तु चिकित्सते”, अर्थात् चरक ही चिकित्सा करते हैं।
महर्षि चरक का जन्म
महर्षि चरक का जन्म किस काल में हुआ, इस संबंध में कोई पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। भाव प्रकाश ग्रंथ के अनुसार आचार्य चरक को शेषावतार माना गया है। अर्थात, श्रावण मास शुक्ल पक्ष पंचमी को नाग पंचमी के दिन महर्षि चरक का जन्म हुआ था।
आचार्य कपिष्ठल चरक का जन्म पंचनद प्रांत में इरावती एवं चंद्रभागा नदियों के बीच हुआ था। त्रिपिटक ग्रंथ के चीनी अनुवाद में उन्हें कनिष्क का राजवैद्य बताया गया है।
यजुर्वेद के 86 भेदों में "चरका" नाम द्वादश भेदा के आधार पर चरक शाखा में 12 भेद बताए गए हैं।
अग्निवेश तंत्र के प्रतिसंस्कारकर्ता आचार्य चरक, विशुद्ध के पुत्र वैशंपायन के शिष्य थे। यह ईसा से लगभग 3000 वर्ष पूर्व के माने जाते हैं।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति के आचार्य हिपोक्रेट्स (ईसा पूर्व 600) ने भी उनके सिद्धांतों का प्रभाव स्वीकार किया है। संभवतः आचार्य चरक का जन्म नागवंश में हुआ था। इसी आधार पर भाव प्रकाश आदि ग्रंथों में उन्हें शेषावतार माना गया है।
चरक संहिता की रचना प्रक्रिया
इत्यग्निवेशकृते तन्त्रे चरक प्रतिसंस्कृतेऽप्राप्ते दृढबल सम्पूरिते।
इस श्लोक के अनुसार वर्तमान काल में उपलब्ध चरक संहिता की मूल रचना महर्षि अग्निवेश द्वारा की गई थी। आचार्य चरक ने इसका प्रतिसंस्कार (पुनः संशोधन) किया तथा आचार्य दृढ़बल ने इसे पूर्ण किया।
चरक संहिता की रचना संरचना
चरक संहिता आठ स्थानों में विभाजित है, जिसमें कुल 120 अध्याय, 12,000 श्लोक, एवं 9295 सूत्र शामिल हैं। इस संहिता में 14 देशों और 64 आचार्यों का वर्णन मिलता है।
चरक संहिता की भाषा
चरक संहिता की रचना संस्कृत भाषा में की गई है, और कहीं-कहीं इसमें पाली भाषा के शब्द भी मिलते हैं। यह संहिता गद्य और पद्य दोनों रूपों में लिखी गई है।
चरक संहिता के आठ स्थान
1. सूत्र स्थान
यह प्रथम स्थान है जिसमें औषधि विज्ञान, आहार, चयापचय, विशेष रोग, शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार का उल्लेख मिलता है।
"चतुर्णां भिषगादीनां शस्तानां धातुवैकृते। प्रवृत्तिर्धातुसाम्यार्था चिकित्सेत्यभिधीयते।" – चरक सूत्र स्थान
धातुओं की विकृति होने पर उन्हें सम करने के लिए उत्तम वैद्य, परिचारक, औषधि और रोगी – चिकित्सा के चार पदों की प्रवृत्ति को चिकित्सा कहा गया है।
2. निदान स्थान
रोगों के कारण, पूर्वरूप, रूप (लक्षण), उपशय और संप्राप्ति का विवरण देकर निदान की पद्धति समझाई गई है।
3. विमान स्थान
इस स्थान में दोषबल और रोगबल के मान और प्रमाण का वर्णन मिलता है।
4. शारीर स्थान
मानव शरीर की संरचना और गर्भ में शिशु के विकास का वर्णन, मासानुमासिक चर्या सहित, इस स्थान में मिलता है।
5. इंद्रिय स्थान
इस स्थान में रोगों के अरिष्ट लक्षणों के आधार पर रोग की गंभीरता और संभावित मृत्यु के संकेतों का वर्णन मिलता है।
6. चिकित्सा स्थान
इस स्थान का आरंभ रसायन एवं बाजीकरण अध्याय से होता है। 30 अध्यायों में रोग, उनके कारण, चिकित्सा तथा रोग न होने के उपायों का विस्तार से वर्णन है।
7. कल्प स्थान
वमन एवं विरेचन के 600 योगों का विस्तृत विवरण इस स्थान में उपलब्ध है।
8. सिद्धि स्थान
रोगों के पुनरुत्पत्ति न होने के लिए पंचकर्म चिकित्सा का विशद वर्णन इस स्थान में किया गया है।
चरक संहिता के प्रमुख सिद्धांत
चरक संहिता में आयुर्वेद के निम्नलिखित प्रमुख सिद्धांतों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वर्णन किया गया है:
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निदान की वैज्ञानिक पद्धति
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आयुर्वेद चिकित्सा का प्राकृतिक आधार
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मानस दृष्टिकोण
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पंचमहाभूत सिद्धांत
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रस-गुण-वीर्य सिद्धांत
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त्रिदोष सिद्धांत
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देह-मानस दृष्टिकोण
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प्रज्ञा अपराध सिद्धांत
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प्रत्येक व्यक्ति की अलग प्रकृति को समझाने वाला प्रकृति सिद्धांत
इन सभी सिद्धांतों का जो ज्ञान चरक संहिता में है, वही ज्ञान पूरे आयुर्वेदिक शास्त्र में व्यापक रूप से देखा जाता है।
लेखक परिचय
डॉ. जितेंद्र जैन
एमडी आयुर्वेद संहिता,
संहिता विशेषज्ञ,
आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी,
शासकीय आयुर्वेद औषधालय, करोहन,
जिला उज्जैन, मध्यप्रदेश।
डॉ. प्रकाश जोशी
असिस्टेंट प्रोफेसर,
रचना शारीर विभाग,
शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय।
चरक जयंती के अवसर पर इस अमूल्य धरोहर को नमन एवं आभार।
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