यशस्वी कवि पद्मभूषण श्री शिवमंगलसिंह सुमन स्मरण प्रसंग एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
नॉर्वे से मुंशी प्रेमचंद अंतरराष्ट्रीय अलंकरण की घोषणा के लिए प्रो जगदीश चंद्र शर्मा का सारस्वत सम्मान हुआ
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला द्वारा यशस्वी कवि पद्मभूषण डॉ शिवमंगलसिंह सुमन स्मरण प्रसंग एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। डॉ सुमन की जयंती अवसर पर आयोजित इस संगोष्ठी में ओस्लो नॉर्वे से वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, मुख्य वक्ता प्रभारी कुलगुरु प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया, प्रो गीता नायक, डॉ मीरासिंह, फिलाडेल्फिया, यूएसए, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ उमा गगरानी, मन्दसौर, डॉ हरीशकुमार सिंह, डॉ प्रभु चौधरी आदि ने डॉ सुमन जी के साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डाला।
मुख्य वक्ता प्रभारी कुलगुरु प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सुमन जी यद्यपि स्वच्छंदतावाद के दौर से काव्य रचना प्रारम्भ की थी, लेकिन वे अपने समय और परिवेश से विमुख नहीं रहे। उनकी कविताओं में पूरा का पूरा युग जीवन समाविष्ट होता है। स्वच्छंद धारा से भी आगे बढ़कर सुमन जी राष्ट्रीय - सांस्कृतिक भावना से जुड़े और आगे प्रगतिपरक और नई कविता से खुद को जोड़ा। उन्होंने साहित्य, संस्कृति और शिक्षा जगत को गहराई से प्रभावित किया है। उनका स्मरण हमें रोमांच से भर देता है। उनके काव्य की कई पंक्तियां याद आती हैं, मैं नहीं आया तुम्हारे द्वारा पथ ही मुड़ गया था या चाहता तो रुक सकता था किंतु अगणित स्वर बुलाते हैं बांह उठाए। सुमन जी प्रणय सौंदर्य के साथ-साथ क्रांति के भी पुरोधा थे। सुमन जी की कविताएं हमें ओजस्विता से भर देती हैं। कवि को उम्मीद रही है कि एक दिन आएगा जब समाज परवशता और भेदभाव से मुक्त होगा और हम विश्व को वैचारिक स्वतंत्रता के साथ श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाएंगे।
नॉर्वे से सुरेश चंद्र शुक्ल ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि सुमन जी की कविताएं विश्व विख्यात हो रही हैं। उन्होंने सुमन जी से संबंधित अनेक प्रसंग सुनाए तथा संस्मरण साझा किए।
प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया ने अपने वक्तव्य की शुरुआत सुमन जी काव्य पंक्ति मैं शिप्रा सा तरल सरल सा बहता हूं से की। सनातन धर्म बहुत पुराना है इसी प्रकार विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन हमें सुमन जी से जोड़ता है। उन्होंने सुमन जी के अनेक संस्मरण सुनाए। सुमन जी ने देश के अनेक कवियों को उज्जैन में आमंत्रित किया।
प्रोफ़ेसर गीता नायक ने कहा कि सुमन जी निराला जी की दीर्घ कविता राम की शक्ति पूजा प्रभावी ढंग से सुनाते थे, जिसे सुनना अद्भुत अनुभव होता था। सुमन जी सिखाते हैं कि एक शिक्षक कैसा होना चाहिए हमें श्रेष्ठ शिक्षक सिद्ध होना है।
डॉ उमा गगरानी मन्दसौर ने कहा कि सुमन जी देश के अनेक शिक्षाविद और विद्यार्थीगण के प्रेरणा स्रोत रहे। उनका विचार है कि भाषाओं में अनुवाद हो सकता है परंतु हमारे भाव और संवेदना का कोई अनुवाद नहीं हो सकता है। उन्होंने सुमन जी का मार्मिक संस्मरण सुनाया। वरदान मांगूगा नहीं जैसे अनेक गीतों के रचनाकार सुमन जी अपनी ओजस्विता के कारण सभी के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। उनका कहना था कि हमें कभी भी अपना लक्ष्य नहीं भूलना चाहिए।
कार्यक्रम में प्रो जगदीश चंद्र शर्मा को नॉर्वे से मुंशी प्रेमचंद अंतरराष्ट्रीय अलंकरण की घोषणा के लिए उनका सारस्वत सम्मान किया गया। उपस्थित साहित्यकार, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने डॉ आर सी भावसार द्वारा सृजित सुमन जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।
संचालन अजय सूर्यवंशी ने किया। आभार प्रदर्शन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।
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