भारतीय संस्कृति में गुरु- शिष्य परंपरा : विविधविध योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसका विषय भारतीय संस्कृति में गुरु- शिष्य परंपरा : विविधविध योगदान था। इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में मंतव्य व्यक्त करते हुए नॉर्वे से श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि, वेद और गुरु ग्रंथ साहिब भी गुरु हैं। गुरु ही अपने शिष्यों को मानव से महामानव बनता है तथा सभी लोगों की प्रथम गुरु मां होती है।
समारोह के अध्यक्ष श्री बृज किशोर शर्मा, पूर्व शिक्षा अधिकारी ने अध्यक्षीय भाषण में कहा, युवाओं के आक्रोश, मीडिया के अवमूल्यन आदि समस्याओं के निवारण के साथ सही शिक्षा और आदर्श समाज हेतु सही गुरु की आवश्यकता है।
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा गंगा नदी के प्रवाह की तरह प्राचीन और अविरल है। वैदिक साहित्य से लेकर आधुनिक चिंतन तक, गुरु शिष्य परम्परा सभी अन्वेषण और परीक्षण के केंद्र में रही है। जन्म वंश से ज्यादा गुरु शिष्य परम्परा के सातत्य को, विद्या वंश को भारत भूमि में महत्त्व मिला है।
डॉ. अनसूया अग्रवाल, अध्यक्ष महिला इकाई ने कहा, गुरु के महत्व को आज नई पीढ़ी तक पहुंचाना अति आवश्यक है।
डॉ. शहनाज शेख महासचिव राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा कि गुरु ही अनुशासन और नम्रता ला सकता है।
डॉ. दक्षा जोशी गुजरात , राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा मानव जीवन का उद्देश्य आत्मा को जानना है। जितने भी महानायक हुए हैं उनके गुरु के पथ प्रदर्शन से ही हुए हैं जिसमें शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास, चंद्रगुप्त के गुरु चाणक्य, गुरु वशिष्ठ, गुरु वाल्मीकि, सांदीपनि आदि का अपने शिष्यों को मानव से महामानव बनाया। आपने कहा कि जीवन में गुरु का महत्वपूर्ण स्थान है।
श्रीमती सरोज दवे ने कहा, सत्य मार्ग पर ले जाते हैं गुरु।
विशिष्ट वक्ता डॉ प्रभु चौधरी , उज्जैन, कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने सभी गुरुओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। युगपुरुष वेद मूर्ति तपोनिष्ठ विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने विचार व्यक्त किया।
राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ हरिसिंह पाल ने कहा, गुरु के प्रति समर्पण होना चाहिए और श्रद्धा रखनी चाहिए। राष्ट्रीय संयोजक श्री पदमचंद गांधी ने कहा, गुरु भगवान के समान है। गुरु शिष्य की सारी परेशानियों को अपने ऊपर ले लेता है। संचालक डॉ. रश्मि चौबे गाजियाबाद, मुख्य प्रवक्ता राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कुशल संचालन करते हुए कहा, हमारे इतिहास में गुरु विश्वामित्र, गुरु सांदीपनि, वशिष्ठ जी, गुरु नानक जी, गुरु गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद ,दयानंद सरस्वती, सावित्रीबाई फुले, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, राजा राममोहन राय जैसे गुरु हुए हैं। उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए देश और समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास किया है।
कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ. रश्मि चौबे गाजियाबाद की सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत भाषण डॉ अनसूया अग्रवाल ने एवं प्रस्तावना डॉ. शहनाज शेख नांदेड़, महाराष्ट्र ने आभार व्यक्त श्री पदमचंद गांधी जी ने किया।
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