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धर्मवीर भारती का अंधायुग है कालजयी रचना, जो ज्योति की कथा है अंधों के माध्यम से – प्रो शर्मा

धर्मवीर भारती जन्म शताब्दी वर्ष पर हुई धर्मवीर भारती और उनका साहित्यिक योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

संगीत के क्षेत्र में अविस्मरणीय नवाचार के लिए नगाड़ा सम्राट श्री नरेन्द्रसिंह कुशवाह का हुआ सारस्वत सम्मान 

उज्जैन। विख्यात लेखक, कवि एवं सम्पादक श्री धर्मवीर भारती की जन्म शताब्दी के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में किया गया। संगोष्ठी का विषय था, धर्मवीर भारती और उनका साहित्यिक योगदान। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि ओस्लो नॉर्वे से साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। मुख्य वक्ता मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ नवीन नन्दवाना, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, प्रो गीता नायक, श्री सतीश दवे, डॉ प्रभु चौधरी आदि ने विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर संगीत के क्षेत्र में अविस्मरणीय नवाचार के लिए प्रख्यात संगीतज्ञ एवं नगाड़ा सम्राट श्री नरेन्द्रसिंह कुशवाह का सारस्वत सम्मान किया गया। 

अध्यक्षता करते हुए कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि धर्मवीर भारती का अंधायुग एक कालजयी रचना है जो आस्था और अनास्था के द्वंद्व को दर्शाती है। युद्धोपरांत समाज में व्याप्त अनास्था, मूल्यहीनता और त्रासदायी स्थितियों को इस काव्यनाटक में अभिव्यक्ति मिली है। उन्होंने अंधायुग में ज्योति की कथा अंधों के माध्यम से प्रस्तुत की है। उन्होंने अपनी कृतियों में देश देशांतर के पुराख्यानों की अभिनव व्याख्या का अविस्मरणीय कार्य किया। भारती जी एक महान कवि, कथाकार, नाटककार, सप्तक कवि, कथेतर साहित्य के प्रतिनिधि हस्ताक्षर थे। भारती जी नहीं होते तो अनेक कथेतर गद्य विधाएँ का विकसित नहीं होतीं। उनकी रचना ठेले पर हिमालय सार्थक प्रतीक के रूप में उभरती है। 

ओस्लो, नार्वे से सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि भारती जी ने धर्मयुग पत्रिका के माध्यम से साहित्यिक - सांस्कृतिक पत्रिकाओं के आंदोलन को नई दिशा दी। वे सभी विचारधाराओं का सम्मान करते थे। उन्होंने धर्मवीर भारती से संबंधित अपने संस्मरण सुनाए।

डॉ नवीन नंदवाना, उदयपुर ने कहा कि धर्मवीर भारती एक सशक्त कलमकार थे। उन्होंने कविता, कथा, कथेत्तर साहित्य पर अपनी सशक्त लेखनी चलाई। उन्होंने अपने साहित्य में प्रेम की परिभाषा को शामिल किया। कवि प्रेम के साथ सामाजिक मर्यादा की बात करता है। उनकी रचनाएँ जीवन के विभिन्न पड़ावों को अभिव्यक्त करती हैं। 

डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि धर्मवीर भारती का उपन्यास सूरज का सातवां घोड़ा एक प्रयोगधर्मी उपन्यास है। भारती जी ने धर्मयुग पत्रिका के माध्यम से पत्रकारिता को आगे बढ़ाया। धर्मयुग के अलावा इन्होंने निकष और आलोचना जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का भी संपादन किया। वरिष्ठ रंगकर्मी श्री सतीश दवे ने धर्मवीर भारती से संबंधित संस्मरण सुनाया। 

समारोह में प्रसिद्ध संगीतज्ञ एवं नगाड़ा सम्राट श्री नरेन्द्रसिंह कुशवाह को अतिथियों द्वारा शॉल, साहित्य एवं पुष्पमाला अर्पित करते हुए सारस्वत सम्मान किया गया। कार्यक्रम में नगाड़ा सम्राट श्री नरेन्द्र सिंह कुशवाह ने काँच एवं संगमरमर के नगाड़े और डमरू पर विविध तालों की प्रस्तुति की। नरेन्द्र सिंह कुशवाह के भारतीय ताल वाद्य परम्परा एवं डमरू, नगाड़ा और ढोल पर केंद्रित शोध, निर्माण एवं प्रस्तुति के फलक को श्री कुशवाह द्वारा अर्पित किया गया। श्री कुशवाह ने वाद्य निर्माण में अनेक नवाचार किए हैं। विश्व में पहली बार उन्होंने 40 से अधिक नव ताल वाद्यों का निर्माण किया, जिनमें बांस, लोहे की पत्ती, सरिये, पत्थर, काँच आदि से नगाड़े, डमरू, ढफ, ताशा आदि का निर्माण प्रमुख है। इनका गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में 5 बार एवं लिम्का बुक में 3 बार उल्लेख किया गया है। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी की है।

हिंदी अध्ययनशाला एवं ललित कला अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्री धर्मवीर भारती जन्मशती समारोह में प्रो जगदीश चंद्र शर्मा एवं डॉ नवीन नन्दवाना को अंगवस्त्र एवं साहित्य भेंटकर उनका सम्मान किया गया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संस्थापक डॉ प्रभु चौधरी, दर्शनविद डॉ चिन्तामणि राठौड़, श्रीमती किरण शर्मा, झाबुआ, कलागुरु श्री लक्ष्मीनारायण सिंहरोड़िया, श्री राजेश जूनवाल, डॉ महिमा मरमट, डॉ नेत्रा रावणकर आदि सहित बड़ी संख्या में शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया। 

संचालन शोधार्थी संगीता मिर्धा ने किया। आभार प्रदर्शन ललित कला विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।

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