देश के सामाजिक - सांस्कृतिक पुनर्जागरण का काम किया महाराष्ट्र के संतों ने - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
महाराष्ट्र के सन्त कवियों की भावभूमि और योगदान पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा महाराष्ट्र इकाई के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी महाराष्ट्र के सन्त कवियों की भावभूमि और योगदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुवर्णा जाधव पुणे, मुख्य अतिथि श्री सुरेश चंद्र शुक्ल ओस्लो नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि डॉ सुषमा कोंडे पुणे, डॉ करुणा पांडे, लखनऊ, डॉ शाकिर शेख, पुणे, श्री पदमचंद गांधी, जयपुर, डॉ प्रभु चौधरी उज्जैन रहे। संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ ब्रजकिशोर शर्मा राष्ट्रीय संरक्षक ने की।
मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक डॉक्टर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र के संतों ने देश के सामाजिक - सांस्कृतिक पुनर्जागरण का काम किया। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से आगे प्रेम भक्ति को महिमा दी। संतों की भाव भूमि को देखें तो उन्होंने भाव भक्ति का बीज रोपित किया। संत साधकों द्वारा वसुधैव कुटुंबकम् का प्रचार प्रसार किया गया। उन्होंने सब जगह आत्म तत्त्व का दर्शन करवाया। महाराष्ट्र की सन्त परंपरा के कवियों ने कहा कि जहाँ जाऊँ हे प्रभु, तुम जाते हो मेरे साथ। तुम्हारे नाम में ही अद्भुत शक्ति है, तुमने ही धीर बंधाया है। उन्होंने दक्षिण भारत के भक्ति प्रवाह को अंगीकृत किया। उन्होंने कहा कि हरिनाम का तत्व सर्वोपरि है। नामदेव हों या ज्ञानेश्वर और तुकाराम ये सभी उत्तर और दक्षिण भारत के सेतु हैं। सन्तों ने विभेद और विलगाव से मुक्ति का मार्ग दिखाया। महाराष्ट्र के संत साहित्य द्वारा नए समाज की आधारशिला रखी गई। ज्ञानेश्वर ने सत्संग, ओवी या अभंग और कीर्तन सभी के माध्यम से सभी को एक सूत्र में बांधा। सन्त कवियों ने बाह्याडंबर और पाखंड का निषेध कर प्रेम प्रति का भाव जगाया। महाराष्ट्र की संत परंपरा का आज भी महत्व है वह आज भी प्रासंगिक है।
प्रस्तावना डॉ शाकिर शेख पुणे राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना महाराष्ट्र प्रदेश महासचिव ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि संतों ने काव्य में प्रेम भक्ति का संदेश दिया। अनेक मुस्लिम संतों ने समाज सेवा के साथ परस्पर एकता के लिए कार्य किया। हिंदू मुस्लिम संत मिलकर परंपराओं की भाव भूमि का निर्माण कर रहे थे। महाराष्ट्र में कई प्रसिद्ध मुस्लिम संत कवि हुए हैं, जिनमें से शेख मुहम्मद और अन्य कवियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। एकनाथ की धर्म भावना का ज्ञान से संबंध रहा है। संतों पर इनका प्रभाव रहा। शेख मोहम्मद ने कबीर के समान सभी सम्प्रदायों के मध्य एकता का संदेश दिया। अनेक सन्तों ने मिलकर वारकरी संप्रदाय का प्रसार किया। मुनींद्र स्वामी दत्त की भक्ति का व्यापक प्रभाव रहा है। इन सभी ने मिलकर जाति भेद मिटाने का प्रयास किया। संतों पर कई फिल्में और नाटक निर्मित हुए। महाराष्ट्र संत एवं वीरों की भूमि है। मराठी साहित्य संपदा समृद्ध है।
विशिष्ट वक्ता डॉ सुषमा कोंडे पुणे सचिव राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने संत तुकाराम का परिचय देते हुए कहा कि वे समाज सुधारक थे। उनका भक्ति साहित्य अमिट धरोहर है। अभंग का अर्थ है जो अखंड चलता है। उनके द्वारा रचे गए अभंग में आत्मा बसती है। आज भी भक्त आषाढ़ में पंढरपुर यात्रा में आते है तो उनके पद गाते हैं। उन्होंने मराठी का एक अभंग भी सुनाया।
विशिष्ट अतिथि श्री पदमचंद गांधी राष्ट्रीय संयोजक जयपुर ने बताया कि संत वह है जो शांत रहे। शांत प्रवृत्ति का संत वही है जो आपदा होने के बाद भी अपना चित्त शांत रखता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर का साक्षात्कार ही मोक्ष है।
विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय मुख्य संयोजक श्रीमती सुवर्णा जाधव पुणे ने महाराष्ट्र के संतों की चर्चा करते हुए कहा कि उनके आचार विचार को प्रत्यक्ष आचरण करना चाहिए। सन्तों का सन्देश है कि अंधविश्वास और दुराचार छोड़कर अच्छा ही सदाचार को अपनाना चाहिये। उन्होने कहा कि जनाबाई, मुक्ताई, बहिणाबाई, रामदास जी, एकनाथ, चक्रधर स्वामी आदि ने मराठी के भक्ति काव्य और अभंग परम्परा को समृद्ध किया।
विशिष्ट अतिथि डॉक्टर करुणा पांडे लखनऊ ने कहा कि सन्तों ने गृहस्थ जीवन में संसार सुख से विरक्त होकर भी इस बात का विचार किया कि समाज के लिए कुछ करना होगा। अभंग का अर्थ है जो भंग ना हो, निरंतर गतिशील रहे। विठ्ठल भक्ति के हजारों अभंग सरल आम भाषा में थे जो आज भी लोगों से सुनने को मिलते हैं। संत ज्ञानेश्वर और एकनाथ जी ने कहा कि सब ईश्वर की संतान हैं। उन्होंने आत्म साक्षात्कार किया था। भक्ति आंदोलन द्वारा ही सुख शांति एवं आत्मज्ञान की प्राप्ति सम्भव है।
अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा उज्जैन ने कहा महाराष्ट्र के सन्तों के काव्य के बाद ही मूल रूप से भक्तिकाल प्रारम्भ हुआ। संत परंपरा अद्भुत रही है। सन्त कवियों द्वारा अंधविश्वास के स्थान पर तत्व ज्ञान और समाज सेवा को महत्व मिला है, जो भक्तों को ऊर्जा प्रदान करता है।
डॉ नेत्रा रावणकर ने भी विचार व्यक्त किए। डॉ अरुणा सराफ राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना इंदौर ने सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का प्रारंभ किया। डॉ प्रभु चौधरी ने अतिथियों का परिचय करवाया। स्वागत भाषण में डॉ बालासाहेब तोरस्कर प्रदेश अध्यक्ष महाराष्ट्र ने महाराष्ट्र के संतों का नाम उल्लेख कर उनके द्वारा किये हुए समाज सुधार कार्य एवं जातीय एकता की चर्चा की। समाज में एकता स्थापित करने के साथ हरिनाम से लोगों को जोड़ा। संगोष्ठी में डॉ सुशीला पाल मुम्बई डॉ मनीषा सिंह राजपूत पुणे डॉ अरूणा शुक्ला नांदेड़ डॉ सुधीर शर्मा पुणे आदि उपस्थित रहे।।
संचालन डॉ मुमताज पठान ने किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन राष्ट्रीय संगठन महामंत्री डॉ प्रभु चौधरी उज्जैन ने किया।
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