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मालवा - निमाड़ के विकास के साथ देश के तीर्थस्थलों को मिला है अहिल्याबाई होलकर की दूरदर्शिता का लाभ - प्रो शर्मा

अहिल्याबाई होलकर ने छत्रपति शिवाजी और संभाजी के श्रेष्ठ विचारों को  आजीवन निभाया -  डॉ गंधे 

अहिल्यादेवी होलकर की 300वीं जयंती पर लोकमाता अहिल्यादेवी : व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं पुस्तक कर्मयोगिनी का विमोचन सम्पन्न 

प्रो शर्मा, डॉ गंधे एवं श्री वाजपेयी चवाकुल नरसिंह मूर्ति राष्ट्रीय हिंदी एवं नागरी सम्मान से अलंकृत

उज्जैन। देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन द्वारा हिंदी प्रेमी मंडल, हैदराबाद के सहयोग से आयोजित लोक माता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर 18 मई रविवार को डॉ प्रभु चौधरी द्वारा संपादित पुस्तक कर्मयोगिनी का विमोचन एवं लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन उज्जैन प्रेस क्लब में किया गया। पुस्तक विमोचन एवं संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि डॉ. गोविन्द गन्धे, निदेशक कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा थे तथा अध्यक्षता श्री ब्रजकिशोर शर्मा शिक्षाविद्, राष्ट्रीय संरक्षक, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने की। पुस्तक की समीक्षा डॉ. हरीशकुमारसिंह साहित्यकार एवं सचिव, म.प्र. लेखक संघ ने की। हैदराबाद की प्रतिष्ठित संस्था हिंदी प्रेमी मंडली, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा – आंध्रप्रदेश एवं तेलंगाना, हैदराबाद द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में वरिष्ठ समालोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ गोविंद गंधे एवं श्री हरेराम वाजपेयी,  इंदौर को चवाकुल नरसिंह मूर्ति जी राष्ट्रीय हिंदी एवं नागरी सम्मान से अलंकृत किया गया। संस्था के अध्यक्ष श्री चवाकुल रामकृष्ण राव, हैदराबाद ने उन्हें सम्मान के रूप में अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र एवं सम्मान राशि अर्पित की। संस्था द्वारा श्रीमती सरोज दवे भोपाल, डॉ मिंटू शर्मा, मुजफ्फरपुर बिहार, श्रीमती संगीता गुप्ता, डॉ अरुणा सराफ, इंदौर एवं डॉ प्रभु चौधरी महिदपुर को हिंदी भाषा एवं नागरी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए सम्मानित किया गया। 

मुख्य वक्ता प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने  व्याख्यान में कहा कि अहिल्याबाई होलकर अपने अनुपम कार्यों से शक्ति स्वरूपा देवी के अवतार के रूप में जानी जाती हैं। वे सांस्कृतिक - सामाजिक पुनर्जागरण की दीपशिखा हैं, जिनका आलोक सदियों तक हमें मिलता रहेगा। उन्होंने प्रशासनिक सुधारों, वित्तीय प्रबंधन, कूटनीति और सैन्य नेतृत्व क्षमता के माध्यम से अविस्मरणीय योगदान दिया। मालवा और निमाड़ क्षेत्र के साथ ही देश के अनेक भागों में उनकी कीर्ति विभिन्न तीर्थों में देवालयों, घाटों, जल स्रोतों और धर्मशालाओं के निर्माण के माध्यम से आज भी बनी हुई है। उन्होंने जहां एक ओर बाहरी आक्रांताओं से मालवा की रक्षा की वहीं समाज के सभी वर्गों को एकता के सूत्र में बांधा। सदियों पहले उन्होंने स्त्री सशक्तीकरण के साथ औद्योगिक एवं कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए। उनकी दूरदर्शिता का लाभ मालवा एवं निमाड़ क्षेत्र के विकास के साथ देश के अनेक तीर्थस्थलों को मिला है।

संस्कृत विद्वान डॉ गोविंद गंधे ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत भूमि में अनेक शूरवीर हुए हैं। उन शूरवीर शासकों के बीच अहिल्याबाई को पुण्यश्लोका लोकमाता का स्थान मिला है। उन्होंने राज्य के सुचारु संचालन के साथ समाज कल्याण की भावना को चरितार्थ किया। उनके विचार और कार्यों से आज भी हम सबका परिवेश तरंगायित है। छत्रपति शिवाजी और संभाजी के श्रेष्ठ विचारों को उन्होंने आजीवन निभाया। धर्म अधिष्ठित राज्य का आदर्श उन्होंने रखा।

अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर वीर प्रसूता भारत की महान सुपुत्री थीं। उन्होंने अपने कार्यों से इतिहास को रचा। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उन्होंने पेड़ों को लगाने की राज्य आज्ञा जारी की थी। उनका राज्य आत्म केंद्रित नहीं था। 

संगोष्ठी सत्र में प्रमुख वक्ता श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि अहिल्याबाई का चरित्र निरंतर प्रवाहमान है। उनका चरित्र सबको पावन करने वाला है। उनका त्रिशताब्दी वर्ष देश को नई प्रेरणा दे रहा है। संस्कारशीलता के लिए हमारे समाज को अहिल्याबाई होलकर की आवश्यकता है। उनका व्यक्तित्व अवतारी था।

पुस्तक की समीक्षा करते हुए डॉ हरीशकुमार सिंह ने कहा कि कर्मयोगिनी लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर पुस्तक में देश के अनेक विद्वानों के आलेख समाहित हैं। यह पुस्तक अहिल्याबाई होलकर के जीवन और बहुआयामी योगदान को प्रस्तुत करने में सफल रही है।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय सत्र के मुख्य अतिथि श्री चवाकुल रामकृष्ण राव, अध्यक्ष, हिन्दी प्रेमी मंडली हैदराबाद थे। अध्यक्षता डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, शिक्षक संचेतना उज्जैन ने की। मुख्य वक्ता श्री हरेराम वाजपेयी, अध्यक्ष, हिन्दी परिवार इन्दौर, विशिष्ट अतिथि डॉ. रंजना फतेहपुरकर लेखिका एवं अध्यक्ष, रंजन कलश, इन्दौर, श्री शालू सुधीर अवस्थी, लेखिका भोपाल, डॉ. मिन्टू शर्मा, साहित्यकार, मुजफ्फरपुर बिहार ने संगोष्ठी में महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए।

कार्यक्रम में अतिथियों को स्मृति चिन्ह संयोजक एवं राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. प्रभु चौधरी, समाजसेवी श्री मानसिंह चौधरी एवं संस्था पदाधिकारियों ने अर्पित किए। धार के कलाकार श्री अमर सिंह गुनेर ने बांसुरी पर पहाड़ी धुन और गुरु वंदना की प्रस्तुति की। प्रारंभ में स्वागत भाषण सरोज दवे भोपाल ने दिया। सरस्वती वंदना रमेश चंद्र चांगेसिया, बड़नगर ने की। उद्घाटन सत्र का संचालन गरिमा प्रपन्न प्रदेश महासचिव ने किया। समापन सत्र का संचालन डॉ अरुण सराफ प्रदेश उपाध्यक्ष ने किया तथा आभार प्रदर्शन डॉ प्रभु चौधरी एवं श्रीमती सरोज दवे, भोपाल ने किया।

आयोजन में डॉ. अरुणा सराफ, राष्ट्रीय सचिव, सरोज दवे उपाध्यक्ष एवं गरिमा प्रपन्ना महासचिव, वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश चंद्र चांगेसिया बड़नगर, श्री मुकेश इंदौरी, श्री रमेश चंद्र शर्मा इंदौर, डॉ कृष्णा जोशी, सुश्री मनीषा खेडेकर इंदौर, श्री मानसिंह चौधरी, नरवर, श्री विजय जैन उज्जैन श्री चंद्रसिंह परमार, शुजालपुर, ज्योति जाधव, उज्जैन, श्री गिरीश गोवर्धन, अमरसिंह गुनेर, धार, श्री अरुण प्रजापति, श्री दिग्विजय द्विवेदी आदि सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, युवा, पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने भाग लिया। यह जानकारी राष्ट्रीय प्रवक्ता सुंदरलाल जोशी सूरज ने दी।


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