"शहरी विकास के बीच पक्षियों के लिए सुरक्षित आश्रय बनाना हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी" – प्रो. अर्पण भारद्वाज, कुलगुरू
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान के तत्वावधान में ऑपरेशन सिंदूर के मध्य 'विश्व प्रवासी पक्षी दिवस' के अवसर पर एक सारगर्भित परिसंवाद आयोजित किया गया। इस वर्ष की थीम "पक्षी-अनुकूल शहरों और समुदायों का निर्माण" रही, जिसके अंतर्गत शहरीकरण, मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण पक्षियों पर पड़ रहे प्रभावों को समझने और उन्हें संरक्षण प्रदान करने की दिशा में सामूहिक जागरूकता को बढ़ावा दिया गया।
प्रोफेसर अर्पण भारद्वाज, कुलगुरु, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए वन्य प्राणियों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर पक्षकारों के सम्मेलन (12–17 फरवरी 2024, समरकंद, उज्बेकिस्तान) का उल्लेख किया और बताया कि 1970 के बाद से प्रवासी पक्षियों की आबादी में लगभग 29% की गिरावट आई है, जो 2.9 बिलियन पक्षियों की क्षति के बराबर है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रवासी पक्षी दिवस न केवल इन अद्भुत प्रजातियों का उत्सव है, बल्कि यह दिन हमें उनके समक्ष आ रही चुनौतियों को समझने और उनके संरक्षण के लिए उपाय करने का अवसर भी देता है।
संयुक्त राष्ट्र एसडीजी और प्रवासी पक्षियों के संरक्षण की परस्परता पर विशेष चर्चा
कार्यक्रम के प्रारंभ में पं. जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान के निदेशक प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता ने बताया कि प्रवासी पक्षियों के संरक्षण में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। विशेष रूप से, SDG 13 (जलवायु परिवर्तन), SDG 15 (भूमि पर जीवन), SDG 2 (भूख मुक्त समाज), SDG 3 (स्वास्थ्य और कल्याण), SDG 14 (जल के नीचे जीवन), और SDG 12 (जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन) सीधे पक्षियों के आवास, भोजन और जीवन चक्र से जुड़े हुए हैं।
उन्होंने बताया कि प्रवासी पक्षी जैसे साइबेरियन क्रेन, फ्लेमिंगो, रफ, गैडवॉल, कॉमन टील, पेलिकन, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, पिनटेल डक, ग्रेट स्पॉटेड ईगल, और रोसेट टर्न आदि, वर्षभर लंबी दूरी की यात्राएँ करते हैं। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने प्रवासी पक्षियों की विविधता, प्रवास की अद्भुत यात्राएं और उनके जीवन चक्र से जुड़े रोचक तथ्य प्रस्तुत किए। जेआरएफ शोधार्थी अजय जायसवाल सहित एमबीए और प्राणीविज्ञान की विद्यार्थियों – नुपुर ललावत, नयनदीप कौर, सलोनी राय, आरुषि भटनागर, सिद्धार्थ यादव, प्रियांशी गोस्वामी, ध्रुव राठौर और स्टाफ सदस्य श्री गोविंद तोमर व सत्यनारायण मालवीय ने कार्यक्रम में भाग लिया।
विद्यार्थियों ने बताया कि हुमिंगबर्ड सबसे छोटा प्रवासी पक्षी है, जो बिना रुके 600 मील तक उड़ सकता है। आर्कटिक टर्न हर साल 90,000 किलोमीटर की ध्रुव से ध्रुव की यात्रा करता है, जिसे पशु जगत की सबसे लंबी वार्षिक प्रवास यात्रा माना जाता है। वहीं अल्पाइन स्विफ्ट 200 दिनों तक बिना ज़मीन पर उतरे हवा में उड़ता रह सकता है। बार-हेडेड गूज 5.5 मील (लगभग 8.8 किमी) की ऊँचाई पर उड़ान भरता है, जो प्रवासी पक्षियों में सबसे ऊँची उड़ान है।
कला और प्रवास का संबंध बताते हुए नुपुर ललावत ने कहा कि 2025 के विश्व प्रवासी पक्षी दिवस की आधिकारिक कलाकार एनामारिया सावरिनो ने प्रवासी पक्षियों की लंबी दूरी की उड़ानों को चित्रित कर जागरूकता में योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि कुछ पक्षी 16,000 मील तक की यात्रा करते हैं और 30 मील प्रति घंटे की गति से उड़ सकते हैं।
डॉ. मेहता ने यह भी बताया कि प्रवासी पक्षियों के संरक्षण हेतु समुदायों द्वारा किए गए प्रयासों में देशी पौधों का रोपण, स्वच्छ जल का प्रबंध और हानिकारक रसायनों से बचाव जैसी पहलें शामिल होनी चाहिए। स्मिथसोनियन प्रवासी पक्षी केंद्र द्वारा 1993 में शुरू किया गया यह दिवस अब ‘एनवायरनमेंट फॉर द अमेरिकाज’ के द्वारा वैश्विक स्तर पर आयोजित किया जाता है।
अंत में यह कहा गया कि डब्ल्यूएमबीडी 2025 अभियान प्रत्येक शहरी और ग्रामीण समुदाय को यह अवसर देता है कि वे प्रवासी पक्षियों के लिए सुरक्षित, सहयोगी और समावेशी वातावरण तैयार कर सकें।
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