प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास
जब जैवविविधता पर समस्या आती है, तो मानवता पर भी समस्या आती है
उज्जैन। भूमि आधारित पर्यावरण का तीन-चौथाई हिस्सा और समुद्री पर्यावरण का लगभग 66 फीसदी हिस्सा मानवीय गतिविधियों के कारण काफी हद तक बदल गया है। उक्त शुभकामना संदेश विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज ने पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान के आंगन में आयोजित विशेष परिसंवाद आयोजन में व्यक्त किए।
कुलसचिव डॉ. अनिल शर्मा ने संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 10 लाख पशु और पौधों की प्रजातियां अब विलुप्त होने की कगार पर हैं। ऐसी स्थिति में पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित इस प्रकार के नवाचार आयोजन में अपने पूर्व प्रतिभाशाली छात्र अरुण पटेल (आईडीबीआई बैंक) द्वारा एलोवेरा पौधा विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. अनिल शर्मा को, प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता, निदेशक, पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान की उपस्थिति में, जैव पारिस्थितिकी प्रतीक के रूप में सौंपा गया।
इसी श्रृंखला में कृषि अध्ययन शाला में भी परिसंवाद आयोजन किया गया, जिसमें श्री अरुण पटेल ने विद्यार्थियों से कहा कि जब जैवविविधता पर समस्या आती है, तो मानवता पर भी समस्या आती है।
प्रो. डॉ. कामरान सुल्तान, संकाय अध्यक्ष, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने कहा कि जैव विविधता की रक्षा करने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (आईडीबी) 2025 की थीम "प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास" है।
प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता, अध्यक्ष, प्रबंध अध्ययन मंडल ने बताया कि यह थीम इस बात पर प्रकाश डालती है कि प्रकृति के लिए यह अभियान सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) से कैसे जुड़ता है।
आईडीबी 2025 : सतत विकास और जैवविविधता की दिशा में एकजुट प्रयास
त्रिस्तरीय आयोजन के सूत्रधार प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता, निदेशक, पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान ने अपने विचार रखते हुए कहा कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कीट जैव विविधता में भारी गिरावट देखने में आ रही है।
आईडीबी 2025 का उद्देश्य दुनिया का ध्यान 2030 एजेंडा और इसके सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) तथा कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढांचे (केएमजीबीएफ) के लक्ष्यों और उद्देश्यों के बीच संबंधों पर केंद्रित करना है। सार्वभौमिक एजेंडा को एक साथ आगे बढ़ना चाहिए।
विद्यार्थियों ने अपने विचार रखते हुए कहा कि साल 1992 में रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में जैव विविधता पर कन्वेंशन (सीबीडी) को अपनाने के बाद, 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस दिवस की स्थापना की गई थी। शुरुआत में इसे 29 दिसंबर को मनाया जाता था, लेकिन बाद में सीबीडी को अपनाने की तिथि के उपलक्ष्य में 2000 में इसे 22 मई को मनाया जाने लगा।
ज्यादातर वर्षा वनों में खतरे में पड़ी जैव विविधता को लेकर शोधकर्ताओं ने चेताया है कि जैव विविधता के महत्व को समझना और समस्याओं को पहचानना समय की मांग है। इसलिए आज की दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस का अत्यधिक महत्व है।
यह त्रिस्तरीय प्रसंग लोगों को शिक्षित करने और जैव विविधता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ विविध पारिस्थितिकी प्रणालियों, प्रजातियों और आनुवंशिक संसाधनों के महत्व को उजागर करने का अवसर भी प्रदान करता है।
कार्य परिषद सदस्यगण प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता, अध्यक्ष, प्रबंध अध्ययन मंडल एवं प्रो. डॉ. कामरान सुल्तान, संकाय अध्यक्ष प्रबंध ने भी अपने विचार रखे। इस सामाजिक सरोकारों से जुड़े प्रसंग आयोजन में, अपने संदेश में प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज, कुलगुरु विक्रम विश्वविद्यालय ने जेएनआईबीएम प्रबंध संस्थान के इस अनूठे पर्यावरणीय आयोजन अवसर पर हर्ष व्यक्त किया।
प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता एवं प्रो. डॉ. कामरान सुल्तान ने बताया कि प्रो. भारद्वाज, कुलगुरु विक्रम विवि के मार्गदर्शन में प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता ने अपने पूर्व प्रतिभाशाली छात्र अरुण पटेल (आईडीबीआई बैंक) द्वारा एलोवेरा पौधा लगाने से सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को समर्पित करने पर डॉ. धर्मेंद्र मेहता को बधाई दी।
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