Skip to main content

विश्व टूना दिवस पर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में विशेष परिसंवाद आयोजित

टूना मछली: तेज तैराक, पोषण का खजाना और सतत विकास का प्रतीक

उज्जैन। पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान - कृषि एवं सांख्यिकी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में विश्व टूना दिवस के उपलक्ष्य में एक विशेष परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य टूना मछली के संरक्षण और इसके सतत उपयोग के प्रति लोगों को जागरूक करना था। टूना एक समुद्री मछली है जो अपने स्वाद, पोषण और आर्थिक महत्व के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।

टूना मछली प्रोटीन का एक समृद्ध स्रोत है और इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन B12 और कई आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह विशेष रूप से जापान, अमेरिका और यूरोपीय देशों में अत्यंत लोकप्रिय है। वर्तमान में उपभोक्ताओं का रुझान स्वच्छ-लेबल और पर्यावरण-अनुकूल समुद्री खाद्य उत्पादों की ओर बढ़ रहा है। इसी संदर्भ में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज ने आयोजन पर अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित करते हुए परिसंवाद के विषय “टूना: कृषि-व्यापार संभावनाओं की तेज तैराक – आंकड़ों की नजर से” को अत्यंत प्रासंगिक बताया।

"समुद्रों की रक्षा करें, तभी सतत विकास संभव है" – प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता

इस अवसर पर कार्यक्रम के सूत्रधार एवं संस्थान निदेशक प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता ने अपने विचार साझा करते हुए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने विशेष रूप से लक्ष्य क्रमांक 14 - "पानी के नीचे जीवन" का उल्लेख करते हुए बताया कि मछलियाँ और महासागर न केवल जैव विविधता के महत्वपूर्ण अंग हैं, बल्कि खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और आजीविका के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं। उन्होंने बताया कि टूना मछली का व्यापार कई देशों की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है।

परिसंवाद में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सांख्यिकिविद, गूगल स्कॉलर और प्रतिष्ठित विद्वान प्रो. डॉ. एच.पी. सिंह ने बताया कि टूना मछली के वैश्विक व्यापार पर कई देशों की निर्भरता इसे केवल खाद्य पदार्थ नहीं बल्कि आर्थिक संसाधन बनाती है।

उन्होंने इस दिशा में दिसंबर 2023 की एक प्रमुख उपलब्धि का भी उल्लेख किया, जब लोकप्रिय समुद्री खाद्य ब्रांड टोनिनो ने अमेरिका और अन्य विदेशी बाजारों में डिब्बाबंद येलोफिन टूना की छह नई किस्में वॉलमार्ट स्टोर्स पर लॉन्च कीं, जिनमें पानी में मीठे मकई के साथ प्रीमियम टूना और वनस्पति तेल में गाजर-मटर के साथ प्रीमियम टूना शामिल हैं।

इस अवसर पर कृषि एवं सांख्यिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष एवं संकाय अध्यक्ष प्रो. डॉ. राजेश टेलर ने प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग की आवश्यकता को दोहराते हुए कहा कि टूना मछली दिवस हमें समुद्री जीवन और पर्यावरण की रक्षा के प्रति हमारी जिम्मेदारी का स्मरण कराता है।

उन्होंने यह भी बताया कि टूना मछली के अत्यधिक शिकार (ओवरफिशिंग) के कारण इसकी संख्या में गिरावट आई है, जिस कारण संयुक्त राष्ट्र ने 2016 में 2 मई को विश्व टूना दिवस के रूप में घोषित किया।

कार्यक्रम में डॉ. अनिरुद्ध यादव, डॉ. आशुतोष सिंह राजपूत, डॉ. प्रभु दयाल, डॉ. अविनाश शर्मा, डॉ. इरम नाज, डॉ. कविता यदुवंशी सहित अन्य शिक्षकगण और छात्रगण उपस्थित रहे।

परिसंवाद में यह भी उल्लेख किया गया कि फॉर्च्यून बिजनेस इनसाइट्स की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में टूना बाजार का मूल्य 43.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 2032 तक 54.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इस उद्योग में बोल्टन ग्रुप, सेंचुरी पैसिफिक फूड्स इंक, थाई यूनियन ग्रुप इंक और एफसीएफ कंपनी लिमिटेड जैसी प्रमुख कंपनियाँ अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

यह आयोजन समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत कृषि-व्यापार की संभावनाओं पर केंद्रित एक जागरूकता अभियान के रूप में सराहनीय पहल रहा।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...