Skip to main content

पदाधिकारियों का दायित्व एवं कर्त्तव्य के संदर्भ में राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी आयोजित

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की नवीन राष्ट्रीय कार्यकारिणी पदाधिकारियों राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी के प्रथम परिचयात्मक बैठक में संगोष्ठी पदाधिकारियों का दायित्व एवं कर्त्तव्य के संदर्भ में दि. 30 जून 24 रविवार सायं 5 बजे आयोजित होगी।

यह जानकारी राष्ट्रीय प्रवक्ता सुंदरलाल जोशी ने देते हुए बताया कि संगोष्ठी मुख्य अतिथि श्री सुरेशचन्द्र शुक्ल ओस्लो(नार्वे), विशिष्ट अतिथि श्री ब्रजकिशोर शर्मा राष्ट्रीय संरक्षक उज्जैन, श्रीमती सुवर्णा जाधव राष्ट्रीय मुख्य संयोजक एवं विशिष्ट उद्बोधन नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा कुलानुशासक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन अध्यक्षता डॉ.  अरूणा राजेन्द्र शुक्ल नांदेड राष्ट्रीय संयोजक, मुख्य वक्ता डॉ. हरिसिंह पाल, राष्ट्रीय मार्गदर्शक दिल्ली, विशिष्ट वक्ता डॉ. अनसूया अग्रवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला इकाई महासमुंद डॉ. दीक्षा  जोशी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अहमदाबाद, डॉ. प्रभु चौधरी राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष उज्जैन, डॉ. मुक्ति शर्मा राष्ट्रीय सचिव कश्मीर, डॉ. शहेनाज शेख राष्ट्रीय महासचिव पुणे, श्री अविनाश शर्मा जयपुर, प्रदेशाध्यक्ष राजस्थान, श्रीमती श्वेता मिश्र पुणे राष्ट्रीय सचिव रहेगी। संगोष्ठी आयोजक डॉ. अरूणा शराफ प्रदेश महासचिव म.प्र. इन्दौर, सह आयोजक सीमा पालीवाल इन्दौर प्रदेश सचिव संयोजक रजनीप्रभा पटना राष्ट्रीय प्रवक्ता, सहसंयोजक श्रीमती संध्यासिंह राष्ट्रीय सहसचिव पुणे होगी।

संगोष्ठी की प्रस्तावना डॉ. मुक्ता कौशिक राष्ट्रीय संयोजक, संचालन डॉ. रश्मि चौबे राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. शिवा लोहारिया जयपुर राष्ट्रीय संयोजक करेगी। संगोष्ठी में नीतू श्रीवास्तव दुर्ग, डॉ. अनीता तिवारी भोपाल, स्मिता शर्मा नोएडा, डॉ. अनीता गौतम आगरा, संगीता केसवानी इन्दौर, डॉ. सुनीता मण्डल कोलकाता, श्री पदमचन्द गांधी, डॉ. दीपिका सुतोदिया, डॉ. जयासिंह रायपुर आदि भी संबोधित करेंगे।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...