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राष्ट्रीय कार्यशाला में हुआ विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह आयोजन में भारतीयता पर मंथन

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की दीक्षांत समारोह विषयक प्रस्तुति को सराहा गया कार्यशाला में

उज्जैन । अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, नई दिल्ली, भारतीय विश्वविद्यालय महासंघ, नई दिल्ली तथा शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में भारत में विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह आयोजन में भारतीयता, भारतीय परंपरा और संस्कृति की झलक को प्रोत्साहित करने हेतु राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। इस कार्यशाला में देश भर के 300 से अधिक केंद्रीय तथा राज्य विश्वविद्यालय तथा उच्चतर शैक्षणिक संस्थाओं ने सहभागिता कर दीक्षांत समारोहों में भारतीय परंपराओं तथा भारतीयता का समावेश कैसे किया जाए, इस बारे में वैचारिक विमर्श तथा अपने - अपने अनुभवों को साझा किया गया। कार्यक्रम के उद्घाटन में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर टी जी रामाराव, अखिल भारतीय विश्वविद्यालय महासंघ की अध्यक्षा पंकज मित्तल तथा शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉक्टर अतुल भाई कोठारी ने भारत के उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों में दीक्षांत समारोह को भारतीयता, भारतीय परंपरा एवं संस्कृति से जोड़ने का आवाहन करते हुए बताया कि यह कार्यशाला अपनी तरह का प्रथम प्रयास है जो कि देश भर के केंद्रीय तथा राज्य विश्वविद्यालयों तथा संस्थाओं में भारतीय परंपराओं, तरीकों तथा रिवाजों को बढ़ावा देगा। 

कार्यशाला के प्रस्तुतीकरण तकनीकी सत्र में देश भर के 14 विश्वविद्यालयों ने दीक्षांत समारोह में जिस ढंग से भारतीय परंपरा को बढ़ाने का प्रयास किया गया है, उस अनुभव को पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से साझा किया।  इस कार्यशाला  में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का प्रतिनिधित्व प्रो  सत्येंद्र किशोर मिश्रा, संकायाध्यक्ष समाज विज्ञान संकाय ने किया। विक्रम विश्वविद्यालय के प्रस्तुतीकरण में प्रति शैक्षणिक सत्र निर्धारित तिथि विक्रम नवसंवत, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को दीक्षांत समारोह आयोजन को काल गणना तथा ऐतिहासिकता से जोड़ने के प्रयास की सराहना की गयी। प्रस्तुतीकरण में विक्रम विश्वविद्यालय की ओर से बताया गया कि दीक्षांत समारोह में  दीक्षार्थियों तथा अतिथियों का परिधान तथा वेशभूषा भारतीय रहता है, अतिथियों की अगवानी पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार और मालवा की लोक कला परम्परा तथा जनजातीय नृत्य के द्वारा की जाती है। समारोह के आरंभ में ही मालव सम्राट विक्रमादित्य की मूर्ति का जलाभिषेक वैदिक मंत्रोच्चार के साथ होता है। अतिथियों, कार्यपरिषद सदस्यों तथा संकायाध्यक्षों की फोटोग्राफी भारतीय परिधान में होती है, गुड़ी भी फहरायी जाती है। दीक्षांत समारोह के अवसर पर माननीय कुलपति द्वारा तैत्तिरीय उपनिषद में आख्यायित उपदेश मंत्र से विद्यार्थियों को उपदेशित किया जाता है। साथ ही पारंपरिक तथा आधुनिक कालानुरूप संदर्भ में विद्यार्थियों को उत्तम आचरण की शपथ भी दिलवाई जाती है। प्रोफेसर मिश्र द्वारा उपस्थित अतिथियों को यह भी बताया गया की विक्रम विश्वविद्यालय आगामी दीक्षांत समारोह में स्वल्पाहार अथवा भोज में भी मालवा के व्यंजनों का समावेश कर सकता है,  दीक्षांत समारोह की तैयारियों का शुभांरभ बसंत पंचमी की तिथि से, तथा साथ ही विक्रमादित्य की मूर्तिशिल्प का जलाभिषेक पुण्य सलिला शिप्रा के जल से भी करने का प्रस्ताव है। विक्रम विश्वविद्यालय की प्रस्तुति तथा उसके दीक्षांत समारोह में भारतीय परंपराओं का समावेश जिस ढंग से किया जाता है उसके विवरण तथा पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉक्टर अतुल भाई कोठारी, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर टी जी रामाराव तथा भारतीय विश्वविद्यालय महासंघ की अध्यक्षा पंकज मित्तल द्वारा सराहा गया तथा अपेक्षा की गई कि देश भर के तमाम केंद्रीय तथा राज्य विश्वविद्यालय तथा संस्थान इससे प्रेरणा लेकर अपने संस्थानों में भी भारतीय परंपराओं को बढ़ावा देने का प्रयत्न करेंगे। 

विक्रम विश्वविद्यालय की इस प्रस्तुति की सराहना होने पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय,  कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, कुलसचिव डॉक्टर अनिल कुमार शर्मा, आई. क्यू.ए.सी. निदेशक प्रोफेसर दीनदयाल बेदिया, फार्मेसी संकायाध्यक्ष प्रोफेसर कमलेश दशोरा,  विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रोफेसर उमा शर्मा, शिक्षक संघ अध्यक्ष डॉ कनिया मेड़ा, डॉ संग्राम भूषण, डॉ सलिल सिंह, डॉ गणपत अहिरवार इत्यादि ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बधाई दी।

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