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रोगानुसार वस्ति का प्रयोग - डॉ. उमाशंकर निगम

  • विभिन्न वस्तियों की कार्यमुक्ता के संबंध में डॉ. अनंतराम शर्मा ने विशेष व्याख्यान दिये ।
  • स्रोतसशारीर एवं प्रेक्टीकल ऑफ मर्मशारीर पर डॉ. पंकज गुप्ता, ओएसडी, आयुष विभाग द्वारा विशिष्ट व्याख्यान दिया गया
  • डिसेक्शन पर डॉ. प्रदीप कुमार चौहान द्वारा विस्तृत व्याख्यान दिया गया

उज्जैन। शासकीय धन्वन्तरि आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय के प्रधानाचार्य एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. जे.पी. चौरसिया ने बताया कि आज दिनांक 13.03.2024 बुधवार को आयोजित सीएमई में पंचकर्म के अंतर्गत वमन (उल्टी कराना), विरेचन (मल त्याग), अनुवासन (स्नेह वस्ति), निरूह वस्ति (आस्थापन वस्ति) एवं नस्य कर्म का अन्तभाव होता है।

सीएमई कार्यक्रम में डॉ. उमाशंकर निगम, पूर्व प्राचार्य शासकीय धन्वन्तरि आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय, उज्जैन ने अपने व्याख्यान में कहा कि इनमें वस्ति चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ कही गई है। वैसे तो वातज रोगी (Neurological disorders) के लिए यह श्रेष्ठ चिकित्सा है परन्तु वस्तिकर्म से पित्तज, कफज, रक्तज आदि रोगों के लिये लाभकारी है। वस्ति चिकित्सा से लकवा, सियाटिका, कम्पवात आदि जैसे असाध्य रोगों की चिकित्सा की जा सकती है। वस्ति से उदर रोग, मधुमेह, तमक श्वास (दमा), त्वचा के रोगों में आशातीत लाभ प्राप्त होता है। 

साथ ही पंचकर्म सीएमई के द्वितीय वक्ता के रूप में विभिन्न वस्तियों की कार्यमुक्ता के संबंध में डॉ. अनंतराम शर्मा ने विशिष्ट व्याख्यान दिये। साथ ही रचना शारीर विषय में सीएमई के अंतर्गत स्रोतसशारीर एवं प्रेक्टीकल ऑफ मर्मशारीर विषय पर डॉ. पंकज गुप्ता, ओएसडी, आयुष विभाग, भोपाल द्वारा विशिष्ट व्याख्यान दिया गया। कार्यक्रम में डॉ. प्रदीप कुमार चौहान द्वारा मानव शरीर का डिसेक्शन कैसे किया जाये इस पर विस्तृत व्याख्यान दिया।

द्वितीय वक्ता डॉ. अनंतराम शर्मा, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली ने विभिन्न वस्तियों की कार्मुकता के संबंध में उद्बोधन दिया। भूतपूर्व प्राचार्य शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, उज्जैन वर्तमान में मुम्बई में निवासरत, चरक कंपनी के सलाहकार, प्रमुख चिकित्सक पंचकर्म, चरक पंचकर्म सेन्टर– मुम्बई। 

उक्त जानकारी सीएमई के सचिव डॉ. नृपेन्द्र मिश्रा एवं डॉ. योगेश वाणे द्वारा जानकारी दी गई।









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