सम्राट विक्रमादित्य काल में संस्कृत साहित्य का विकास पर केंद्रित संगोष्ठी का आयोजन हुआ
उज्जैन में नवस्थापित विक्रमादित्य वैदिक घड़ी पुस्तिका शिक्षकों और विद्यार्थियों को अर्पित की गई
उज्जैन। मध्य प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा विक्रमादित्य शोध पीठ, उज्जैन तथा संस्कृत ज्योतिर्विज्ञान एवं वेद अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में विक्रम महोत्सव 2024 के अंतर्गत परिचर्चा एवं शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी विक्रमादित्य काल में संस्कृत साहित्य का विकास पर केंद्रित थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय कुलगुरु विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कालिदास संस्कृत अकादेमी के निदेशक डॉ गोविंद गंधे, संस्कृत महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ सदानन्द त्रिपाठी, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा एवं रमण सोलंकी ने विचार व्यक्त किए।
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि संस्कृत भाषा का विश्वव्यापी महत्व है। सम्राट विक्रमादित्य के युग में संस्कृत भाषा का व्यापक पैमाने पर प्रसार हुआ। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। साथ ही आधुनिक काल में भी अनेक संदर्भ में संस्कृत भाषा विशिष्ट महत्व रखती है। नासा के वैज्ञानिकों ने संस्कृत भाषा को कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त माना है। वर्तमान में संस्कृत भाषा के अध्येताओं, आचार्यों साहित्यकारों, काव्यकारों तथा छात्रों के लिए अपार संभावनाएं हैं। संस्कृत भाषा एक श्रेष्ठ नागरिक ही नहीं, वरन राष्ट्र के प्रति कर्तव्यनिष्ठ बनाने का सन्देश भी प्रदान करती है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन के निदेशक डॉ गोविंद गंधे ने कहा कि विक्रमादित्य के शासन काल में संस्कृत भाषा केवल साहित्य और ज्ञान की ही नहीं, वरन लोक भाषा के रूप में भी प्रतिष्ठित थी। उस काल में संस्कृत को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। यही कारण है कि नवरत्नों द्वारा सभी ग्रन्थों का प्रणयन संस्कृत भाषा में किया गया। उन्होंने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य ने अपनी शासन व्यवस्था को नवरत्नों के माध्यम से जन सामान्य तक पहुंचाने का उपक्रम किया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता संस्कृत प्राध्यापक डॉ सदानंद त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सम्राट विक्रमादित्य की सभा में केवल नवरत्न ही नहीं वे स्वयं भी एक कोशकार एवं काव्यकार थे। सम्राट विक्रमादित्य ने संसारावर्त नामक कोश ग्रंथ का प्रणयन किया। इसमें उन्होंने कोश ग्रंथ के संस्कृतनिष्ठ शब्दों का पर्यायार्थ किया है तथा गंधमादन महाकाव्य की रचना की। इनकी प्रशंसा परवर्ती सम्राट भोज द्वारा अपने ग्रंथ सरस्वती कंठाभरण के के द्वितीय परिच्छेद में की गई है।
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि संस्कृत साहित्य के विकास की जो परंपरा रही है, वह वैदिक काल से लेकर सम्राट विक्रमादित्य और राजा भोज के काल तक अनवरत रूप से प्राप्त होती है। विक्रमादित्य काल में केवल संस्कृत ही नहीं वरन प्राकृत साहित्य का भी विकास हुआ। उनका युग संस्कृत का स्वर्ण युग था। पुरानी पांडुलिपियों में कालिदास के नाटक शाकुन्तल का मंचन विक्रमादित्य की सभा में होने का उल्लेख मिलता है। उनके समय में संस्कृत भाषा में निबद्ध साहित्य का रूपांतरण अन्य भाषाओं में होने लगा था। मंगोलिया में जो पांडुलिपि प्राप्त होती है उसमें सम्राट विक्रमादित्य के जीवन से संबंधित आख्यान प्राप्त होते हैं। बाद के दौर में कई भाषाओं में विक्रमादित्य सम्बन्धित कथाएं पहुँची।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री राम तिवारी, निदेशक विक्रमादित्य शोधपीठ उज्जैन रहे। कार्यक्रम के संयोजक संस्कृत ज्योतिर्विज्ञान एवं वेद अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो बी. के. आंजना थे।
उत्तर प्रदेश के सम्भल में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के करकमलों से हुए कल्कि धाम के शिलान्यास कार्यक्रम में मुख्य आचार्य के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य डॉ. गोपाल कृष्ण शुक्ल के सम्मिलित होने पर कुलपति प्रो पांडेय, कुलानुशासक प्रो शर्मा एवं उपस्थित जनों द्वारा पुष्पमाला अर्पित कर उनका सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में उज्जैन में नवस्थापित विक्रमादित्य वैदिक घड़ी पुस्तिका शिक्षकों और विद्यार्थियों को अर्पित की गई। विशिष्ट उपस्थिति डॉ. संतोष पण्ड्या, डॉ रमण सोलंकी डॉ. अचला शर्मा, डॉ. सर्वेश्वर शर्मा, रश्मि मिश्रा, डॉक्टर अजय शर्मा, डॉक्टर पांखुरी जोशी, श्री गिरीश गोवर्धन चौबे सहित अनेक छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
कार्यक्रम के पूर्व में कुलगान संस्कृत अध्ययनशाला की छात्राओं साक्षी पोरवाल, वंदना चौहान, अर्चना पांचाल ने किया। वैदिक मंगलाचरण डॉ. गोपाल कृष्ण शुक्ल, पंडित अश्विन त्रिवेदी ने किया।
सरस्वती वंदना पूजा सोलंकी, ऋचा पांडे पूजा शर्मा, रेणुका पांडे ने प्रस्तुत की।
संचालन डॉ. महेंद्र पण्ड्या ने किया। आभार डॉ. विष्णु मीणा ने माना।
विक्रमादित्य काल में ज्योतिष परंपरा का विकास पर हुई शोध संगोष्ठी एवं परिचर्चा
विक्रमोत्सव के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय की संस्कृत, वेद और ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला में विक्रमादित्य काल में ज्योतिष परंपरा का विकास विषय पर परिचर्चा तथा शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसके मुख्य अतिथि कालिदास संस्कृत अकादेमी के निदेशक डॉ गोविंद गंधे, मुख्य वक्ता डॉ यश कुमार शर्मा शासकीय संस्कृत महाविद्यालय, उज्जैन तथा वास्तु तथा ज्योतिष आचार्य राहुल भारद्वाज थे। अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो बी के आंजना ने की।
डॉ गोविंद गंधे ने कहा कि विक्रमादित्य के काल में केवल संस्कृत साहित्य का ही नहीं, वरन ज्योतिष शास्त्र का भी उत्कृष्ट प्रचार प्रसार हुआ। विक्रमादित्य शासन का वह काल ज्योतिष शास्त्र के लिए स्वर्ण काल के रूप में प्रतिष्ठित था।
संगोष्ठी के समन्वयक डॉ. सर्वेश्वर शर्मा तथा रश्मि मिश्रा थे। आभार प्रदर्शन डॉ महेंद्र पंड्या ने किया।
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