Skip to main content

लहराता तिरंगा भारत की मान, शान एवं अभिमान है - डॉ. चौधरी

भारत देश का गणतंत्र, हमेशा तिरंगा राष्ट्र ध्वज लहराते रहे जिससे भारतवर्ष का मान, शान एवं अभिमान अक्षुण्य रहे। यह विचार राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने 285वीं राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी गणतंत्र दिवस के अवसर पर व्यक्त किये। संगोष्ठी की अध्यक्षता सुवर्णा जाधव राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पुणे ने बताया कि हमारी पहचान भारत के मूल निवासी है। संस्था में मातृशक्ति आगे बढ़ रही है। अभी बहुत सी बेड़िया है उनसे भी आजाद होना है, फिर गर्व से कहेंगे भारत महान।

संगोष्ठी का शुभारंभ प्रदेश महासचिव डॉ. अरूणा सराफ ने सरस्वती वंदना से हुआ तत्पश्चात् प्रस्तावना डॉ. रश्मि चौबे राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष महिला इकाई ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि गणतंत्र की यात्रा आत्म सम्मान से आत्मनिर्भरता तक की रही। स्वागत उद्बोधन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने दिया। कवयित्री सुधा मेहता चंडीगढ़ ने गणतंत्र की कहानी कविता पाठ किया।

राष्ट्रीय उपमहासचिव डॉ. शहेनाज शेख पुणे ने कहा कि भारतीय नागरिको को स्वयं के बनाए कानूनों का पालन करना है। डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन चैन्नई ने शहीदो के बलिदान को हम अजर-अमर बनायेंगे कविता सुनायी। डॉ. मधुसिंह ‘महक‘ राजस्थान ने कविता भारत देश हमारा प्यारा, हमें जान से प्यारा सुनाई एवं युवा कवयित्री कविता वशिष्ठ देवास ने ‘श्रम के मंदिर‘ शीर्षक पर ‘श्रम के मंदिर में रहना है, श्रम के गीत सुनाना है‘ की प्रस्तुति दी तथा राष्ट्रीय सचिव डॉ. अनिता गौतम आगरा ने ‘मुझे सपनो का हिंदूस्तान चाहिये‘ सुनाई। राष्ट्रीय संयोजक डॉ. अरूणा शुक्ला नांदेड ने भारत माता का तिरंगा कविता पढ़ी। विशिष्ट अतिथि कवयित्री डॉ. रश्मि चौबे राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला इकाई गाजियाबाद ने कविता सुनाई। विशिष्ट अतिथि डॉ अनसूया अग्रवाल महासमुंद ने यहां न कोई हिंदू है न कोई मुसलमान है....सारे भारतीय भारत देश के और अदद इंसान है, कविता सुनाई।

मंच संचालिका श्वेता मिश्र राष्ट्रीय सचिव पुणे ने सैनिक की संगिनी कविता ‘मैं सैनिक की संगिनी हूं, मैं सैनिक की संगिनी हूं मैं सब जिम्मेदारी संभालती हूं हर परिस्थिति में, मैं मुस्कुराती हूं देश के सीमा ये संभाले मैं घर की संभालती हूं बच्चो को न खले कमी पापा की हर पल मैं ध्यान रखती हूं बेटा और बहु बन सारे कर्त्तव्य मैं निभाती हूं रहते जब सरहद पर ये सब ठीक है सब ठीक होगा की कामना से उम्मीदो की दीप जलाती हूं‘ प्रस्तुत की। 

संगोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ. सुनीता मंडल राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कोलकाता ने अपनी कविता लहर, लहर लहराये तिरंगा भारत का अभिमान कविता सुनाई। म.प्र. महासचिव डॉ. अरूणा सराफ ने भी देशप्रेम पर कविता सुनाई। 

राष्ट्रीय मुख्य संयोजक एवं विशिष्ट वक्ता डॉ. शहाबुद्दीन शेख पुणे ने राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के समस्त पदाधिकारी एवं सदस्यों को भारत के गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित की।

संगोष्ठी का संचालन राष्ट्रीय सचिव श्वेता मिश्र ने किया एवं आभार डॉ. प्रभु चौधरी ने माना।


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...