जयंती समारोह के अंतर्गत हुआ भारतीय काव्यशास्त्र और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
कुलपति प्रो सी जी विजयकुमार मेनन आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रसिद्ध समालोचक एवं मनीषी आचार्यप्रवर डॉ राममूर्ति त्रिपाठी की जयंती के अवसर पर हिंदी अध्ययनशाला, वाग्देवी भवन में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। हिंदी अध्ययनशाला एवं ललित कला अध्ययनशाला द्वारा आयोजित यह संगोष्ठी भारतीय काव्यशास्त्र और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी पर केंद्रित थी। संगोष्ठी की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। मुख्य अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर सी जी विजय कुमार मेनन थे। संगोष्ठी में कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ विभा द्विवेदी, मिर्जापुर, आदि ने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा संस्कृत के विद्वान एवं कुलपति प्रो सी जी विजयकुमार मेनन को शॉल, श्रीफल एवं सम्मान राशि अर्पित कर उन्हें आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से विभूषित किया गया।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि कुलपति प्रो सी जी विजयकुमार मेनन ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी भारत की सुदृढ़ काव्य शास्त्रीय परंपरा के समर्थ संवाहक थे। भारत की समृद्ध गुरु शिष्य परंपरा के प्रतिनिधि विद्वान थे। यह परंपरा निरंतर दुर्बल होती जा रही है। भारतीय चिंतन में शिक्षक के छह प्रकार के धर्म बताए गए हैं जो सभी आचार्य त्रिपाठी के व्यक्तित्व में दिखाई देते हैं। वे प्रेरक, सूचक, वाचक, मार्गदर्शक, शिक्षक और बोधक - सभी रूपों में हमें प्रेरणा देते हैं। वेदांत सहित विभिन्न दर्शनों के आधार पर भारतीय काव्य चिंतन का विकास हुआ है। परमानंद की अनुभूति की चर्चा भारतीय काव्यशास्त्र में मिलती है, जिसे आचार्य त्रिपाठी ने आगे बढ़ाया।
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि साहित्यिक क्षेत्र में आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी द्वारा किया गया लेखन अविस्मरणीय है। उनके गंभीर व्यक्तित्व से हमें सीखने का सुअवसर मिलता है। भारतीय संस्कृति और रामचरितमानस सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था के मॉडल है। इस मॉडल को नए दौर में पुनः अपनाने की आवश्यकता है।
हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने भारतीय दर्शन और काव्यशास्त्र की चिंतन परम्परा को नए परिवेश में व्याख्यायित किया। इसके साथ पश्चिम से आने वाले मानदंडों के सामने तुलना करते हुए भारतीय काव्यशास्त्र के वैशिष्ट्य को प्रतिपादित किया। उन्होंने नई सर्जना के समीक्षण के लिए पारम्परिक मानदंडों का प्रयोग किया। वे जीवन और काव्य के केंद्र में सामाजिकता को रखते हैं। उनकी चिंता थी कि सामाजिकता का औचित्य है, तो उसकी कमी होती जा रही है और कलात्मक उपकरणों के लिए भी जो माँज-मंजाव है, अभ्यास के अभाव में उसकी भी कमी दृष्टिगत हो रही है। यह चिंता आज भी प्रासंगिक बनी हुई है।
प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने आचार्य त्रिपाठी से जुड़े संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वह अपने चिंतन में सदैव मनुष्य की ऊर्ध्वगामी संभावनाओं की चर्चा करते थे।
प्रोफ़ेसर गीता नायक ने कहा कि आचार्य राम मूर्ति त्रिपाठी सादगी के साक्षात प्रतिमूर्ति थे। वे अपने आचरण के माध्यम से नई पीढ़ी को आजीवन सीख देते रहे।
प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने अलंकार सिद्धांत की विस्तृत विवेचना की है। उन्होंने अलंकारों के आलोक में आधुनिक काव्य की सटीक व्याख्या - विवेचना का प्रयास किया जो आज भी प्रासंगिक है।
प्रारम्भ में आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के चित्र पर अतिथियों एवं उपस्थित जनों द्वारा पुष्पांजलि अर्पित की गई। इस महत्वपूर्ण आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो उर्मि शर्मा, प्रो हरिसिंह कुशवाह, कृष्णगोपाल दुबे, झालावाड़, आचार्य त्रिपाठी के ज्येष्ठ पुत्र श्री अमिताभ त्रिपाठी, श्री पद्मनाभ त्रिपाठी, प्रो डी डी बेदिया, श्री संतोष सुपेकर, डॉ प्रभु चौधरी आदि सहित अनेक सुधीजन, साहित्यकार, विभागाध्यक्ष, संकाय सदस्य, शोधकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित थे।
संचालन प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन प्रो प्रेमलता चुटैल ने किया।
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