Skip to main content

विक्रम विश्वविद्यालय अध्ययनशाला स्तर तीन दिवसीय युवा उत्सव का शुभारम्भ 4 अक्टूबर 2023 को हुआ

उज्जैन: विक्रम विश्वविद्यालय का तीन दिवसीय अध्ययनशाला स्तर पर युवा उत्सव दिनांक 4 अक्टूबर 2023 को प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में प्रारंभ हुआ।

दिनांक 4 अक्टूबर 2023 को विक्रम विश्वविद्यालय की प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में तीन  दिवसीय विभागीय युवा उत्सव दिनांक 4 अक्टूबर 2023 को प्रणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में शुभारम्भ हुआ। गौरतलब है, कि इस विभागीय युवा उत्सव में 22 अलग अलग विधाएं होंगी। इस शृंखला में प्रथम व्यंग्य चित्र, एकल गायन सुगम, एकल गायन पाश्चात्य, एकल गायन राष्ट्रीय, समूह गायन भारतीय, शास्त्रीय एकल वादन, एकल नृत्य, पोस्टर मेकिंग, क्ले मॉडलिंग एवं एकल लोक नृत्य की विधाएं संपन्न हुईं। 

युवा उत्सव के आयोजक एवं प्राणिकी एवं जैव प्रोद्यौगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉक्टर सलिल सिंह ने बताया कि आने वाले दो दिनों में युवा उत्सव में रंगोली, कोलाज, वाद-विवाद, वक्तृता एवं प्रश्न मंच सहित कई और विधाएं संपन्न होंगी। इस अवसर पर  विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि किसी भी प्रतियोगिता में भाग लेना ही जीत के समान होता है, प्रतियोगिता के निर्णय से ज्यादा प्रतियोगिता में प्रतिभागिता आवश्यक है, यह व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होगा। 

इस अवसर पर प्राणिकी एवं जैव प्रोद्यौगिकी अध्ययनशाला में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रोफेसर एस के मिश्रा, संकाय अध्यक्ष विद्यार्थी कल्याण संकाय, डॉक्टर स्वाति दुबे, डॉक्टर कमल बुनकर, डॉक्टर वीरेंद्र चावरे, डॉक्टर जगदीश शर्मा, डॉक्टर राज बोरिया, डॉक्टर निश्चल यादव, डॉक्टर अरविंद शुक्ला, डॉक्टर संतोष कुमार ठाकुर, डॉक्टर शिवी भसीन, डॉक्टर गरिमा शर्मा, डॉक्टर पूर्णिमा त्रिपाठी, डॉक्टर शीतल चौहान, डॉक्टर दीपा दिवेदी, डॉक्टर अनुभा गुप्ता आदि उपस्थित थे।  विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने आयोजकों को कार्यक्रम के सफल आयोजन हेतु बधाई और मंगलकामनाएं दीं।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...