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ओजोन परत के क्षय को रोकने के लिए जरूरी है विश्व पटल पर सामूहिक प्रयास - प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन


विश्व ओजोन दिवस 16 सितंबर पर विशेष

धरती को सूर्य की पराबैगनी किरणों से बचाने में ओजोन परत एक अहम भूमिका निभाती है। ओजोन परत पृथ्वी की सतह से लगभग 15 और 35 किमी (9 और 22 मील) के बीच स्थित होती है। यह ओजोन अणुओं (ओ3) की अपेक्षाकृत उच्च सांद्रता युक्त ऊपरी वायुमंडल का क्षेत्र है। वायुमंडल की लगभग 90 प्रतिशत ओजोन समताप मंडल में पायी जाती है। यह सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (यूवी) विकिरण से पृथ्वी की रक्षा करती है। यूनाइटेड नेशन एनवायरमेंट प्रोग्राम (यू एन ई पी) के मुताबिक समय के साथ गुड ओजोन यानी स्ट्रैटोस्फेरिक ओजोन डैमेज हो रही है। यह परत पृथ्वी पर पड़ने वाली सूरज की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से सभी का बचाव करती है। ओजोन परत के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 16 सितंबर को वर्ल्ड ओजोन डे मनाया जाता है।

इस साल विश्व ओजोन दिवस 2023 की थीम 'मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: ओजोन परत को ठीक करना और जलवायु परिवर्तन को कम करना'  है। इसकी शुरुआत से ही ओजोन परत के संरक्षण के लिए मनाया जाने वाले इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस की एक थीम घोषित की जाती है।

ओजोन परत का क्षय ऊपरी वायुमंडल में मौजूद ओजोन परत का पतला होना है, ऐसा मुख्यत: तब होता है जब वायुमंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु ओजोन के संपर्क में आते हैं और ओजोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं। यह देखा गया है कि एक क्लोरीन ओजोन के 100,000 अणुओं को नष्ट कर सकता है। यह जितनी तेजी से बनता है उससे कहीं अधिक तेजी से नष्ट हो जाता है। कुछ यौगिक उच्च पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में आने पर क्लोरीन और ब्रोमीन छोड़ते हैं, जो ओजोन परत के क्षरण में योगदान देता है। ऐसे यौगिकों को ओजोन क्षयकारी पदार्थ (ओडीएस) के रूप में जाना जाता है। ओजोन को नष्ट करने वाले पदार्थ जिनमें क्लोरीन होता है उनमें क्लोरोफ्लोरोकार्बन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं। जबकि, ओजोन-क्षयकारी पदार्थ जिनमें ब्रोमीन होता है, वे हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड और हाइड्रो ब्रोमोफ्लोरोकार्बन हैं। क्लोरोफ्लोरोकार्बन सबसे प्रचुर मात्रा में ओजोन को नष्ट करने वाला पदार्थ है। ऐसा तभी होता है जब क्लोरीन परमाणु किसी अन्य अणु के साथ प्रतिक्रिया करता है, यह ओजोन के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता है। ओजोन रिक्तीकरण समताप मंडल में ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ओडीएस) के मानव-संबंधित उत्सर्जन के कारण होता है। ओडीएस में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी), ब्रोमीन युक्त हैलोन और मिथाइल ब्रोमाइड, एचसीएफसी, कार्बन टेट्राक्लोराइड (सीसीएल4) और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं। ‘ओजोन छिद्र’ के रूप में जानी जाने वाली अंटार्कटिक ओजोन परत की गंभीर कमी वहां मौजूद विशेष वायुमंडलीय और रासायनिक स्थितियों के कारण होती है। सर्दियों में अंटार्कटिक समताप मंडल का कम तापमान ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलों (पीएससी) के गठन की अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करता है। यह ध्रुवीय समतापमंडलीय बादल क्लोरीन और ब्रोमीन की प्रतिक्रियाओं के लिए माध्यम के रूप में कार्य करते हैं, जिसके फलस्वरूप बसंत ऋतु में अंटार्कटिक क्षेत्र में ओजोन छिद्र बनते हैं।

दुनिया भर में ओजोन के क्षय को रोकने के लिए कई उपचार किए जा रहे हैं। जैसे वियना कन्वेंशन जो कि ओजोन परत के संरक्षण के लिए वर्ष 1985 में हुआ एक अंतरराष्ट्रीय समझौता था। इसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने समतापमंडलीय ओजोन परत को होने वाले नुकसान को रोकने के मूलभूत महत्व को मान्यता दी थी। इसके बाद मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल हुआ जो कि ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों को नियंत्रित करने को लेकर 1987 में हुई संधि है। इसमें ओजोन-क्षयकारी पदार्थों, मुख्य रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) के उत्पादन और उपयोग को नियंत्रित करने के लिए 1987 में 197 पार्टियों द्वारा प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके काफी समय बाद वर्ष 2016 में किगाली प्रोटोकाल हुआ जिसे मुख्यत: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में संशोधन करने के उद्देश्य से अपनाया गया था और यह संशोधन 2019 में लागू हुआ। इससे एच एफ सी के उत्पादन और खपत में कमी आएगी और अनुमानित वैश्विक तापन में वृद्धि और संबंधित जलवायु परिवर्तन से बचा जा सकेगा। प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल पर किए जाने वाले वैज्ञानिक आकलन में पाया गया कि दुनिया के लगभग सभी देश ने पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन की परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों का उत्पादन बंद करने पर सहमति जताई है। इसके वर्ष 2066 तक सफल होने की संभावना है। 

ओजोन का क्षय एक अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय है एवं विकसित देशों से विकासशील देशों को ऐसे पदार्थों के उपयोग को कम करना चाहिए जो ओजोन के पतन के कारक है। रेफ्रिजरेटिंग प्रौद्योगिकियों में एक प्रतिस्थापन खोजने के लिए अनुसंधान और विकास किया जाना चाहिए, अर्थात् एक गैर-ओजोन क्षयकारी पदार्थ युक्त रेफ्रिजरेटिंग प्रौद्योगिकियों का विकास किया जाना चाहिए जिसमें न्यूनतम ग्लोबल वार्मिंग क्षमता हो। ओजोन रिक्तीकरण जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चा के माध्यम से जन जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए। एस डी जी 13 अर्थात् जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करने के लिए, इसके साथ ओजोन की सुरक्षा भी जोड़ा जाना चाहिए। पर्यावरण में गुड गैसेस की मात्रा को बढ़ाया जाने हेतु अधिक से अधिक पोधारोपण किया जाना चाहिए। वाहनों के उपयोग में कमी लाने का प्रयास किया जाए एवं उपयोग में लाए जा रहे वाहनों से उत्सर्जित होने वाली गैस की नियमित रूप से जांच करवाई जाए। गत कुछ वर्षों से उज्जैन शहर में भी इस गंभीर समस्या से निपटने हेतु काफी जागरूकता देखी गई है। शहर मे निरंतर पौधा रोपण हुआ है और हानिकारक गैस का अत्याधिक उत्सर्जन करने वाले वहां के उपयोग पर रोक भी लगायी गयी है और विद्यार्थियों एवं एन जी ओ द्वारा इस विषय जागरूकता फैलायी गई है। 

विक्रम विश्वविद्यालय ने भी इस अभियान में  अपनी अहम भूमिका निभाई है। वनमंडलाधिकारी उज्जैन एवं वृक्ष मित्र संस्थान के सहयोग से विश्वविद्यालय परिसर में 8000 से अधिक पौधों का रोपण एवं सुरक्षा हेतु आवश्यक फेंसिग लगाने का कार्य किया गया । विश्वविद्यालय की विभिन्न अध्ययनशालाओं एवं परिसर में सुनियोजित ढंग से वृक्षारोपण एवं पौधों की दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है। विश्वविद्यालय मे सप्ताह के एक दिन वाहन के परिसर मे आगमन पर प्रतिबंध लगाया गया ताकि हानिकारक गैस के उत्सर्जन को कम किया जा सके। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा इस  विषय पर समय-समय पर जागरूकता फैलाने हेतु अभियान चलाये जाते हैं, जिससे जन-मानस तक इस विषय की गंभीरता पहुंच सके। यह एक जटिल समस्या है, जिसके उपाय करने हेतु पूरे विश्व को एक पटल पर आना होगा।

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