Skip to main content

पार्थेनियम से खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है, इसका उपयोग खेती में बेहतरीन तरीके से फसलों की पैदावार बढ़ाने में किया जा सकता है - कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय


उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय के एन एस एस इकाई एवं प्रणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विद्यार्थियों द्वारा गजरघास उन्मूलन सप्ताह (पार्थेनियम अवेयरनेस वीक) मनाया गया।
खरपतवार से उत्पन्न खतरे की गंभीरता और भयावहता को देखते हुए, आईसीएआर निदेशालय ने किसानों और आम जनता को इसके खतरे के बारे में जागरूक करने के लिए 16-22 अगस्त, 2023 को 'पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह' घोषित किया। पार्थेनियम, जो बिगड़ते पर्यावरण, उत्पादकता और जैव विविधता के विघठन का कारक है का नियंत्रण किया जाना अनिवार्य है। इसी जागरूकता को विद्यार्थियों के मध्य फैलाने के लिए विक्रम विश्वविद्यालय की एन एस एस इकाई एवं प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विद्यार्थियों द्वारा गाजरघास उन्मूलन सप्ताह (पार्थेनियम अवेयरनेस वीक) एवं पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया गया।


विद्यार्थियों को इस विषय पर जानकारी देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस जिसे स्थानीय रूप से गाजर घास कहा जाता है, एक विदेशी खरपतवार है जिसने 1950 के दशक की शुरुआत में संयुक्त राज्य अमेरिका से आयातित गेहूं के साथ भारत में प्रवेश किया था। तब से यह चिंताजनक रूप से फैल गया है। यह एक जहरीला, हानिकारक, समस्याग्रस्त, एलर्जीकारी और आक्रामक खरपतवार है जो मनुष्यों और पशुओं के लिए गंभीर खतरा है। यह खरपतवार कृषि उत्पादकता को कम करने के अलावा जैव विविधता के नुकसान के अलावा मनुष्यों और जानवरों में त्वचा की एलर्जी, परागज ज्वर, सांस लेने में समस्या जैसी कई बीमारियों का कारण बनने के लिए कुख्यात है। अपनी बात को बढ़ाते हुए माननीय कुलपति जी बताया कि पार्थेनियम घास यानी गाजर घास जितना जानवरों एवं मनुष्यों के लिए खतरनाक है किन्तु बहुत कम लोगों को पता होगा कि गाजर घास से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाला अच्छी क्वालिटी का कंपोस्ट बनाया जा सकता है, इन कंपोस्ट से खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। इसका उपयोग खेती में बेहतरीन तरीके से फसलों की पैदावार बढ़ाने में किया जा सकता है।


एन एस एस के समन्वयक प्रोफेसर एस के मिश्रा एवं पुरुष और महिला इकाई के कार्यक्रम अधिकारी डॉक्टर अरविंद शुक्ला एवं डॉक्टर शिवी भसीन ने बताया कि गाजर घास को चटक चांदनी, कड़वी घास आदि नामों से भी जाना जाता है। यह कृषि, मनुष्य, पशु, पर्यावरण एवं जैव विविधता के लिए खतरा है और यह अकृषित, कृषि क्षेत्र, रेललाइन और सड़कों के किनारे काफी मात्रा में हर मौसम में पाई जाती है परन्तु इसे नियंत्रित करने के कई तरीके उपलब्ध है जिनमें से एक मुख्य तरीका गाजरगास उखाड़ने का है जिसके लिए एन एस एस के विद्यार्थी सदैव तत्पर रहेंगे। प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के काविभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह ने बताया कि पार्थेनियम नियंत्रण के लिए बायोलॉजिकल कंट्रोल को भी इस्तमाल किया जा सकता है, जिससे इसके फैलने को रोका जा सकता है। इस अवसर पर डाक्टर संग्राम भूषण, डॉक्टर गणपत अहीरवाल, डॉक्टर गरिमा शर्मा, डॉक्टर शीतल चौहान एवं डॉक्टर पूर्णिमा त्रिपाठी सहित प्रणिकी एवं जैव प्रोद्यौगिकी अध्ययनशाला के कर्मचारी गण उपस्थित थे।


इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री प्रज्वल खरे ने विभागों को इस पहल के लिए बधाई दी। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने इसे एक सराहनीय कदम बताते हुए विद्यार्थियों से इस अभियान को आम जन मानस तक पहुंचाने की अपील की।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...