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दर्शन, लोकमंगल और समन्वय का समाहार है तुलसीदास जी के काव्य में – प्रो दीक्षित

विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ गोस्वामी तुलसीदास और मैथिलीशरण गुप्त के काव्य के विविध आयाम पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

कार्यक्रम में किया गया प्रसिद्ध समालोचक प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित का सारस्वत सम्मान

उज्जैन विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी गोस्वामी तुलसीदास और मैथिलीशरण गुप्त के विविध आयामी अवदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि विख्यात साहित्य मनीषी एवं समालोचक प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, लखनऊ थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। कार्यक्रम में कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो. हरिमोहन बुधौलिया, जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री शशिमोहन श्रीवास्तव, प्रोफ़ेसर गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर हिंदी अध्ययनशाला एवं प्रेमचंद सृजन पीठ द्वारा प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित का सारस्वत सम्मान किया गया। सम्मान के रूप में अतिथियों द्वारा उन्हें शॉल, श्रीफल साहित्य एवं प्रतीक चिह्न अर्पित किए गए।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, लखनऊ ने कहा कि तुलसीदास मध्यकाल के सबसे लोकप्रिय कवि हैं। तुलसीदास के काव्य में दर्शन, लोकमंगल भाव और समन्वय का समाहार देखने को मिलता है। मैथिलीशरण गुप्त और तुलसीदास दोनों ने ही राम कथा लिखी है। एक ने राम के संपूर्ण जीवन की घटनाओं को आधार बनाया है तो दूसरे ने राम के चरित्र को आधार बना कर हमारे सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। राम का संपूर्ण जीवन अनुसरणीय है। मैथिलीशरण गुप्त ने साहित्य में उपेक्षिता उर्मिला को अपने काव्य का विषय बना कर साकेत में उर्मिला के त्याग और बलिदान का चित्र हमारे सम्मुख रखा है और एक आदर्श स्त्री, पत्नी, बहू का चरित्र प्रस्तुत किया है। तुलसी और गुप्त जी दोनों का काव्य लोकमंगलकारी है और निश्चित ही हमें आज के दौर में भी रामचरितमानस को आदर्श बनाना चाहिए। आज की पीढ़ी को उससे बहुत कुछ सीखना चाहिए। कार्यक्रम के अध्यक्ष कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने तुलसीदास और मैथिलीशरण गुप्त को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दोनों के साहित्यिक अवदान पर बात की। उन्होंने रामचरितमानस के कुछ प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य जीवन में निराशा से मुक्त करता है। उन्होंने युवाओं को उससे प्रेरणा लेने का आह्वान किया। उन्होंने साहित्य के प्रति रुचि के साथ कल्पनाशीलता, ईको पोयट्री, और क्रियाशीलता बढ़ाने का संदेश दिया। हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि तुलसीदास जी ने संकेत दिया है कि जो संसार से प्रेम करता है वह राम से प्रेम करता है और जो राम से प्रेम करता है वह चराचर जगत से प्रेम करता है। तुलसी की विश्व दृष्टि अत्यंत व्यापक है। दुनिया को पारिवारिक और सामुदायिक जीवन में परस्पर प्रेम, बन्धुत्व और समरसता की दृष्टि आवश्यक है, जो तुलसी के काव्य के केंद्र में है। तुलसी के लिए विश्व का समूचा व्यवहार धर्मपालन पर अवलम्बित है। तुलसीदास के मतानुसार धर्म के समुचित पालन से ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति होती है और सुख-संतोष की अनुभूति होती है।

प्रो. गीता नायक ने अवाचिक संवाद के परिप्रेक्ष्य में तुलसी की भाषा कौशलता से शोधार्थियों को परिचित कराया। रामचरितमानस के प्रसंगों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि तुलसी आस्था और धर्म के कवि है। वे कालिदास एवं वेदव्यास की भांति कालजयी परंपरा के कवि हैं। भाषा का महत्व समझाते हुए उन्होंने कहा कि व्यक्ति को कठोर वचन से दूर रहना चाहिए और मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए। प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि तुलसी ने व्यापक सांस्कृतिक परंपरा के आलोक में राम को प्रस्तुत किया है। तुलसीदास का संपूर्ण काव्य हमारे जीवन में परिवर्तन लाता है। उन्होंने अंतर्बाह्य जीवन को बदलने की दिशा दी है। उनका मानस सदियों तक प्रेरणा देता रहेगा। डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि तुलसीदास त्रेतायुग के वाल्मीकि के अवतार हैं। तुलसीदास के रामचरितमानस में सूक्ष्म निरीक्षण, समन्वय की विराट चेष्टा और लोकमंगलकारी भाव देखने को मिलता है। व्यक्ति के जीवन में मानव मूल्यों का होना आवश्यक है और राम के चरित में आदर्श मानव के सारे गुण हमें देखने को मिलते हैं ।

प्रारम्भ में स्वागत भाषण प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने दिया। स्वागत हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ गीता नायक, डॉ सुशील शर्मा, डॉ अजय शर्मा आदि ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन श्री श्यामलाल चौधरी ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने किया।

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