गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर हुआ तुलसीदास जी के प्रदेय पर विमर्श और राष्ट्रीय नागरी लिपि संगोष्ठी का आयोजन
नागरी लिपि के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए डॉ हरिसिंह पाल का हुआ सारस्वत सम्मान
मुख्य अतिथि डॉ. हरिसिंह पाल ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी का रामचरितमानस भारतीयता का पर्याय है। तुलसी ने भारतीय संस्कृति के क्षरण को थामते हुए पराजित मनः स्थिति से बाहर लाने की कोशिश की। उन्होंने विश्व लिपि के रूप में नागरी लिपि की समर्थता को व्याख्यायित करते हुए कहा कि प्रवासी भारतीय नागरी लिपि में विधिपूर्वक रचना कर आचार्य विनोबा भावे की विश्वलिपि नागरी लिपि की परिकल्पना को साकार कर रहे हैं। नागरी लिपि परिषद ने इस दिशा में भाषा रूसी, चीनी, इंडोनेशियाई, जापानी, सिंहली, फारसी आदि एक दर्जन से अधिक भाषाओं की प्रवेशिकाएं प्रकाशित की हैं जिनके माध्यम से नागरी लिपि जानने वाला कोई भी व्यक्ति इन भाषाओं को समझ और बोल सकता है। परिषद के प्रयासों से पूर्वोत्तर राज्यों की अनेक भाषाओं ने नागरी लिपि को अंगीकार कर लिया है। आज महात्मा गांधी की पोती, एकमात्र भारतीय गवर्नर जनरल दोहित्री और दक्षिण भारत में हिंदी के प्रथम प्रचारक देवदास गांधी की सुपुत्री श्रीमती तारा गांधी भट्टाचार्य नागरी लिपि परिषद की संरक्षक हैं।
विक्रम विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास का काव्य भारतीय संस्कृति का आधार स्तम्भ है। तुलसी की विमल वाणी विश्व कल्याण के साथ परस्पर प्रेम और श्रद्धा का भाव जाग्रत करती है। देश दुनिया के असंख्य लोग तुलसी की वाणी से प्रेरणा प्राप्त करते हैं। उनकी रचनाएं सुप्त और निराशा से ग्रस्त मनुष्य के जीवन में अपार आशा और ऊर्जा का संचार करती है तुलसीदास जी ने विपरीत परिस्थितियों में अपनी राह बनाई। प्रोफेसर शर्मा ने देवनागरी लिपि को विश्व की विभिन्न भाषाओं की संपर्क लिपि के रूप में प्रसारित करने के प्रयासों पर बल दिया।
कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि प्रोफ़ेसर गीता नायक ने कहा कि बिना लिपि के भाषा का महत्व नहीं है। युवा पीढ़ी चाहती है कि देवनागरी लिपि को अंगीकार किया जाए। गोस्वामी तुलसीदास जी ने दूसरों के कल्याण को सर्वोपरि धर्म बताया है।
कार्यक्रम में प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि देवनागरी लिपि पूर्ण वैज्ञानिक लिपि है। इसके माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है। आचार्य विनोबा भावे ने पैदल भ्रमण करते हुए देवनागरी लिपि के महत्व को स्थापित किया।
इस अवसर पर लोक साहित्य और देवनागरी लिपि के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान के लिए नई दिल्ली के विद्वान डॉ हरिसिंह पाल को अंगवस्त्र, पुष्पगुच्छ एवं पुस्तकें अर्पित कर उनका सम्मान किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ आचार्य डा. जगदीश चन्द्र शर्मा के स्वस्तिवाचन से हुआ। प्रारंभ में अतिथियों ने वाग्देवी सरस्वती, गोस्वामी तुलसीदास एवं कविवर डॉ शिवमंगल सिंह सुमन के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। कार्यक्रम में अनेक शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित थे। 

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