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जनजातीय संस्कृति और सौंदर्य के साथ स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष की भूमि रहा है अंडमान - निकोबार

भारत की जनजातीय संस्कृति: विशेष संदर्भ अंडमान एवं निकोबार पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ कविवर डॉ शिवमंगलसिंह सुमन की जयंती पर सुमन स्मरण


उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला तथा गांधी अध्ययन केंद्र द्वारा कविवर डॉ शिवमंगलसिंह सुमन की जयंती पर स्मरण प्रसंग आयोजित किया गया। इस अवसर पर भारत की जनजातीय संस्कृति: संदर्भ अंडमान और निकोबार पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता समालोचक एवं पोर्ट ब्लेयर के राजकीय महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ व्यासमणि त्रिपाठी थे। कार्यक्रम में पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री शशिमोहन श्रीवास्तव, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया, शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा डॉ व्यासमणि त्रिपाठी को शॉल, अंगवस्त्र, साहित्य एवं पुष्पमाल अर्पित करते हुए उनका सारस्वत सम्मान किया गया।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. व्यासमणि त्रिपाठी, पोर्ट ब्लेयर ने शिवमंगलसिंह सुमन का स्मरण करते हुए कहा कि सुमन जी जय और पराजय को समान रूप से लेने वाले रचनाकार थे। अपने उद्बोधन में उन्होंने अंडमान - निकोबार के सौंदर्य से परिचय कराते हुए वहां बसी विभिन्न जनजातियों की संस्कृति, स्थिति और प्रगति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अंडमान - निकोबार स्वतंत्रता सेनानियों की संघर्ष की भूमि भी रहा है। यह त्याग और बलिदान की भूमि है, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन के ताप को सहा है। वहाँ की जनजातियों को मातृभूमि से प्रेम है और वह अपने हक के लिए लड़ना जानती है। वह एक लघु भारत है जहां अनेक प्रकार के पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं। स्वतंत्रता संग्राम के समय से लेकर आज तक संपर्क की भाषा हिंदी ही रही है। अंडमान - निकोबार विविधता में एकता और समरसता का द्वीप है।

हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि सुमन जी को याद करते हुए उदात्त का विराट बिम्ब आकार लेता है। उन्होंने पलायन और दैन्यता के विरुद्ध प्रवृत्ति और प्रतिरोध का स्वर मुखरित किया। भारत की जनजातीय संस्कृति अत्यंत समृद्ध विरासत का संवहन करती है। जनजातीय भाषा और साहित्य अथाह सागर के समान हैं, जिनमें ज्ञान का अक्षय स्रोत है। उनमें पुराज्ञान के साथ जातीय स्मृतियों, आख्यान और जीवन मूल्यों का प्रवाह है। कार्यक्रम के अध्यक्ष पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश और साहित्यकार शशिमोहन श्रीवास्तव ने सुमन जी को श्रद्धांजलि देते हुए उनके कई संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि उनका व्यक्तित्व स्नेहमय था, जिसका लोगों पर स्थायी प्रभाव पड़ा।

पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. हरिमोहन बुधौलिया ने अपने व्यक्तव्य में सुमन जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि सुमन जी अत्यंत सर्दी और भावुक थे उन्होंने अनेक पीढ़ियों के लोगों को प्रभावित किया। उन्होंने अंडमान निकोबार को सौंदर्य एवं पर्यटन का स्थल बताया। शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि सुमन जी का व्यक्तित्व विराट था। उनकी कविताएं अपने दौर का जीवंत इतिहास प्रस्तुत करती हैं। उनके काव्य की सुगंध सर्वत्र व्याप्त है। प्रारंभ में स्वागत भाषण डॉ अजय शर्मा ने दिया। कार्यक्रम में प्रो गीता नायक, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ सुशील शर्मा एवं डॉ अजय शर्मा सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। संचालन श्यामलाल चौधरी ने किया। आभार मोहन तोमर ने व्यक्त किया।

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