विगत कुछ वर्षों से आए दिन यह खबर आ रही है कि जिम के दौरान ही कार्डियक अरेस्ट या हैमरेज से फलां फलां व्यक्ति की मृत्यु हो गई। ऐसी अकाल मृत्यु का बहुत बड़ा कारण व्यायाम या जिम को गलत तरीके से करना है। विदेशी परिचर्या में ढल रहे भारतीय युग में पुरातन भारतीय व्यायाम पद्धति भी चपेट में आ चुकी है । जहां शरीर को सुडौल बनाने के ऐसे उपायों का चलन प्रारंभ हो गया है जिसमे शरीर बाहर से तो सुडौल किंतु भीतर से खोखला होता जा रहा है। ऐसा सिर्फ जिम के अनुचित नियमों की वजहों से हो रहा है। प्रत्येक शरीर की अलग अलग आवश्यकताएं हैं। शरीर एवं शरीर के घटक परिस्थिति एवं मौसम के अनुसार बदलते रहते हैं।ऐसे में शरीर की रक्षा के उपायों में आयुर्वेद में वर्णित व्यायाम पद्धति का पालन करके उक्त अकाल घटनाओं से बचा जा सकता है।
व्यायाम करने के पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए ।
- रात्रि में 10 या 11 बजे के पूर्व सो जाना चाहिए ।
- प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व जागना चाहिए।
- सूर्योदय के बाद एवं दिन में कभी भी सोना नहीं चाहिए।
-रात में खाया हुआ भोजन अगर नहीं पचा हो तो व्यायाम नहीं करना चाहिए।
-भोजन के बाद व्यायाम नहीं करना चाहिए।
- अल्कोहल, सिगरेट, नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। अथवा काम मात्रा में।
- कटु / तीखा/ चरखा / चटपटा रस वाले भोज्य पदार्थों का सेवन प्रतिदिन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए ।
-प्रतिदिन दिनचर्या अनुसार तीनों समय (नाश्ता, लंच एवं रात्रि भोजन) उचित मात्रा एवं समय पर करना चाहिए।
- प्रत्येक व्यक्ति को व्यायाम उसकी अर्धशक्ति से ज्यादा नहीं करना चाहिए। शीत काल (नवंबर से फरवरी) एवं वसंत ऋतु (मार्च-अप्रैल) में
- अर्धशक्ति तथा शेष ऋतु अथवा माह में अर्थ शक्ति से भी कम व्यायाम करें।
- व्यायाम सेवी को प्रतिदिन अपने भोजन में 'स्निग्ध आहार'' को अवश्य सम्मिलित करना चाहिए।
- घी का प्रयोग नियमित रूप से जठराग्नि (भूख लगने) की स्थिति के अनुसार करना चाहिए !
उक्त सलाह एवं जानकारी आयुर्वेद संहिताओं के अनुसार।
डॉ. प्रकाश जोशी
दमा एवं त्वचा रोग विशेषज्ञ
धन्वंतरी आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय एवं चिकित्सालय
उज्जैन (मध्यप्रदेश)
Comments