राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका विषय था कथा सम्राट - मुंशी प्रेमचंद और भारतीय समाज की चुनौतियां। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने अपना व्याख्यान देते हुए कहा कि प्रेमचंद से जुड़ना लोकतंत्र से जुड़ना है। संवैधानिक मूल्यों के साथ खड़ा होना है। उनमें गहरी वैचारिक दृढ़ता थी, उन्होंने दबाव या प्रलोभनों से समझौता नहीं किया। समकालीन विमर्शों के मूल सूत्र प्रेमचंद के यहां मौजूद हैं। उन्हें पूर्वनिर्धारित वाद या विचारधारा के दायरे में बांधा नहीं जा सकता है। देश आजाद है, पर व्यापक बदलावों के बावजूद स्त्रियों, वंचितों और किसानों की दुरावस्था, अन्याय और शोषण जारी है। प्रेमचंद कथा साहित्य में इन विसंगतियों का तीखा प्रतिकार दिखाई देता है।
समारोह के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे ने अध्यक्षीय भाषण में कहा प्रेमचंद को सच्ची भारतीयता की पहचान हैं।
विशिष्ट वक्ता राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ . हरिसिंह पाल महामंत्री नागरी लिपि परिषद, दिल्ली ने कहा प्रेमचंद का साहित्य कालजयी साहित्य है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बृजकिशोर शर्मा , वरिष्ठ शिक्षाविद् ने कहा कफन कहानी के माध्यम से उन्होंने सारे आदर्शों पर कफन डाल कर गहरा व्यंग्य किया। उन्होंने कहा जीवन का आदर्श कुछ और ही है।
मुख्य अतिथि डॉ रजनी गुप्त पूर्व मुख्य प्रबंधक, लखनऊ ने कहा कि प्रेमचंद्र प्रेम को संयम और कर्तव्य परायणता की ओर ले जाते हैं। अरुणा सराफ, इंदौर ने कहा कि समाज सुधारक और यथार्थवादी विचारक हैं प्रेमचंद। डॉ. शहनाज़ शेख , राष्ट्रीय सचिव, नांदेड़ ने कहा कि इनके बिना हिंदी साहित्य का इतिहास अधूरा है। सुवर्णा जाधव, पुणे, महाराष्ट्र, कार्यकारी अध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा कि प्रेमचंद ने यथार्थवादी साहित्य लिखा।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे , गाज़ियाबाद, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, महिला इकाई , राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने किया । कार्यक्रम का शुभारंभ अरुण सराफ की सरस्वती वंदना से हुआ । स्वागत भाषण डॉ. प्रभु चौधरी , महासचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने दिया । प्रस्तावना शैली भागवत, राष्ट्रीय संयुक्त सचिव, ने प्रस्तुत की और आभार व्यक्त श्वेता मिश्रा ने किया।
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