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विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है – प्रो शर्मा

विश्व पटल पर हिंदी और देवनागरी लिपि का बढ़ता प्रभाव पर केंद्रित  अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

भाषा एवं लिपि के क्षेत्र में योगदान के लिए डॉ हरिसिंह पाल एवं हरेराम वाजपेयी का हुआ सारस्वत सम्मान 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन,  हिंदी परिवार, इंदौर एवं नागरी लिपि परिषद,  नई दिल्ली की मध्यप्रदेश इकाई के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी विश्व पटल पर हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि का बढ़ता प्रभाव पर केंद्रित थी। इस अवसर पर नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल एवं हिंदी परिवार, इंदौर के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी का सारस्वत सम्मान भाषा, लिपि एवं साहित्य के क्षेत्र में  उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए किया गया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन, डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे, श्री गोपाल बघेल मधु, कनाडा श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन, श्री प्रभु चौधरी, डॉ जवाहर कर्नावट, भोपाल थे।

मुख्य वक्ता के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि संपूर्ण विश्व के भाषा या लिपि संबंधी आंकड़े उठाए जाएं तो हिंदी भाषा सर्वाधिक बोली जा रही है और देवनागरी लिपि सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं की स्वाभाविक लिपि है। देवनागरी लिपि सबसे विलक्षण ही नहीं, पूर्णता के निकट है। देश विदेश की भाषाओं को सुगमता से सीखने के लिए देवनागरी सहयोगी सिद्ध हो रही है। लिपि के आविष्कारकों की आकांक्षा रही है कि किसी भी भाषा की विभिन्न ध्वनियों के साथ अक्षरों का सुमेल हो,  इस दृष्टि से देवनागरी लिपि सर्वाधिक वैज्ञानिक और युक्तिसंगत है। इसमें ध्वनियों के उच्चारण और लेखन के बीच एकरूपता है। महात्मा गांधी और विनोबा भावे ने देवनागरी लिपि की इस शक्ति को पहचाना था और उन्होंने इसे परस्पर जोड़ने वाली लिपि के रूप में देश की एकता और अखंडता को मजबूती देने का माध्यम बनाया।

नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने अपना मंतव्य देते हुए कहा कि अमेरिका ने भी द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी को स्वीकार कर लिया है। 

डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र,  कार्यकारी अध्यक्ष नागरी लिपि परिषद् ने कहा कि रोमन को चार प्रकार से फारसी को सात प्रकार से जबकि देवनागरी लिपि को एक ही प्रकार से लिखा जाता है।

सारस्वत अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी, अध्यक्ष हिंदी परिवार इंदौर ने कहा कि हमें गर्व होता है जब टेक्निकल विद्यार्थी भी हिंदी में लिखते हैं।

बृजकिशोर शर्मा, अध्यक्ष एवं पूर्व शिक्षा अधिकारी ने कहा कि देवनागरी  सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। पूर्व राजभाषा महाप्रबंधक डॉ.जवाहर कर्नावट, भोपाल ने कहा कि रामचरितमानस की वजह से भी नागरी लिपि का प्रचार- प्रसार विदेशों में हुआ है। हमारी नई पीढ़ी को देवनागरी लिपि लिखना सिखाना चाहिए।

सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, नार्वे ने कहा कि- भाषा और लिपि को बढ़ाने के लिए बच्चों को सिखाना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि गोपाल बघेल, मधु,  कनाडा ने कहा कि हमें हमारी भाषा और लिपि पर गर्व होना चाहिए।

कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,  महिला इकाई,  राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. संगीता पाल,  राष्ट्रीय सचिव,  राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना,  कच्छ,  गुजरात ने किया। स्वागत भाषण एवं आभार डॉ. प्रभु चौधरी , महासचिव,  राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने , अतिथि परिचय श्रीमती अरुणा सराफ  ने करवाया। कार्यक्रम में डॉ. अशोक कुमार भार्गव,  आईएएस,  भोपाल,  श्रीमती सुवर्णा जाधव, पुणे, डॉ सुनीता मंडल कोलकाता  डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक,  छत्तीसगढ़,  सरफराज अहमद,  योगेंद्र यादव पटना,  इंदौर से मधु भंवानी,  डॉ शहेनाज शेख, नांदेड़, डॉ कृष्णा जोशी आदि सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।

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