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शेयर बाजार में एकतरफा रैली ठीक नहीं होती है, उतार-चढ़ाव ही इसका बुनियादी चरित्र होता है

लेखक - डॉ. सत्येंद्र किशोर मिश्र

शेयर बाजार अक्सर तेजी तथा गिरावट दोनों ही स्थितियों में गैरजरूरी प्रतिक्रिया देते हैं। शेयर बाजार से प्राप्त संकेतों का अर्थव्यवस्था के सूचकों से संबंध समझने में सावधानी जरूरी है। हालांकि हाल के वर्षों में वैश्विक स्तर पर विकसित देशों के शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट के साथ भारतीय बाजारों में भी गिरावट आई थी। पर समग्र आर्थिक सूचक, भारतीय अर्थव्यवस्था की दूरगामी संभावनाओं को दिखा रहे हैं और यही विदेशी संस्थागत निवेशकों की भारत के प्रति रणनीति में बदलाव को प्रेरित कर रही है।

भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। पूंजी बाजार में शेयर बाजार के संवेदी सूचकांक किसी भी अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति के साथ ही उम्मीदों और संभावनाओं को दिखाते हैं। कमजोर वैश्विक आर्थिक संकेतों के बावजूद, आज भारत में शेयर बाजारों के प्रमुख संवेदी सूचकांक बीएसई का सूचकांक तथा एनएसई का निफ्टी अपने सार्वकालिक शिखर पर हैं।

पिछले सप्ताह सूचकांक 66,060 पर बंद होने से पहले 66,160 पर पंहुचा तथा निफ्टी 19,595 छूने के बाद 19,565 के रिकार्ड स्तरों पर बंद हुए, यह सिलसिला जुलाई माह में बार-बार देखने को मिला। शेयर बाजारों की इस उड़ान को भारत की आर्थिक संभावनाओं के संदर्भों में समझने की जरूरत है।

भारत के शेयर बाजारों की उड़ान के पीछे दूरगामी संभावनाओं के साथ-साथ तात्कालिक वैश्विक तथा घरेलू कारक हैं। गोल्डमैन सैक्स का एक अनुमान है कि वर्ष 2075 तक अमेरिका के साथ ही जापान और जर्मनी को पीछे छोड़, भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत की जीडीपी 2020 के 2.8 खरब डालर से बढ़कर 2030 तक 6.6 खरब डालर, 2040 तक 13.2 खरब डालर, 2050 तक 22.2 खरब डालर तथा 2075 तक 52.5 खरब डालर तक पहुंच कर, अमेरिका की जीडीपी से अधिक होने का अनुमान है। यह मात्र चीन के 57 खरब डालर से कम होगी, पर अमेरिका के 51.5 खरब डालर, यूरो क्षेत्र के 30.3 खरब डालर, जापान के 7.5 खरब डालर से अधिक होगा।

भारत के आर्थिक विकास की दूरगामी संभावना के इस सफर में सस्ता तथा भारी श्रमबल सबसे बड़े सहायक होंगे। अगले दस वर्षों में वैश्विक आर्थिक विकास दर प्रतिवर्ष औसतन तीन फीसद से कम रहेगी तथा धीरे-धीरे और गिरेगी। पिछले पचास वर्षों में वैश्विक जनसंख्या वृद्धि दर आधी, प्रतिवर्ष दो फीसद से घटकर आधे से भी कम हो गई है, और वर्ष 2075 तक लगभग शून्य हो जाने की उम्मीद है, यहीं पर भारत की संभावना बनती है।

दुनिया में सबसे अधिक 1.4 अरब की आबादी, भारत को 2075 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में सहायक होगी। कौशल विकास, नवाचार और बढ़ती श्रमिक उत्पादकता महत्त्वपूर्ण होने जा रही है। भारत की लगभग 64 फीसद या 90 करोड़ आबादी कामकाजी आयु वर्ग में आती है।

तात्कालिक कारकों में कमजोर वैश्विक विकास परिदृश्य के बीच भारत की मजबूत आर्थिक बुनियाद, निवेशकों के लिए महत्त्वपूर्ण है। दरअसल, भारत के शेयर बाजार, वैश्विक रैली के साझीदार हैं। वैश्विक विकास भले सुस्त है, पर प्रमुख वैश्विक बाजारों में तेजी है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों और बाजार के जानकारों के अनुसार वैश्विक मंदी अपरिहार्य थी, पर शेयर बाजारों ने इस चिंता को खारिज कर दिया है।

ऐसे संकेत हैं कि अमेरिका संभावित मंदी से बच सकता है। जून 2023 में अमेरिकी उपभोक्ता मुद्रास्फीति 9.2 फीसद के शिखर से घटकर 3 फीसद हो गई है तथा बेरोजगारी अपने निचले स्तर 3.6 फीसद पर है। अमेरिका, यूरोजोन, जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान के शेयर बाजार वर्ष के अपने उच्चतम स्तर पर हैं। अमेरिका का प्रमुख शेयर बाजार एसएंडपी 500, यूरो स्टाक्स 50, फ्रेंच सीएसी, दक्षिण कोरिया का ओएसपीआइ, ताइवान का टीएआइईएक्स, जर्मनी मंदी के बावजूद डीएएक्स वर्ष के उच्चतम स्तर पर हैं, जापानी निक्केई उछाल पर है।

भारतीय शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक पिछले सप्ताह नए-नए शिखर बनाते हुए सेंसेक्स 502 अंक या 0.77 फीसद बढ़ कर रिकार्ड स्तर 66,160 छूने के बाद 66,060 तथा निफ्टी 19,595 का रिकार्ड स्तर छूने के बाद 150 अंक या 0.78 फीसद बढ़ कर रिकार्ड ऊंचाई 19,565 के सार्वकालिक उच्चस्तर पर बंद हुए। शेयर बाजार में यह तेजी भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों के भरोसे का संकेत है।

सूचकांक में यह तेजी आइटी, बैंकिंग, बीमा, आटो, स्वास्थ्य, रियल्टी, तेल और गैस, बिजली सहित लगभग सभी क्षेत्रों में एक साथ दिखी। छोटे तथा मझोले शेयर सूचकांकों ने ‘बेंचमार्क इंडेक्स’ से बेहतर प्रदर्शन किया है। घरेलू निवेशकों के साथ-साथ विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजार में रुझान बरकरार रहने की उम्मीद है।

शेयर बाजार में रैली की शुरुआत पिछले जनवरी-फरवरी में चीनी अर्थव्यवस्था में मंदी की वजह से निवेश की घटती संभावनाओं के कारण ‘भारत में बेचें, चीन में खरीदें’ की विदेशी निवेशकों की रणनीति में बदलाव भारत में खरीदें, चीन में बेचें’ से हुई। इसके अलावा, विदेशी निवेशक विकसित दुनिया के देश खासकर अमेरिका, भारत को ‘चीन प्लस वन’ नीति का प्रमुख साझेदार मानते हैं।

चीन के प्रति बदलती धारणा ने भारत में बड़े पैमाने पर विदेशी संस्थागत निवेश (एफपीआइ) के प्रवाह को गति दी है। इस वर्ष के पहले दो महीनों में लगभग पैंतीस हजार करोड़ रुपए के शेयर बेचने वाले एफपीआइ बड़े पैमाने पर खरीदार बन गए और मई के बाद से सवा लाख करोड़ रुपए से अधिक के शेयर खरीदार बन गए।

भारतीय अर्थव्यवस्था तेज जीडीपी वृद्धि दर, घटते सीएडी, स्थिर मुद्रा और बढ़ते पीएमआइ जैसे आशाजनक प्रमुख संकेतकों, जीएसटी और प्रत्यक्ष कर संग्रहण में लगातार वृद्धि और नरम क्रेडिट वृद्धि के साथ, अच्छी स्थिति में है। सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय में निरंतर वृद्धि के कारण बेंचमार्क सूचकांक नई ऊंचाई पर पहुंच गए। ब्याज दरों में वृद्धि के बावजूद ऋण मांग में वृद्धि हुई है और भारतीय उद्योग पहले से कहीं बेहतर ‘बैलेंस शीट’ दिखा रहे हैं। चालू वितवर्ष में विदेशी निवेशकों ने भारत के शेयर बाजार में सवा लाख करोड़ रुपए से अधिक का शुद्ध निवेश किया है।

शेयर बाजार में एकतरफा रैली ठीक नहीं होती है, उतार-चढ़ाव ही इसका बुनियादी चरित्र होता है। ब्याज दर अनिश्चितता, वैश्विक आर्थिक मंदी, मुद्रास्फीति संकट के साथ-साथ वैश्विक राजनीतिक अनिश्चितताएं तथा अशांति जैसी अनेक अड़चनें खेल बिगाड़ सकती हैं। हालांकि अमेरिकी फेड के संकेत हैं कि अभी ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना नहीं है, लेकिन चीन और अन्य अर्थव्यवस्थाओं से सुस्त मांग के कारण कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट जैसी अन्य नकारात्मक बातें निवेशकों की चिंता बढ़ा रहे हैं।

आरबीआइ के अनुसार, सीपीआइ मुद्रास्फीति वर्ष 2023-24 के लिए 5.1 फीसद अनुमानित है, जिसमें पहली तिमाही में 4.6 फीसद, दूसरी तिमाही में 5.2, तीसरी में 5.4 तथा चौथी तिमाही में 5.2 फीसद है। आरबीआइ ने पिछली दो मौद्रिक नीतियों में स्थिरता बनाए रखी है। भारत में खुदरा मुद्रास्फीति फिर से बढ़ती है, तो आरबीआइ फिर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी के लिए मजबूर होगा।

भारतीय रुपया डालर के मुकाबले कमजोर बना हुआ है, दूरगामी प्रीमियम में गिरावट आई, क्योंकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के संकेत हैं कि इस साल मौद्रिक नीति और कठोर हो सकती है। तेल की कीमतों में थोड़ा बदलाव हुआ, क्योंकि बाजार ने वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के साथ-साथ कच्चे तेल की कम आपूर्ति को पचा लिया।

शेयर बाजार अक्सर तेजी तथा गिरावट दोनों ही स्थितियों में गैरजरूरी प्रतिक्रिया देते हैं। शेयर बाजार से प्राप्त संकेतों का अर्थव्यवस्था के सूचकों से संबंध समझने में सावधानी जरूरी है। हालांकि हाल के वर्षों में वैश्विक स्तर पर विकसित देशों के शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट के साथ भारतीय बाजारों में भी गिरावट आई थी।

पर समग्र आर्थिक सूचक, भारतीय अर्थव्यवस्था की दूरगामी संभावनाओं को दिखा रहे हैं और यही विदेशी संस्थागत निवेशकों की भारत के प्रति रणनीति में बदलाव को प्रेरित कर रही हैं। भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थान बनाना है, तो उसे ठोस आर्थिक तथा वित्तीय बुनियाद रखनी होगी, शेयर बाजारों की उड़ान भी इसी बुनियाद से होती है।

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