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जीवन संघर्ष और जड़ों से प्रेम के साथ परिवेश एवं संस्कृति का तनाव प्रवासी साहित्य में मुखरित है – प्रो शर्मा

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में हुआ विश्व पटल पर प्रवासी साहित्य एवं पत्रकारिता के योगदान पर विमर्श 

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में विश्व पटल पर प्रवासी साहित्य एवं पत्रकारिता के योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला और पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और मीडिया विशेषज्ञ श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। विशिष्ट वक्ता पूर्व प्राचार्य डॉ उर्मि शर्मा, प्रो गीता नायक प्रो जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ अरुण शुक्ला, जबलपुर, डॉ शैलेंद्र कुमार, नागपुर आदि ने संगोष्ठी में विचार व्यक्त किए।

कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी में प्रवासी साहित्य यद्यपि नवयुग का साहित्यिक विमर्श है, लेकिन इसकी शुरुआत दशकों पहले हो गई थी। साहित्य के साथ प्रवासी भारतीयों की पत्रकारिता और मीडिया कर्म ने भारत की पहचान को विश्व पटल पर स्थापित करने में अविस्मरणीय योगदान दिया है। वैसे तो प्रवासन सदियों से हो रहा है, लेकिन नए युग में उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआती चरण में भारतीयों को हजारों-लाखों की संख्या में गिरमिटिया मज़दूर के रूप में मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में, छल- प्रलोभन में फाँसकर, ले जाया गया था। आरंभिक प्रवासी साहित्य अपार कष्ट और संघर्ष का साहित्य है। गांधी जी की पुस्तक सत्य के प्रयोग गिरमिटिया प्रथा की समाप्ति का संदेश देती है। अनेक दशकों से जारी प्रवासन से जुड़े जीवन संघर्ष, पीड़ा, अपनी जड़ों से प्रेम, परिवेश एवं संस्कृति का तनाव प्रवासी साहित्य में सदा-सदा के लिए सामूहिक स्मृति के रूप में अंकित हो गया है।   

प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि देश के बाहर बसे प्रवासी रचनाकारों ने देश - दुनिया की बाहरी दीवारों को तोड़कर अखंड मानवीयता के लिए रास्ता तैयार किया है। उन्होंने अपने चर्चित काव्य संग्रह लॉकडाउन से प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया। रोमाओं की राह कठिन है गीत के माध्यम से उन्होंने भारत से दूर देशों तक गए रोमा समुदाय के लोगों की उम्मीदों और व्यथा को जीवंत किया।

डॉ उर्मि शर्मा ने प्रवासी साहित्य और मीडिया पर शोध की नई सम्भावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक का साहित्य दुनिया में परस्पर प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है।

प्रो गीता नायक ने कहा कि पूरी दुनिया में भाषाओं का विकास हुआ है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में उनके सामने चुनौतियां भी दिखाई दे रही हैं। दुनिया में  अनेक भाषा परिवार हैं,  जिनमें से हमारी भाषाओं का सम्बंध भारोपीय परिवार से है।  उन्होंने संवाद की भाषा और मूल भाषा पर चर्चा करते हुए कहा कि प्रवासी साहित्य और पत्रकारिता के सामने आज अनेक समस्याएं हैं, जिनका सामना प्रवासी भारतीय कर रहे हैं। 

इस मौके पर प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ अरुण शुक्ला, जबलपुर, डॉ शैलेंद्र कुमार, नागपुर, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ सुशील शर्मा, डॉ अजय शर्मा आदि ने भी विचार व्यक्त किए। 

संगोष्ठी का संचालन प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने किया। इस अवसर पर अनेक शिक्षक, साहित्यकार, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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